परदे
सन्तोष कुमार पीडब्ल्यूडी में अवर अभियंता हैं। बेहद ईमानदार हैं ऊपरी कमाई से तो दूर से हाथ जोड़तें हैं, सहकर्मी उनका मजाक भी उड़ातें हैं, उन्हें "हरिश्चंद्र" कहतें हैं। लेकिन संतोष जी पर कोई फर्क नहीं पड़ता है।सोचतें है कि, "ऊपरी कमाई पाप होती है।"पत्नी भी सीधी-सादी है, संतोष जी के परिवार में कुल चार ही लोग हैं वे खुद, पत्नी और दो लड़के। दोनों लड़के शादी योग्य हो चुके हैं जबकि संतोष जी रिटायरमेन्ट योग्य, पत्नी से संतोष जी अक्सर कहतें रहते हैं, "दोनों बच्चों को हम लोगों ने कितनी परेशानियों से पढ़ाया-लिखाया और बड़ा किया है, हम दोनों ही जानतें हैं, मेरी एक ही इच्छा है कि मेरे बच्चे मुझसे दो कदम आगे निकलें।मैं रिटायर होने वाला हूॅ, बस फिर जी भरकर आराम करूँगा, हमें क्या करना है कभी बड़े के पास रहेंगे तो कभी छोटे के पास, बस जिन्दगी आराम से गुजर जायेगी।"
इत्तेफाक से उनके दोनों लड़के उनके शहर में ही इंजीनियर हो गये। उनके साथ ही रहने लगे, संतोष जी को अपने सपने पूरे होते दिखने लगे। लड़के भी माँ-बाप का ध्यान रखने लगे। समय के साथ-साथ संतोष जी ने दोनो लड़कों की शादी कर दी। बहुएं आयीं चूँकि संतोष जी आजाद ख्याल के आदमी हैं अतः बहुओं से परदा नहीं करवाते हैं, उनका मानना है कि नजर और जुबान से बड़ा कोई परदा नहीं होता।
दिन बीतते गये आज के जमाने में दो बहुएं सास-ससुर के साथ एक साथ प्यार से रह जायें आश्चर्य जनक है न? संतोष जी की बहुएं भी जमाने से अलग नहीं हैं, सो दोनों में किसी न किसी बात पर खटपट होती रहती है। कभी एक बहू अपने कमरे को धोती तो पानी बहकर दूसरे के कमरे में आ जाता है तब दोनों बहुओं में कहा-सुनी हो जाती है।कभी एक बहू का बच्चा दूसरी बहू के कमरे में गन्दा कर देता है तो दोनों बहुओं में खटपट हो जाती है। ऐसी ही छोटी-छोटी बातों पर दोनो बहुएं प्रायः लड़ने लगतीं हैं। धीरे-धीरे उनमें बोलचाल बन्द हो गयी। दोनों को शिकायत रहती है कि, "माँ जी, मेरे पक्ष में कुछ नहीं बोलतीं। "इसी शिकायत के चलते दोनों ने संतोष जी की पत्नी से बोलना छोड़ दिया। खटपट यहाँ तक पहुंच गयी कि दोनो लड़कों ने आपस में बोलना छोड़ दिया, फिर बात बढ़ी तो दोनों ने अलग अलग चूल्हे जला लिए।संतोष जी और उनकी पत्नी ने दोनों लड़कों तथा बहुओं को खूब समझता लेकिन उनके समझ में कुछ न आया।दोनों लड़कों में तय हुआ कि माँ बड़े के साथ खायेगी और संतोष जी छोटे के साथ, संतोष जी ने सुना तो पत्नी से बोले,"हमने तो दोनों को कभी बाँटा नहीं फिर उन्होंने हम दोनों को क्यों बाँट लिया, नहीं हम दोनों नहीं बँटेंगे, अपना भोजन खुद बनायेंगे।"
इस तरह एक ही छत के नीचे एक परिवार तीन परिवारों में बँट गया। होली का त्यौहार आने वाला है सभी खरीदारी करने में लगे हुए हैं। संतोष जी के लड़कों ने अन्य सामानों के साथ-साथ कमरों के दरवाजे तथा खिड़कियों के लिए मोटे लम्बे और खूबसूरत परदे खरीदे। संतोष जी ने परदों को देखा तो उनकी खूब तारीफ की और अन्त में बोले, "इनसे अच्छे नजर ,जुबान और प्रेम के परदे होते हैं जिनके आगे सब परदे बेकार हैं।"
सुनकर दोनों लड़के तथा उनकी पत्नियां एक-दूसरे को देखने लगे जबकि संतोष जी की आवाज में एक दर्द छुपा हुआ था।
आज के लिए इतना ही...धन्यवाद
अगर आपको यह पोस्ट अच्छी लगी हो तो कृपया कमेंट और शेयर करें... सुधीर श्रीवास्तव
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