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Thursday, January 23, 2020

भारत और मोदी

भारत और मोदी
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Modi and Bharat mata



यह भारत देश हमारा,
सारे जग से न्यारा है,
सभी धर्मों का समावेश यहाँ पर,
सभी को समान अधिकार मिला है,
इसीलिए तो भारत,

"माता"

कहलाता है।
मोदी जी की अगुवाई में,
उन्नति के मार्ग पर चल पड़ा है,
भारत में जो न हुआ कभी भी,
अब वह भी होने लगा है।
विश्व गुरु बनने की राह भी,
अब तो प्रशस्त हुई है,
जो सपना देखा भारत ने,
अब पूरा होने को है।
बस,
यही विनती है भारत की जनता से,
मोदी जी के हाथों को मजबूती दे,
और,
भारत को ऊँचाइयाँ छूने दे।

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Friday, January 17, 2020

साठ के ऊपर दम्पति

साठ के ऊपर दम्पति 
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old Age


पागलपन भी कैसा है यह, 
तुम बिन हम रह नहीं सकते, 
जीवन-संघर्ष किया है साथ तुम्हारे, 
रहेंगे भी तुम बिन हम कैसे?
जब जवां हम दोनों थे, 
वह समय भी याद है हमको, 
संघर्षरत जब हम दोनों थे,
अब तो तुम्हारा साथ  मिला है।
यह उम्र भी कितनी अजीब है, 
जवानी का संघर्ष बिता कर, 
फुर्सत से फिर हम दोनों हैं,
उड़ने का मन करता है, 
गर तुम साथ रहो तो।
अहोभाग्य मेरा है यह तो, 
तुम अब भी मेरे साथ खड़े हो, 
साथ जियें अब साथ मरें हम,
बस यही इच्छा है अब तो।।

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Wednesday, December 4, 2019

दरिंदगी से कैसे बचाऊँगा?

दरिंदगी से कैसे बचाऊँगा?
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Studing GIrl


तेरी खामोश निगाहों में,
जहाँ का आसमाँ खोजता हूॅ,
नजर आता नहीं कुछ भी,
एक खाली बंजर भूमि नजर आती है।
यह क्या लिखती है पगली,
मेरी प्यारी मेरी चाँद का टुकड़ा,
"मेरा भारत महान है",
उनके लिए,
जो नेताओं के प्यारे हैं,
या,
जिनके पास पैसों की खनक प्यारी है।
हम गरीब हैं,
समाज से निकाले हुए टुकड़े,
बदबूदार और कई दिन पुराने टुकड़े,
नये टुकड़े में हजार कमियां निकाल देती है यह दुनिया,
फिर हमारी गुजर कैसे और कहाँ होगी इस दुनिया में।
तुझे तो गिद्धों की नजर से बचाना होगा मुझको,
साँप-बिच्छू रेंग हैं यहाँ पग-पग पर,
और भी कई जहरीले जीवों की नजरें गड़ेंगी तुझ पर,
मैं बेवश किस-किस की ऑखें फोड़ूगाँ?

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Saturday, November 23, 2019

जमाना बहुत बुरा आया है

जमाना बहुत बुरा आया है
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Broken family

जमाना बहुत बुरा आया है,
भाई को हम भाई नहीं मानते,
माँ-बाप की इज्ज़त नहीं करते,
इन प्यारे रिश्ते को तोड़कर,
गैरों को अपना लेते हैं।
और कहतें हैं,
मेरा व्यवहार बहुत है,
समाज में मेरा नाम बहुत है।
हमसे अच्छी मेरी पत्नी है,
अपने बाप को बाप समझती,
अपनी माँ को माँ समझती,
और भाई को भाई मानती,
हमको भी मजबूर कर देती,
यह तो अच्छी बात है,
हम ऐसा ही करतें हैं,
इन सबकी इज्ज़त करतें हैं,
क्योंकि ये इज्ज़त के लायक हैं।
पर हम क्यों भूल जातें हैं,
मेरा भाई मेरा भाई है,
वह दुश्मन नहीं हो सकता,
आखिर मेरा ही खून है,
मेरे माँ-बाप घर के कचरे नहीं हैं,
क्योंकि ये पूज्यनीय हैं।
जब भी  समाज पूछेगा हमसे,
हमको कहना ही पड़ेगा,
यह मेरा ही भाई है,
और ये ही मेरे माँ-बाप हैं,
यह बिल्कुल ही सत्य है,
यही पहचान है मेरी।
इसके बावजूद भी हम,
कितने मूर्ख होतें हैं,
भाई को दुश्मन मानकर,
माँ-बाप को कचरा समझकर,
सोचतें हैं मेरे बेटे बड़े होकर,
मेरी सेवा करेंगे।।
        मूर्ख

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Friday, October 25, 2019

दीपावली आने वाली है

दीपावली आने वाली है
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Diwali


दशहरा गया,
दीपावली आने वाली है,
स्वागत लक्ष्मी-गणेश का करना है,
घर-घर साफ हो रहा,
स्वागत की तैयारी है, 
वे आयें या न आयें,
स्वागत तो करना ही है।
मन में उमंग जैसी है,
दीपमाला सजानी है,
और दारिद्र दूर करने की कामना,
उनसे करनी है,
अच्छा है, 
घर-ऑगन साफ करें हम,
लेकिन मन?
वह भी तो साफ होना चाहिए।।

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Wednesday, October 23, 2019

ऊँ श्री लक्ष्मी देवी माताय नमः

ऊँ श्री लक्ष्मी देवी माताय नमः
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Laxmi mata

माँ लक्ष्मी, 
तुम जगत्माता हो।
द्वार मेरे तुम आओ न,
आस लगाये बैठा हूॅ, 
हाथ पसारे राह ताक रहा हूॅ, 
अंखियां थक गयीं तकते-तकते।
रूप तुम्हारा अति प्यारा है, 
महिमा तुम्हारी अति न्यारी है, 
जानता हूॅ संतोष न होगा,
जितना आओ मेरे घर में।
भण्डार बड़ा नहीं है मेरा,
पर खाली खाली लगता है, 
तुम बिन तो माता, 
यह जग सूना सूना लगता है।
जग तुम्हारा दास बना है,
आगे-पीछे भाग रहा है, 
जिसको भी मैंने देखा, 
तुम्हारी चाहत रखता है।
न रखो हाथ मेरे सर पर, 
चरण-रज ही रख दो माता, 
मैं धन्य हो जाऊँगा, 
रज तुम्हारे चरणों की पाकर।।
माँ लक्ष्मी, 
तुम जगत्माता हो।।

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Saturday, October 5, 2019

जय श्री राम

   जय श्री राम
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Lord ram

जय राम जय राम रमैया,
दुनिया में तुम अद्भुत हो,
नहीं कोई ऐसा नर देखा,
जो पुरूषोत्तम कहलाता हो।
तोड़ा शिव-धनुष भरी सभा में,
परशुराम क्रोध में बहुत आये,
लेकिन जब तुमको जाना,
नतमस्तक हुए तुरन्त ही।
भक्तों के प्रति श्रद्धा थी तुमको,
शबरी के जूठे फल खाये थे,
हनुमान की भक्ति पर,
उनको भरत समान मान लिया।
श्याम वर्ण हे धनुष धारी,
अहं रावण का चूर करने वाले,
हे पुरूषोत्तम जय श्री राम,
सीता सहित है तुमको प्रणाम।।

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Friday, October 4, 2019

जय माता रानी

    जय माता रानी
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Goddess Durga

तुम आई हो द्वार मेरे,
मन प्रफुल्लित हो गया,
देख नहीं पाता हूॅ तुमको,
पर अनुभव तो करता हूॅ।
एक नयी शक्ति का होता है संचरण,
सुख-संपत्ति लेकर आई हो,
आशा यह होती है,
नवजीवन मुझको तुम दोगी।
आशा इसकी भी होती है,
शक्ति का अपने प्रयोग करोगी,
कष्ट दुःख अब सब हर लोगी,
कपट भी हमसे दूर रहेगा,
अहं मेरा मिट जायेगा।
नौ दिन पृथ्वी पर रहकर,
अपने धाम चली जाओगी,
लेकिन इन दिनों की छाया,
हमेशा हम पर रखोगी।

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Tuesday, September 17, 2019

मैं श्मशान जब कभी जाता हूॅ

मैं श्मशान जब कभी जाता हूॅ
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Truth of Life

जिन्दगी जीतें हैं लोग कई तरीकों से,
कोई रहता बंगलों में है,
कोई झोपड़-पट्टी में,
किसी का आलीशान मकान बना है,
किसी की एक छोटी झोपड़ी सी है।
कोई खा पीकर मस्त रहता है,
कोई खाने को तरसता है,
कोई सूट-बूट धारण करता है,
कोई कपड़े के एक टुकड़े को तरसता है।
किसी का नाम बहुत रहता,
कोई बेनाम रह जाता है,
जिन्दगी जीना सभी चाहते,
अपने-अपने तरीकों से।
मैं भी जीना बहुत चाहता,
परिवार में अपने,
सुख-संपत्ति सभी चाहता,
दुःख न आये मेरे ऊपर।
कभी खुद को नहीं देखता,
न ही अपने कर्म देखता हूॅ,
मैं ही सबसे अच्छा हूॅ,
ऐसा मैं समझता हूॅ।
लेकिन,
जब श्मशान जाता हूॅ,
हकीकत समझ में आती है,
चाहे राजा या रंक हो,
बिना वस्त्र के देखता हूॅ।
एक ही लकड़ी का बिस्तर,
एक ही तरह का चंदन,
घी का लेप देखता हूॅ,
वही फूलों की माला,
एक ही आग देखता हूॅ।
बिना महापात्र के उद्धार नहीं होता,
ऐसा लोग कहतें हैं,
जीते जी राक्षस रहा हो,
या,
साधु पुरूष रहा हो,
प्रेत योनि में रहता है।
लेकिन,
मैं यह सब नहीं मानता,
पर,
समाज से मजबूर हूॅ।
यदि,
जीते जी साधु पुरूष रहें हम,
तो,
दाह-संस्कार जैसा भी हो,
उद्धार खुद हो जायेगा।।

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Wednesday, August 28, 2019

यमराज आये घर मेरे

यमराज आये घर मेरे
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Yamraj

यमराज आये घर मेरे,
हैरान परेशान पसीने से तरबतर,
जाड़े का मौसम था,
लोगों ने दौड़ाया था।
मैं बोला,
"महाराज,
आप यहाँ,
क्यो पधारे हैं,
यहाँ तो कोई मरने को तैयार नहीं है,
फिर क्या करने आयें है?
जाड़े के इस मौसम में,
ऊनी वस्त्र भी नहीं पहनें हैं,
फिर भी पसीने-पसीने,
क्यों हो रहें हैं?"
यमराज बोले,
"किसी की मौत को छोड़ो
अभी तो अपनी जान के लाले पड़े हुए हैं,
तुम्हारी इस पृथ्वी से दूत मेरा,
न जाने किसे ले गया है,
उसने यमलोक को नरक बना दिया है।
लगता है कोई नेता है,
पहुंचते ही उसने चुनाव करवा दिया,
जीत कर चुनाव को,
खुद यमराज बन बैठा है,
अब मुझ हारे प्रत्याशी की पुरानी फाइलें देख रहा है,
मैंने कितने गबन किये हैं,
उनको भी खोज रहा है,
जेल जाने से मैं डरता हूॅ,
भाग कर पृथ्वी पर आया हूॅ।
यहाँ पर तो यह हालत है,
देखा लोगों ने मुझको,
चिल्ला पड़े,
'इसने ही मेरे भाई को मारा,
इसने ही मेरे बाप को मारा'
और दौड़ा लिया मारने को,
अब मेरी जान के लाले पड़े हुए हैं,
और मैं मारा-मारा फिर रहा हूॅ।"

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Sunday, August 25, 2019

मैं तो मरने वाला था

मैं तो मरने वाला था
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Yamraj Pic
Yamraj: God of Death


अरे,
आप तो चिहुंक पड़े,
लेकिन बात सही है, 
कल रात मैं मरने वाला था।
सोया था गहरी नींद में,
दिन भर का थका हुआ था, 
बिल्कुल बेसुध था,
होश भी नहीं था मुझको।
मैंने देखा, 
दरवाजे पर भैंसे पर सवार,
एक अजीबो-गरीब व्यक्ति आया है, 
सामने वाले से मेरा पता पूछ रहा था, 
कुछ-कुछ पहचाना सा लगता था, 
याद आया,
टीवी पर अक्सर आता है, 
और, 
यमदूत कहलाता है।
सामने वाले उसे बताने से कुछ भी,
डर रहे थे।
मैं खुद बाहर आ गया, 
बोला,
"कौन हो भाई, 
मुझे क्यों पूछ रहे हो?"
वह बोला, 
"यमदूत हूॅ, 
तुझे लेने आया हूॅ, 
चल अब मरने को तैयार हो जा।"
मैं बोला, 
"अबे,
तू पागल है क्या,
जो मुझे लेने आया है?"
वह सकपका गया,
बोला, 
"मैं पागल नहीं,
यमराज की आज्ञा हुई है।"
मैं बोला, 
"कौन यमराज बे,
क्या मैं उसके बस का हूॅ, 
साले,
बाप का कहा तो कभी माना नहीं,
तेरे यमराज की मानूंगा क्या?"
लेकिन,
वह जिद्दी था यमराज का दूत जो था,
मैं भी जिद्दी था,
आखिर मनुष्य जो था,
अपने आगे किसी को कुछ समझा नहीं,
इसको क्या समझता मैं?
बस,
हम दो जिद्दी टकरा गये,
अन्तर केवल इतना था,
मैं मनुष्य वाकई बहुत जिद्दी,
वह ड्यूटी से मजबूर था।
वह मारने को तैयार था,
पर,
मैं मरने को तैयार न था,
मैं बोला, 
"पहले यह तो बता,
यमराज पागल है क्या?
बूढ़ा बाप मेरा अभी जिन्दा है,
वह,
जवान बेटे को मरवा रहा?
कभी-कभी मैंने देखा है, 
छोटे-छोटे बच्चों पर तरस न खाकर, 
वह जवान बाप को उठवा लेता है क्यों?"
यमदूत खिसिया गया बेचारा, 
तुरन्त यमराज को मोबाइल खड़खड़ा दिया,
बोला,
"सरकार,
अब की तो मेरा,
पक्के मनुष्य से पाला पड़ गया,
न बाप की सुनता है, 
न आपको कुछ समझता है,
बहस ऊपर से करता है, 
यह मेरे वश का नहीं,
अब आप खुद ही इसे ले जाइये।"
यमराज आये,
बोले,
"बेटा,
दिन तेरे हुए, 
चल,
मेरे साथ चलना है तुझको।"
मैं बोला, 
"तेरा नौकर हूॅ क्या?
माँ-बाप भाई-बहन को तो कुछ समझा  नहीं,
तुझे क्या समझूंगा? 
अच्छा,
चल यही बता दे,
बाप के दिन पूरे नहीं होते,
बेटे के क्यों पूरे हो जाते हैं,
कभी-कभी  ८०-९० साल के बाप के दिन पूरे नहीं होते,
कभी-कभी ३०-४० साल के बाप के दिन पूरे क्यों हो जातें है?"
तमतमा उठे यमराज भी,
बोले,
"यह तो पक्का मनुष्य है,
ऐसे तो यह न मानेगा।"
तभी पत्नी की आवाज मे कानों में पड़ी, 
"अजी,
अब उठो भी,
आठ बज गये,
ऑफिस नहीं जाना हैं क्या?"
यमराज चौंक पड़े तुरन्त ही,
"अरे बाप रे, 
यह कहाँ से आ टपक पड़ी।"
कहकर घबड़ा उठे,
और मुझे छोड़कर भाग गये।।

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Monday, August 19, 2019

माँ-बाप का दर्द - कविता

                         माँ-बाप का दर्द                       

                   

दिन अच्छे खासे बीत रहे थे, 
एक-दूजे को समझ रहे थे, 
फिर एक दिन ऐसा भी आया, 
हम दोनों का ब्याह हो गया।
उमंगों की डोर पर, 
हम उड़ने से लगे थे, 
कसमें और वादे रोज ही, 
खाते रहते थे।
साथ जियेंगे साथ मरेंगे, 
तुम बिन हम भी न रहेंगे, 
दिन यूं ही बीत रहे थे, 
हँसी खुशी हम दोनो थे।
साथ ही खाते साथ ही पीते, 
सुख-दुख में हम एक ही रहते, 
पत्नी जब भी मायके जाती, 
यह बिछुड़न हमको भारी लगती।
मिल जाने को एक-दूजे से, 
झूठ भी बोलते घर वालों से, 
खून-पसीना एक कर डाला, 
एक घर बना ही डाला।
रहते उसमें हम दोनों थे, 
खाते-पीते मस्त थे दोनों,
नये दो मेहमान घर में आये, 
नन्हें थे पर प्यारे थे।
हम उनमें व्यस्त हो गए, 
तिल-तिल कर वे बढ़ने लगे थे, 
पेट काटकर उन्हें पढ़ाया, 
इंजीनियर और डॉक्टर बनाया।
सोचा अब बहुएं आयेंगी, 
मेरे घर की शान बढ़ेगी, 
देख कर सुन्दर दो परियां,
दोनों की शादी कर डाली।
समय बीता कुछ अच्छा सा, 
फिर एक दिन ऐसा भी आया, 
तू-तू मैं-मैं होने लगी थी, 
दोनों बच्चें लड़ने लगे थे।
मकान जो था हमने बनाया, 
करने लगे उसका बँटवारा, 
कहते ऊपर वाला मैं ले लूंगा, 
नीचे वाला तुमको दूंगा।
हमने उनको खूब समझाया, 
पर उनके कुछ समझ न आया, 
जैसे-तैसे हो गया बँटवारा, 
यह न सोचा माँ-बाप भी रहते।
अब आयी अपनी भी बारी, 
दोनों कहते,"मैं न रखूँगा, 
तनख्वाह मेरी इतनी थोड़ी, 
मुश्किल से परिवार ही चलता।"
किसी तरह सुलह हो गई, 
बाँट लिया फिर हम दोनों को, 
एक कहता,"मैं माँ को लूंगा,"
दूजा कहता,"मैं बाप को लूंगा।"
हम दोनों ने ही तो मिलकर,
पिछले चालीस साल गुजारे,
सुनकर अपना बँटवारा, 
रूह कांप गई हम दोनों की।
बोले,"अब हम न बँटेंगे, 
साथ जियें हैं साथ मरेंगे, 
बीते दिन हम याद करेंगे, 
कैसे-कैसे दिन देंखे हैं।"
दुनिया में वे माँ-बाप धन्य हैं,
जिनकी संतानें नहीं बँटतीं,
भगवान् मेरी संतानों से तो,
अचछा था मुझको संतान न देता।

               

Wednesday, August 7, 2019

कविता

पचास पार दम्पति
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पागलपन भी कैसा है यह,
तुम बिन हम नहीं सकते,
जीवन में संघर्ष किया है,
तुम बिन हम कैसे रहेंगे?
जब जवां हम दोनो थे,
वह समय भी याद है हमको,
संघर्षरत हम दोनो थे,
अब तो तुम्हारा प्यार मिला है।
यह उम्र भी कितनी अजीब है,
जवानी का संघर्ष बिताकर,
फुर्सत से फिर हम दोनो हैं,
उड़ने का मन फिर होता है,
गर तुम साथ रहो तो।
अहोभाग्य मेरा है यह तो,
तुम अब भी मेरे साथ खड़े हो,
साथ जियें हैं साथ मरेंगे,
बस यही अन्तिम इच्छा है हमारी।।

Friday, August 2, 2019

कविता

माँ को समर्पित
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माँ का ऑचल कितना प्यारा है,
बचपन उसकी छाँव में बीता,
मैंने कोई दुःख न जाना,
सब विलीन हो गये उसके ऑचल में।
मैंने तो अब समझा है,
माँ कैसी होती है,
जवान होने पर भी,
वह समझाती रहती थी।
किन्तु,
मैं समझता था उसको,
"इसकी तो आदत है,
बकवास करने की ।"
लेकिन,
यह समझ न पाया,
"वह जो भी कहती थी,
अपने अनुभव पर कहती थी,
और,
मेरे हित की कहती थी"
क्योंकि मैं उसका बेटा हूॅ।
मेरा यह कह देना,
"माँ,
तुम चुप भी रहा करो,
मैं अब बच्चा नहीं हूॅ,
दुनिया को समझता हूॅ,
तुमको क्या पता है,
दुनिया कहाँ से कहाँ पहुंची है।"
सुनकर मेरी बातों को,
उसका चुप हो जाना,
अब,
मेरे दिल को कष्ट देता है।
मैं तो अब बड़ा हो गया हूॅ,
माँ न रही इस दुनिया में,
अब जब भी कष्ट होता है,
किसी दुःख में पड़ता हूॅ,
जब रोने का मन होता है,
ऑचल उसका खोजता हूॅ,
जिसके छाँव तले,
दुनिया से अलग,
मैं कुछ देर रो सकूं।
कहाँ मिलता है,
वह प्यारा ऑचल,
कहाॅ वह माँ मेरी है,
खोजने लगता हूॅ,
अब कमी माँ की खलती है,
उसके ऑचल की खलती है,
पर,
न अब मेरी माँ रही,
न उसका ऑचल रहा,
मैं दुनिया में खुद को तन्हा पाता हूॅ।







Thursday, August 1, 2019

कविता

जीवन को देखता हूॅ,
जब कभी मुड़ मुड़ कर,
दूर पिताजी दिखते हैं,
समझाते रहतें हैं मुझको,
"बेटा,
जीवन बहुत अधिक जीना है तुमको,
जब कभी लोग तुमको अच्छा कहें,
कभी आत्म संतोष मत कर लेना तुम,
और अच्छा बनने की कोशिश किया करो,
वरना यह जीवन है,
जहाँ का तहाँ रूक जायेगा।
लेकिन,
असंतोषी भी कभी मत हो जाना,
वरना यह जीवन है,
असंतोष की नदी में बह जायेगा।
लालच न करना कभी भी,
वरना इसकी आग में जल जाओगे,
आगे बढ़ने की कोशिश किया करो,
लेकिन किसी से प्रतियोगिता किये बिना,
अगर,
प्रतियोगिता कभी की तुमने,
तो,
यह द्वेष भावना तुम्हारी होगी।
जो करना है जिन्दगी में तुम्हें,
उस पर नजर अभी से रखो,
और,
उसे पाने की कोशिश अभी से शुरू कर दो,
तो,
कोई शक नहीं,
जीवन में आगे बढ़ते जाओगे।
माँ को देखता हूॅ मैं,
वह है दूर खड़ी,
प्यारा ऑचल उसका लहरा रहा,
समझा रही है मुझको,
"बेटा,
हम तुम्हारे माँ-बाप हैं,
बातें हमारी गाँठ बाँध लो,
हम जो भी कुछ कह चुके हैं तुमसे,
उस समय बुरा लगता था तुमको,
अब वही बातें सच लगतीं होंगी।"
मैं निरुत्तर क्या उत्तर दूं उनको,
लेकिन,
सच भी यही है,
आज मैं कुछ भी हूॅ,
अच्छा या बुरा,
अभिमानी या स्वाभिमानी,
प्रेम भावना से ओतप्रोत,
या,
जलन द्वेष से भरा हुआ,
यह दुनिया ही जाने,
लेकिन,
मुझे इतना शुकुन है,
मैं एक सुखमय जीवन जी रहा हूॅ।।

Wednesday, July 31, 2019

कविता

जीवन में एक साथी होना तो चाहिए,
जिससे हमारा कुछ छुपा न हो,
हर दुःख दर्द हमारे वह जानता हो,
नस-नस से हमारी वह वाकिफ हो,
यदि कभी दुःख कोई आ भी जाये,
तो,
सर पर हाथ फेरने वाला,
एक साथी जीवन में होना तो चाहिए।
जो भावनाओं को समझता हो हमारी,
हमसे अधिक हमको समझता हो,
जिसको अपना अवलम्ब हम बना सकें,
अपने जीवन का आधार बना सकें,
ऐसा ही,
एक साथी जीवन में होना तो चाहिए।
जिसकी राह हम तका करें,
आने का जिसका इन्तजार किया करें,
चेहरा जिसे देखकर खिल जाये,
मन में उमंगे उठने सी लगें,
ऐसा ही,
एक साथी जीवन में होना तो चाहिए
जो चिन्ता हमारी किया करें,
जिसकी चिन्ता हम किया करें,
दुःख जिसके हम बाँट सकें,
जिसको सुख अपना हम दें सकें,
ऐसा ही,
एक साथी जीवन में होना तो चाहिए।