Saturday, November 23, 2019

जमाना बहुत बुरा आया है

जमाना बहुत बुरा आया है
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Broken family

जमाना बहुत बुरा आया है,
भाई को हम भाई नहीं मानते,
माँ-बाप की इज्ज़त नहीं करते,
इन प्यारे रिश्ते को तोड़कर,
गैरों को अपना लेते हैं।
और कहतें हैं,
मेरा व्यवहार बहुत है,
समाज में मेरा नाम बहुत है।
हमसे अच्छी मेरी पत्नी है,
अपने बाप को बाप समझती,
अपनी माँ को माँ समझती,
और भाई को भाई मानती,
हमको भी मजबूर कर देती,
यह तो अच्छी बात है,
हम ऐसा ही करतें हैं,
इन सबकी इज्ज़त करतें हैं,
क्योंकि ये इज्ज़त के लायक हैं।
पर हम क्यों भूल जातें हैं,
मेरा भाई मेरा भाई है,
वह दुश्मन नहीं हो सकता,
आखिर मेरा ही खून है,
मेरे माँ-बाप घर के कचरे नहीं हैं,
क्योंकि ये पूज्यनीय हैं।
जब भी  समाज पूछेगा हमसे,
हमको कहना ही पड़ेगा,
यह मेरा ही भाई है,
और ये ही मेरे माँ-बाप हैं,
यह बिल्कुल ही सत्य है,
यही पहचान है मेरी।
इसके बावजूद भी हम,
कितने मूर्ख होतें हैं,
भाई को दुश्मन मानकर,
माँ-बाप को कचरा समझकर,
सोचतें हैं मेरे बेटे बड़े होकर,
मेरी सेवा करेंगे।।
        मूर्ख

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Thursday, November 21, 2019

                   यही बनारस है
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जी हाँ,
भगवान् शिव के त्रिशूल पर टिकी,शेष नाग के फन पर बसी यही गलियों और मन्दिरों की नगरी काशी है।काशी यानी बनारस वरूणा तथा अस्सी नदियों के बीच की नगरी वाराणसी।धर्म का अवलम्ब,हिन्दू संस्कृति की पहचान है।गलियों में बनी बड़ी-बड़ी अट्टालिकाओं को देखकर आप अचम्भित रह जायेंगे जिन गलियों में साइकिल बाइक मुश्किल हो उनमें बड़ी वाहनों से अट्टालिकाओं के लिए सामान लाना आश्चर्य जनक है।कई किलोमीटर तक गंगा किनारे पक्के घाटों का होना आश्चर्य में डाल देता है।काशी की सुबह शिव शंकर से शुरू होती है।सैलानिओं की भीड़ देखते ही बनती है।सबका मकसद एक "हिन्दू संस्कृति का अध्ययन"
यहाँ श्मशान घाट हैं एक,"हरिश्चंद्र घाट"दूसरा "मणिकर्णिका घाट"।

Tuesday, November 19, 2019

                    एकाकी जीवन
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 मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है।एकाकी जीवन कैसा होता है उसे तब पता चलता है जब वह एकान्त वास में पड़ता है।तब वह समझ सकता है एकांत वास कैसा होता है।जब उसके पास कोई काम न हो जब बात करने वाला भी कोई न हो।वह अकेला हो एक दम अकेला।जी हाँ बात कर रहा हूॅ अपनी।घर में हूॅ।पहले  18 सदस्यों का परिवार था।ईश्वर की माया कहें या कोप पाँच ही सदस्य परिवार में हैं इस समय।जिसमें से भी दो सदस्य अस्पताल में हैं एक बिमारी के कारण भर्ती हैं दूसरा उनके सहायक के रूप में रहता है।छोटा भाई ड्यूटो पर तो भतीजा घर अस्पताल एक किये रहता है।अब घर में बचें तीन सदस्य।दो औरतें एक मैं खुद।न बोलने वाला कोई न चालने वाला कोई घर में अकेला बैंठे-बैंठे अब समझने लगा हूॅ अकेलापन कैसा होता है।

Monday, November 18, 2019

             टूटता-बिखरता परिवार
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भगवान् भी एक हँसते-बोलते परिवार को कैसे बिखेर देता है।देखिए तो।श्यामा नन्द जी ने दस कमरे का मकान बनवाया।उनके परिवार में उनकी माँ,चार लड़के,उनकी बहुएं,चार पोते और एक पोती यानि कुल  18 सदस्यों वाला बड़ा परिवार था।सोचा,"सभी मिलकर रहेंगे।"लेकिन भगवान् को कुछ और ही मंजूर था।पहले माँ गिरीं कमर की हड्डी टूट गई।दों साल बिस्तर पर रहने के बाद स्वर्ग सिधार गयीं।
फिर बड़ा पोता अंजानी बिमारी से मर गया।अभी उसका गम भूले नहीं थे कि दूसरे नम्बर का पोता भी उसी बिमारी से मर गया।उनके बड़े लड़के ने दौड़-धूप कर अपनी बेटी की शादी कर डाली।शादी के कुछ ही दिन बाद सबसे छोटी बहू कैंसर से मर गयी।जिसके कुछ दिनों के बाद पत्नी ने बुढ़ापे के कारण दम तोड़ दिया।फिर बड़े लड़के और उसकी पत्नी ने कैंसर के कारण अन्तिम साँसें ले लीं।बेचारे अभी गम भूले भी न थे कि खुद  92 साल की उम्र में स्वर्ग सिधार गये।
तीसरा लड़का बाहर रहता है।उसके दो लड़के भी बाहर नौकरी करतें हैं।सबसे छोटा पोता भी बाहर ही रहता हैं।दूसरे नम्बर का बेटा भी शरीर में इन्फेक्शन के कारण चलता बना।इस समय उनके दस कमरे के मकान में सिर्फ चार ही लोग रहतें हैंं।
यह माया है भगवान की कि  18 सदस्यों के परिवार वाले मकान को चार सदस्यों में तब्दील कर दिया। जब मकान में रहने वाले कम होते गये तो अब मकान बेंचने की नौबत आ गई।

Friday, November 15, 2019

ढकोसला

ढकोसला
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श्याम लाल जी यों तो ५६  साल के हैं और पेशे से व्यापारी, उनका व्यापार भी खूब चलता है, सो अपने बड़े बेटे को अपना सहयोगी बना लिया है। स्वभाव से भी बहुत अच्छे हैं। जिससे उनके व्यवहारिक भी बहुत अधिक हैं। सभी रिश्तेदारों तथा जान-पहचान वालों को बाँधें रहतें हैं। कोई उनकी मौसी का लड़का है तो कोई मामी का, कोई गाँव का पाटीदार है तो कोई गाँव का चौकीदार, कहने का आशय सभी से मेल-व्यवहार बनाकर रखतें हैं। हैं तो सर्वाहारी। किसी चीज से परहेज नहीं करते। यहाँ तक कि अपने परिवार में हर शादी के बाद मांसाहार पार्टी करतें हैं।
लेकिन एक बिमारी से बहुत ग्रस्त रहतें हैं बेचारे, मौके पर धार्मिक बन जातें हैं। कोई कार्य करने से पहले पंडित जी से मुहूर्त निकलवातें हैं। व्यापार पर कब जाना उचित रहेगा? किस दिशा की ओर मुंह करके जाना उचित रहेग? आज दिशा-शूल है कि नहीं? कहीं शादी पड़ी जाये तो पंडित जी मुहूर्तों की लाइन लगा देते हैं। लाख बेइज्जती हो जाये परन्तु काम मुहूर्त पर ही करेंगे, उनकी लड़की की गोद भराई (Engagement) थी। पंडित जी ने कहा, "लड़के वालों के आने का मुहूर्त  ११:०० बजे हैं और गोद भराई का मुहूर्त  ३:०० से ६:०० बजे तक और आप (लड़की वालों) लोगों को वहाँ ४:०० बजे पहुंच जाना चाहिए। वह पंडित जी पर इतना विश्वास करतें हैं या मुहूर्त से डरते हैं कि लड़के वालों को तो ११.०० बजे होटल में बुला लिया खुद आये ४:०० बजे, अब सोचिए लड़के वाले कितने पक गए होंगे? उसके कितने मेहमान बिना नाश्ता-भोजन किये ही भूखे वापस चले गए। लड़के के बाप झल्ला कर रह गए लेकिन श्याम लाल जी मुहूर्त से मजबूर थे। मुहूर्त उन पर इस कदर हावी रहतें हैं कि मांसाहार पार्टी का भी मुहूर्त निकलवातें हैं और पंडित जी निकाल भी देतें हैं। साथ में शराब पीने का मुहूर्त भी निकाल लेतें हैं।
ऐसा नहीं कि यह मुहूर्त-बिमारी केवल श्याम लाल जी को ही हो उनके पूरे परिवार को है।
लड़की दूसरे के घर ब्याह गयी जो यह सब नहीं मानता, उस पर भी मुहूर्त-बिमारी है। कोई भी काम करना होगा सास-ससुर से नहीं पूछेगी अपने माँ-बाप से कहकर पंडित जी से निकलवायेगी, फिर तो सास-ससुर ही क्या ब्रह्मा भी कहें तब भी वह माँ-बाप के द्वारा बताए गए मुहूर्त पर ही काम करेगी। श्याम लाल जी के लड़की के घर में इस हस्तक्षेप का यह असर पड़ा कि सास-ससुर हों या ससुराल का कोई सदस्य कोई उसके बीच में बोलता ही नहीं कौन अपनी बेइज्जती कराये। क्योंकि वह वही करेगी जैसा उसके माँ-बाप बतायेंगे।नतीजा-धीरे धीरे ससुराल वालों से उसकी दूरी बढ़ने लगी। सास-ससुर तो उसके बीच में वैसे भी नहीं बोलतें लेकिन जब कभी अपने बेटे को मुहूर्त-बिमारी से ग्रस्त होते देखतें हैं तो उसे टोक देतें हैं परन्तु बेटा भी क्या करे बेचारा जब पत्नी और उसके माँ-बाप मुहूर्त-बिमारी से बुरी तरह ग्रस्त हैं।

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Wednesday, November 13, 2019

बिटिया रानी

बिटिया रानी 
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daugther father

कमलेन्द्र जी ने नीलू को बहुत प्यार और अरमानों से बड़ा किया था, करतें भी क्यों न नीलू उनकी अकेली संतान जो ठहरी। पत्नी नीलू के बचपन में ही स्वर्ग सिधार गयीं थीं। कमलेन्द्र ही उसके सब कुछ थे। माँ-बाप भाई-बहन सब, अच्छी से अच्छी शिक्षा दिलाई, अच्छे से अच्छे कपड़े पहनाते, नीलू की तबीयत जरा सी खराब होती बेचारे परेशान हो जाते, किसी भी चीज की मांग नीलू की जिद में बदलती उससे पहले वह सामान हाजिर हो जाता। दिन बीते  नीलू बड़ी होती गई लेकिन कमलेन्द्र जी का दिमाग उसके प्रति नहीं बदला, उनकी निगाह में नीलू बच्ची रहती, नतीजतन नीलू जिद्दी होती गयी, जहाँ कहती,"पापा, यह सामान चाहिए।"
पापा दौड़ पड़ते बाजार की तरफ, कमलेन्द्र जी की एक बहन थी। वह समझाती,"कमल, नीलू को इतना दिमाग मत चढ़ाओ, कभी शादी करोगे इसकी, तब क्या लड़के वाले इसके नखड़े उठायेंगे? सोचो।"
परन्तु कमलेन्द्र केवल एक हँसी में बातों में उड़ा देते। कहते,"दीदी, नीलू के आदमी को घर जंवाई बना लूंगा पर नीलू को अपने से अलग नहीं करूंगा।"
बहन उनकी बातों पर हँस कर रह जाती, कहती, "मेरा काम तुम्हें समझाना था समझा दिया, आगे तुम जानो और तुम्हारा काम।"
कमलेन्द्र पुराने रवैये पर अड़े रहे,  नीलू दिन प्रतिदिन जिद्दी होती गयी, उसके सपनों को भी पंख लग गये, अतः थोड़ी अभिमानी हो गई।
कमलेन्द्र जी ने बहुत कोशिश की उसकी शादी करने की लेकिन नतीजा फिस्स। नीलू को कोई लड़का पसंद नहीं आता, सभी लड़कों में कमी निकाल देती। परिणामस्वरूप नीलू  45 साल के उम्र में भी क्वांरी ही रह गई।

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Monday, November 11, 2019

बुढ़ापा (जीवन का अन्तिम पड़ाव)


 बुढ़ापा (जीवन का अन्तिम पड़ाव)
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old age photo

यह मेरा अन्तिम पड़ाव है,
बेवश और लाचार हो जाता,
बच्चों का खिलौना होकर,
बड़ों पर बोझ बन जाता हूॅ।
यहीं मेरे इतिहास के पन्ने,
खुद ब खुद खुलने लगते हैं,
अब तक का बहीखाता,
अब दिखने लगता है।
नफा और नुकसान अब,
दिमाग में आने लगते हैं,
बच्चे मुझसे खेलने लगते हैं,
बड़े तंग आ जाते हैं।
कभी हरा-भरा पेड़ था,
अब सूखकर ठूंठ हो गया हूॅ।
न जाने कब पककर टूट पड़ूगां,
सोचकर परेशान होता हूॅ
कभी-कभी खुद से कहता हूॅ,
हे भगवान्,
मुझे उठा ले,
अब सह न पाऊँगा।
यमराज के साथ जाने लगता हूॅ,
घूम-घूम कर देखता हूॅ,
क्या साथ ले जा रहा,
क्या छोड़कर आया हूॅ ।
दूर अर्थी दिख जाती है,
चार ही कंधों पर रहता हूॅ,
कहीं भीड़ बहुत अधिक,
कहीं गिने-चुने ही रहते हैं।
तब समझ में आता है,
मैं कुछ भी कर देता,
चार ही कंधे मिलने थे,।
लेकिन मेरे नाम के पीछे,
कितनी दुनिया भाग रही है,
बस मैंने यही कमाया,
और,
यही छोड़कर आया हूॅ।

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Friday, November 8, 2019

घर वापसी

घर वापसी
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Saas Bahu
किरण को और अधिक सहना भारी पड़ रहा था। घर है कि कबाड़खाना, जब देखो काम-काम बस काम ही काम, राजेश को कार्यशाला आठ बजे पहुंचना होता है, कार्यशाला भी घर से साठ किलोमीटर दूर है और बस से जातें हैं राजेश सो सुबह साढ़े पाँच ही बजे उठना पड़ता है किरण को, राजेश को तैयार करके ऑफिस भेजना उसके बाद    दो साल की बिटिया उठ जाती है। उसे देखना, फिर सत्तर-बहत्तर साल के सास-ससुर को देखना। नाश्ता-पानी भोजन आदि-आदि। चूंकि सास-ससुर बूढ़े हैं मदद तो करतें नहीं ऊपर से उनके साथ कुछ न कुछ लगा ही रहता है।  दो साल की बेटी के साथ भी कुछ न कुछ लगा ही रहता है। परिवार में पाँच व्यक्ति हैं, राजेश,
सास ससुर, बिटिया और खुद किरण। पाँचों का खान-पान अलग-अलग समय अलग-अलग, किरण ने राजेश से अलग होने को कई बार कहा पर राजेश कहतें, माँ-बाप की उम्र देखती हो कि नहीं? उन्हें छोड़कर कैसे अलग हो जाऊँ?"
आखिर एक दिन ऐसा भी आया कि किरण ने सास-ससुर के लिए कुछ भी करना बन्द कर दिया। वे बेचारे खुद बनाने-खाने लगे। किरण झांकने भी नहीं जाती। राजेश ने किरण को टोंकना शुरू किया। जब किरण पर कोई असर नहीं पड़ा तो एक दिन एक तमाचा जड़ दिया।
किरण को अपने मायके पर बड़ा गर्व था। गुस्से में मायके आ गई। यहाँ पर सभी ने राजेश को न देखकर उससे उसके बारे में पूछना शुरू किया। किरण ने सही-सही बता दिया। किरण के पिताजी बोले, "अभी इसी वक्त जैसे आई हो वापस चली जाओ अपने घर।क्या तुम सास-ससुर की सेवा नहीं करोगी? आखिर तुम्हारे भाइयों की बीवियों को हमारी देख-रेख करनी होगी या नहीं? या तुमको देखेंगी?  एक बात तो याद रखना राजेश के बिना इस घर में तुम्हारे लिए कोई जगह नहीं है न तो ससुराल वालों से बिगाड़ रखकर।"

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Wednesday, November 6, 2019

विमला बहन जी

विमला बहन जी

My teacher

बात कर रहा हूॅ जब मैं कक्षा पाँच में पढ़ता था। लड़कों के लिए विद्यालय में सीट नहीं खाली थी अतः पिताजी ने मेरा नाम लड़कियों के साथ लिखा दिया था। मैं विद्यालय में लड़कियों के साथ बैठता, जिसके कारण मेरे अन्दर एक हीन भावना आ गई थी। लड़के भी चिढ़ाते, "20 लड़कियों में एक लड़का नाक कटाने आया है।" जो मेरी हीन भावना को और बढ़ाने के लिए बहुत था। मैं लड़कों से बोल नहीं पाता था और लड़कियों को दोस्त नहीं बना पाता था। मैं उस समय पढ़ने में बहुत अच्छा था हमेशा ही अच्छे नम्बरों से पास होता था, बाद में संगति बिगड़ी और मैं बिगड़ा।
मैं ध्यान देता विमला बहनजी मुझ पर मेहरबान रहतीं थीं तो बहुत कड़क मिजाज की विद्यालय के जिस रास्ते से गुजरतीं हल्ला हो जाता, "विमला बहनजी आ रहीं है।" हर लड़का या लड़की दुबक जातें थें,ec सन्नाटा और केवल सन्नाटा ही रहता था।
एक दिन चपरासी ने मुझे बताया कि, "तुम्हें विमला बहनजी ने बुलाया है।" सुनते ही मुझे काटो तो खून नहीं लेकिन जाना तो पड़ा ही विमला बहनजी की बात जो थी, मैंने कांपते पैरों से उनके कमरे का दरवाजा खोला बोला, "मे आई कम इन मैडम?"
उन्होंने रोबीली आवाज में कहा, "यस कम इन।"
मैं कमरे घुसा, उन्होंने सर पर हाथ फेरते हुए कहा, "मैं तुम्हारी हीन भावना को अच्छी तरह समझती हूॅ पर विद्या का कोई स्थान नहीं होता चाहे तुम लड़कियों के बीच बैठो या लड़कों के बीच. विद्या समान ही रहेगी. बदलती हैं तो दिमागी दशा. तुम एक अच्छे विद्यार्थी हो मन लगाकर पढ़ो मुझे तुमसे आशा है।
उनकी बातें मन को लगीं मैं विद्यालय में प्रथम आया, नाम दूसरे विद्यालय में लिख गया।
काश,
विमला बहन जी फिर मिल जातीं।


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Friday, November 1, 2019

एक दीपावली ऐसी भी

एक दीपावली ऐसी भी

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इधर कुछ ऐसा संयोग बैठ जाता था कि विद्या के घर कोई त्यौहार नहीं मनाया जाता था।पिछले साल सास मर गयी थीं तो उसके पिछले साल ससुर जी।अतः दोनों साल कोई त्यौहार नहीं मनाया गया।अब इस साल पति की चाची मर गयीं अतः इस साल भी त्यौहारों पर रोक लग गयी लेकिन बच्चें तो बच्चें ही होंते हैं न कहाँ मानने वाले थे।दीपावली की तैयारी में लगे थे।घर-ऑगन साफ किया एक घरौंदा बनाया।उनके पिता मना करते रह गये पर कहाँ मानने वाले थे।विद्या ने पटाखे और दीये मंगवा दिये।बच्चें उन्हें सजाने लगे।पति ने मना किया तो बोली,"बच्चों का मन कैसे तोड़ दूं।घुटन सी महसूस हो रही है न? दो साल बिना त्यौहार के बीत गये। कहते हुए उसने सभी दरवाजे और खिड़कियां खोल दी ताकि ताजी हवा अन्दर आ सके।


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