Wednesday, January 29, 2020

                                पिता
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राम लाल जी सरकारी मुलाजिम थे।दुनिया की छल-कपट और लल्लो-चप्पो से दूर एक सीधे-सादे इंसान।पत्नी और दो बच्चों,एक लड़का मनोज तथा लड़की सुनीता, के साथ रहते हैं।ऊपरी कमाई की कुर्सी पर बैठ कर भी ईमानदारी से नौकरी की।कभी अपनी नीयत नहीं खराब की पैसे के प्रति।इसलिए कार्यालय में अधिकारियों तथा कर्मचारियों में अच्छी छवि के बावजूद उन्नति न कर सके।क्योंकि इसके लिए तेज-तर्रार चलता-फिरता होना आवश्यक था जबकि राम लाल जी ठहरे एक सीधे-सादे आदमी अपने काम से काम रखने वाले आदमी।
बैंक से लोन लेकर मनोज को एमबीबीएस करवाया।पैसे तो सुनीता की शादी के लिए रखे हुए थे सो सुनीता की शादी अपने दम पर की।मनोज डाॅक्टर बन गया।उन्हें तथा उनकी पत्नी को बड़ा गर्व होता जब मनोज कहता,"पापा-मम्मी रिटायरमेन्ट बाद आप लोग मेरे पास रहियेगा।पापा यह जमाना आप जैसों के लिए नहीं है।आप ठहरे देवता और जमाना दूसरे मिजाज का है।"
राम लाल जी रिटायर हो गए।मनोज की भी शादी हो गयी।
किन्तु उसकी पत्नी तेज निकली।राम लाल जी पत्नी से उसकी नहीं बनती थी।सो पत्नी के कारण वह माँ-बाप को अपने पास न रख सका।अतः राम लाल जी ने रिटायरमेन्ट के बाद ऑफिस से मिले पैसों से एक छोटा सा मकान बनवा लिया।जिन्दगी शान्ति से गुजर रही थी कि  राम लाल जी की पत्नी  का देहांत हो गया।राम लाल जी अकेले पड़ गये।मनोज के पास रहने लगे तो मनोज की पत्नी को राम लाल जी और अपने बच्चों को संभालना भारी हो गया।इसलिए राम लाल सुनीता के पास रहने लगे।लेकिन कितने दिन रहते?सुनीता के पति और ससुराल वालों को खटकने लगे अतः अब बेचारे अकेले ही रहतें हैं।भोजन-पानी के लिए एक नौकर लगा रखा है।

Lauchora

Monday, January 27, 2020

परदे

परदे
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Parda

सन्तोष कुमार पीडब्ल्यूडी में अवर अभियंता हैं। बेहद ईमानदार हैं ऊपरी कमाई से तो दूर से हाथ जोड़तें हैं, सहकर्मी उनका मजाक भी उड़ातें हैं, उन्हें "हरिश्चंद्र" कहतें हैं। लेकिन संतोष जी पर कोई फर्क नहीं पड़ता है।सोचतें है कि, "ऊपरी कमाई पाप होती है।"
पत्नी भी सीधी-सादी है, संतोष जी के परिवार में कुल चार ही लोग हैं वे खुद, पत्नी और दो लड़के। दोनों लड़के शादी योग्य हो चुके हैं जबकि संतोष जी रिटायरमेन्ट योग्य, पत्नी से संतोष जी अक्सर कहतें रहते हैं, "दोनों बच्चों को हम लोगों ने कितनी परेशानियों से पढ़ाया-लिखाया और बड़ा किया है, हम दोनों ही जानतें हैं, मेरी एक ही इच्छा है कि मेरे बच्चे मुझसे दो कदम आगे निकलें।मैं रिटायर होने वाला हूॅ, बस फिर जी भरकर आराम करूँगा, हमें क्या करना है कभी बड़े के पास रहेंगे तो कभी छोटे के पास, बस जिन्दगी आराम से गुजर जायेगी।"
इत्तेफाक से उनके दोनों लड़के उनके शहर में ही इंजीनियर हो गये। उनके साथ ही रहने लगे, संतोष जी को अपने सपने पूरे होते दिखने लगे। लड़के भी माँ-बाप का ध्यान रखने लगे। समय के साथ-साथ संतोष जी ने दोनो लड़कों की शादी कर दी। बहुएं आयीं चूँकि संतोष जी आजाद ख्याल के आदमी हैं अतः बहुओं से परदा नहीं करवाते हैं, उनका मानना है कि नजर और जुबान से बड़ा कोई परदा नहीं होता।
दिन बीतते गये आज के जमाने में दो बहुएं सास-ससुर के साथ एक साथ प्यार से रह जायें आश्चर्य जनक है न? संतोष जी की बहुएं भी जमाने से अलग नहीं हैं, सो दोनों में किसी न किसी बात पर खटपट होती रहती है। कभी एक बहू अपने कमरे को धोती तो पानी बहकर दूसरे के कमरे में आ जाता है तब दोनों बहुओं में कहा-सुनी हो जाती है।कभी एक बहू का बच्चा दूसरी बहू के कमरे में गन्दा कर देता है तो दोनों बहुओं में  खटपट हो जाती है। ऐसी ही छोटी-छोटी बातों पर दोनो बहुएं प्रायः लड़ने लगतीं हैं। धीरे-धीरे उनमें बोलचाल बन्द हो गयी। दोनों को शिकायत रहती है कि, "माँ जी, मेरे पक्ष में कुछ नहीं बोलतीं। "इसी शिकायत के चलते दोनों ने संतोष जी की पत्नी से बोलना छोड़ दिया। खटपट यहाँ तक पहुंच गयी कि दोनो लड़कों ने आपस में बोलना छोड़ दिया, फिर बात बढ़ी तो दोनों ने अलग अलग चूल्हे जला लिए।संतोष जी और उनकी पत्नी ने  दोनों लड़कों तथा बहुओं को खूब समझता लेकिन उनके समझ में कुछ न आया।दोनों लड़कों में तय हुआ कि माँ बड़े के साथ खायेगी और संतोष जी छोटे के साथ, संतोष जी ने सुना तो पत्नी से बोले,"हमने तो दोनों को कभी बाँटा नहीं फिर उन्होंने हम दोनों को क्यों बाँट लिया, नहीं हम दोनों नहीं बँटेंगे, अपना भोजन खुद बनायेंगे।"
इस तरह एक ही छत के नीचे एक परिवार तीन परिवारों में बँट गया। होली का त्यौहार आने वाला है सभी खरीदारी करने में लगे हुए हैं। संतोष जी के लड़कों ने अन्य सामानों के साथ-साथ कमरों के दरवाजे तथा खिड़कियों के लिए मोटे लम्बे और खूबसूरत परदे खरीदे। संतोष जी ने परदों को देखा तो उनकी खूब तारीफ की और अन्त में बोले, "इनसे अच्छे नजर ,जुबान और प्रेम के परदे होते हैं जिनके आगे सब परदे बेकार हैं।"
सुनकर दोनों लड़के तथा उनकी पत्नियां एक-दूसरे को देखने लगे जबकि संतोष जी की आवाज में एक दर्द छुपा हुआ था।


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Sunday, January 26, 2020

            

Thursday, January 23, 2020

भारत और मोदी

भारत और मोदी
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Modi and Bharat mata



यह भारत देश हमारा,
सारे जग से न्यारा है,
सभी धर्मों का समावेश यहाँ पर,
सभी को समान अधिकार मिला है,
इसीलिए तो भारत,

"माता"

कहलाता है।
मोदी जी की अगुवाई में,
उन्नति के मार्ग पर चल पड़ा है,
भारत में जो न हुआ कभी भी,
अब वह भी होने लगा है।
विश्व गुरु बनने की राह भी,
अब तो प्रशस्त हुई है,
जो सपना देखा भारत ने,
अब पूरा होने को है।
बस,
यही विनती है भारत की जनता से,
मोदी जी के हाथों को मजबूती दे,
और,
भारत को ऊँचाइयाँ छूने दे।

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Monday, January 20, 2020

                   माँ-बाप
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माँ-बाप इन दो शब्दों में ब्रम्हांड है माँ त्याग है तो बाप अनुशासन है।बाप अनुशासन सिखाता है तो माँ त्याग।जीवन के संघर्ष में दोनों का अलग-अलग महत्व है।बाप कभी-कभी मारता है तो सन्तान के लिए वह दुश्मन स्वरुप होता है लेकिन यदि देखा जायं तो यही मार जीवन-मार्ग पर चलना सिख्ती है।बाप दुश्मन होकर भी सबसे बड़ा मित्र होता है जिसे महत्व नहीं दिया जाता है।सच मानिए बाप बच्चों को मारता है तो बच्चे से अधिक कष्ट उसे ही होता है।लेकिन क्या अजीब विडम्बना है कि बड़े होकर बच्चे दोनो को भार समझने लगतें हैं।उन्हें पिछली पीढ़ी का समझने लगतें हैं लेकिन बच्चों को यह नहीं भूलना चाहिए कि वे पिछली पीढ़ी के ही सही लेकिन अनुभवी होतें हैं।अतः मैं तो कहूँगा कि उनका निरादर करने के बजाय बच्चों को उनके अनुभव का फायदा उठाना चाहिए।

Saturday, January 18, 2020

                       मेल
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आज के जमाने में शादी हो जाने के बाद दो भाई मेल से रहें आश्चर्यजनक है न?लेकिन आनंद बाबू और उनके भाई ठीक इसके विपरीत हैं।आनंद जी सीधे-सादे नौकरीपेशा साधारण पुरूष हैं उनके भाई गांव में खेतीबाड़ी का कार्य करते हैं।चूँकि गांव में पढ़ाई-लिखाई की अच्छी व्यवस्था नहीं है।अतः भाई के दोनों लड़कों और एक लड़की को आनंद जी ने शहर में अपने पास रखा।अपनी ही संतानों की तरह उन्हें पढ़ाया-लिखाया।उनका सारा खर्च आनंद जी ही उठातें हैं।भाई केवल खेतीबाड़ी करता है।अपने और आनंद जी के परिवार के लिए राशन की व्यवस्था वही करता है।दोनों घरों के अन्य खर्च आनंद जी उठाते हैं।अभी हाल ही में तो भाई की लड़की की शादी हुई है सारा खर्च आनंद जी ने ही तो उठाया था।भाई ने मेहमानों के भोजन-पानी की व्यवस्था की थी।इसीप्रकार आनंद जी के परिवार में कोई अवसर आता है तो भाई ही आनंद जी के सारे मेहमानों के भोजन की व्यवस्था करता है जबकि आनंद जी अन्य खर्च उठाते हैं।
      भाई के दोनों लड़कों को पढ़ा-लिखा कर उनके सरकारी अधिकारी बनने तक उनका पूरा खर्च आनंद जी ने ही तो उठाया है बिना किसी भेदभाव के।भाइयों के इस मेल की चर्चा दूर-दूर तक होती है और मिसाल दी जाती है।

Friday, January 17, 2020

साठ के ऊपर दम्पति

साठ के ऊपर दम्पति 
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old Age


पागलपन भी कैसा है यह, 
तुम बिन हम रह नहीं सकते, 
जीवन-संघर्ष किया है साथ तुम्हारे, 
रहेंगे भी तुम बिन हम कैसे?
जब जवां हम दोनों थे, 
वह समय भी याद है हमको, 
संघर्षरत जब हम दोनों थे,
अब तो तुम्हारा साथ  मिला है।
यह उम्र भी कितनी अजीब है, 
जवानी का संघर्ष बिता कर, 
फुर्सत से फिर हम दोनों हैं,
उड़ने का मन करता है, 
गर तुम साथ रहो तो।
अहोभाग्य मेरा है यह तो, 
तुम अब भी मेरे साथ खड़े हो, 
साथ जियें अब साथ मरें हम,
बस यही इच्छा है अब तो।।

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