Thursday, August 8, 2019

एक विचार

बेटियों का घर बिगाड़ते ये माँ-बाप
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मैं जो कुछ कहने वाला हूॅ कटु लेकिन सत्य है।कुछ लोग बुरा भी मान सकतें हैं लेकिन मैं अपने विचार से सच कह रहा हूॅ क्योंकि यह मेरी अपनी ही नहीं घर-घर की कहानी है।
माँ-बाप अपनी इच्छानुसार परिवार तथा लड़का देख कर अपनी बेटी की शादी करतें हैं और यह जानते भी हुए कि बेटी के ससुराल वाले और उसका पति सज्जन हैं तथा लड़की सुखी भी है लेकिन प्रायः दिन भर में तीन-चार बार पन्द्रह-पन्द्रह बीस-बीस मिनट तक मोबाइल पर लड़की से बात अवश्य करेंगे।भाई यह कहाँ तक उचित है आप अंदाजा लगा सकतें हैं।मेरा तो यही मानना है कि दिन भर में कुल मिलाकर एक-डेढ़ घण्टे बात करना बिना शिकायत के कुछ हो ही नहीं सकता।कभी सास-ससुर की शिकायत,कभी जेठ-जेठानी की आदि-आदि यानि कुल मिलाकर ससुराल पक्ष की शिकायत ही शिकायत।अब बेटी के माँ-बाप का क्या फर्ज बनता है उसकी हाँ में हाँ मिलाना या फिर उसे समझाना?
मैं तो समझता हूॅ कि उसकी हाँ में हाँ अधिकांश माँ-बाप मिलाते होंगे।कम ही माँ-बाप बेटी को समझाते तथा विरोध करतें होंगे।अब प्रश्न उठता है कि माँ-बाप ने क्या देखकर बेटी की शादी कर दी?उन्हें विश्वास होना ही चाहिए कि मेरी पसंद अच्छी है और बेटी सुखी है।
आजकल तो जमाना भी ऐसा है कि बहू की जुबान तेज होती है वह भी विशेष तौर पर अपनी सास के प्रति तथा वह अपनी तीस-पैंतीस वर्ष की उम्र की बराबरी सास की साठ-पैंसठ वर्ष की उम्र से करती है।यह कहाँ तक लाज़िमी है भाई, दोनों में उम्र के लिहाज से अन्तर तो होगा ही।
शादी के बाद बेटे के माँ-बाप भी बेटे-बहू से कम ही बोलतें हैं।लेकिन अपने लम्बे अनुभव से जहाँ भी उन्हें गलत देखेंगे टोकेंगे ही।कभी-कभी अपने बेटे को कुछ बोलतें हैं तो बहू को बुरा लगता है इस पर वे क्या करेंगे?अपना मुँह सिल लेंगे कुछ बोलेंगे नहीं जो होगा देखा जायेगा।चाय में मक्खी देखकर भी निगल जायेंगे।
अब इन सब बातों को बेटी शिकायत के रूप में अपने माता-पिता से कहती है तो ससुराल पक्ष का क्या दोष?अतः मैं तो कहूँगा कि बेटी के माँ-बाप अपनी सीमा समझें।बेटी के घर में उतना ही हस्तक्षेप करें जितना उचित हो तथा उसकी हाँ में हाँ मिलाने की अपेक्षा उसे समझाने का प्रयास करें।

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