प्रेम की भाषा
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राम प्रकाश जी की उम्र होगी लगभग ५६ साल की, साधारण परिवार से हैं और ऑफिस में बाबू हैं।बड़ी मुश्किल से कालोनी में मकान बनवा पायें हैं।इनको लक्ष्मण तथा लखन नाम बहुत पसंद है अतः दोनों लड़कों का नाम भी लक्ष्मण व लखन ही रख दिया। बड़े का नाम लखन तो छोटे का लक्ष्मण रखा।लखन कचहरी में पेशकार तो लक्ष्मण बैंक में नौकरी करता है। लखन की शादी भी कर चुके हैं। उसकी पत्नी छोटे कद की है साथ ही कुछ मोटी, कहने का मतलब गोल-मटोल है। लेकिन स्वभाव से बहुत अच्छी मिलनसार, हँस-मुख, दूसरों की कद्र करने वाली, बड़ों को उचित आदर देती है तो छोटों को उनका प्यार, कोई भी मौका हो हर मौके में सबकी सहयोगी, यही कारण है कि घर से लेकर पास-पड़ोस सब जगह पसंद की जाती है, किन्तु किस्मत की मारी शादी के पाँच साल बाद भी बच्चा न जन्म सकी।
लक्ष्मण भी शादी योग्य हो गया था सो राम प्रकाश जी ने उसकी भी शादी कर दी।आज-कल लड़का जे ई हो, बैंक में हो,
रेलवे में हो, एल आई सी में हो अर्थात कुल मिलाकर ऐसी ही सरकारी नौकरी में हो पत्नी के माने में वह किस्मत वाला होता है।लक्ष्मण तो बैंक में है पत्नी सुन्दर मिली। पढ़ी-लिखी भी है, लम्बी छरहरी। सुरभि (लक्ष्मण की पत्नी) ससुराल में रहने लगी तो हर क्षेत्र में अपना एकाधिकार जमाने की कोशिश करने लगी। जेठानी (कमला) की लोकप्रियता उसे पसंद न आती। वह सोचती, "कमला नाटी और मोटी है, मुझसे कम सुन्दर है, मैं अधिक पढ़ी-लिखी हूॅ तब मुझे अधिक प्यार मिलना चाहिए। मेरे में क्या कमी है जो उसे लोग अधिक पसंद करतें हैं?"
यह सोच उसकी कुढ़न में बदलने लगी। सास-ससुर हों या कमला सबसे कूढ़ने लगी। हर सवाल का जवाब उल्टा देने लगी।बात-बात पर गुस्सा उसकी नाक पर रहता, पास-पड़ोस से भी उसके सम्बन्ध बिगड़ते चले गए, धीरे-धीरे वह लक्ष्मण से अलग रहने को कहने लगी। लक्ष्मण टाल जाता था तो मुंह फुला लेती और कई-कई दिनों तक किसी से बात न करती। राम प्रकाश जी और उनकी पत्नी सब देख-समझ रहे थे।
जब बहुत अति हो गई तो लक्ष्मण से एक दिन कह दिया, "बेटा, अब अलग होने में ही भलाई है तुम्हारी भी तथा हम लोगों की भी।क्योंकि बहू का व्यवहार सहा नहीं जाता। कमला को बाँझ कहती है। हम लोगों को भी जो जी में आता है बक देती है।"
लक्ष्मण ने बहुत कोशिश की, कि अलग न हों लेकिन सुरभि की जिद व घर वालों से उसके व्यवहार के कारण उसने अलग ही होने में भलाई समझी। अतः सुरभि के साथ किराये के कमरे में रहने लगा।
एक साल बाद सुरभि गर्भवती हुई। डाॅक्टर को दिखाया तो उसने कहा, "केस बिगड़ा हुआ है, इन्हें आराम की सख्त जरूरत है।"
किसे बुलाया जाये समस्या थी, लक्ष्मण के घर वालों को सुरभि पसंद नहीं करती थी, मायके वालों ने अपनी मजबूरी जता दी।दुबारा डाॅक्टर को दिखाया तो उसने चेतावनी दे दी। थक-हार कर लक्ष्मण ने घर वालों को बताया। सुरभि बोली, "आयेगा कौन वही बाँझ?"
लक्ष्मण ने मजबूरी जताते हुए कहा, "सुरभि, बात समझा करो, चलो मान लेता हूॅ भाभी ही आयेंगी, लेकिन मत भूलो कि मौके पर गधे को भी बाप कहना पड़ता है।"
दूसरे दिन कमला पहुंच गई।पूरा काम संभाल लिया।लक्ष्मण से बोली, "देवर जी, आप अपनी नौकरी देखिए बस।सुरभि को मैं देख लूंगी।"
वह सुरभि की सेवा-सुश्रुषा में लग गयी। सुरभि को काम न करने देती। अबकी डाॅक्टर ने कहा, "हालत में सुधार है।बस बच कर रहिएगा।"
धीरे-धीरे दिन आ गया, सुरभि अस्पताल में भर्ती हो गई, कमला उसके साथ रहती।डाॅक्टर ने कहा, "ऑपरेशन होगा।"
सुरभि घबड़ाई, कमला समझाती , "कुछ नहीं होगा, मैं हूॅ।"
ऑपरेशन से बच्चा हुआ, सुरभि बहुत देर बाद बेड पर आई, होश आने पर बच्चे को देखा, लेकिन कमला को न देखकर बोली, "दीदी कहाँ है?"
कोई समझ नहीं पाया किसे पूछ रही है? वह बोली, "कमला दीदी को पूछ रही हूॅ।"
सभी भौंचक्के रह गए, कमला के लिए सुरभि के मुंह से "कमला दीदी" सुनकर, लक्ष्मण ने बताया, "बाहर बैठीं हैं, उन्होंने कोई बच्चा नहीं जन्मा है न इसलिये बच्चे को छूते डर रहीं हैं।"
सुरभि बोली, "बुला दो" उसकी ऑखों के कोरों से ऑसू बहने लगे।
तभी कमला आ गई, सुरभि ने उसे अपने पास बुला लिया, बच्चे को उसकी गोद में दे दिया, कमला समझ न पाई क्या हो रहा है?
सुरभि बोली, "दीदी, यह बच्चा तुम्हारा ही है।अगर तुम न आती तो न मैं रहती न यह बच्चा।"
कहकर वह सुबकने लगी, पता नहीं कमला का एक हाथ सुरभि के बालों को कब सहलाने लगा।
उसे पता तब चला जब सुरभि ने कहा, "दीदी क्षमा----------"
आगे न बोल सकी।
कमला ने कहा,"पगली कहीं की।"
आज के लिए इतना ही...धन्यवाद
अगर आपको यह पोस्ट अच्छी लगी हो तो कृपया कमेंट और शेयर करें... सुधीर श्रीवास्तव
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