Sunday, September 29, 2019

                 बच्चों को संस्कार दें अहंकार नहीं
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राकेश धर त्रिपाठी बजी एक धनाढ्य व्यक्ति हैं।लक्ष्मी उन पर कृपा बनाये रखती है सो घर में सबकुछ है।स्वयं,पत्नी कामना,पुत्र वैभव और पुत्री लाली यही उनका परिवार है।त्रिपाठी जी के माता-पिता भी साथ ही रहते हैं।त्रिपाठी जी माँ-बाप को जी-जान से चाहते हैं।माँ-बाप के भक्त हैं।पत्नी कामना उन्हें इसीलिये श्रवण कुमार कहती है।अब आप या मैं खुद इसे पत्नी का ताना ही कह सकतें हैं।लेकिन त्रिपाठी जी पर पत्नी के इस ताने का कोई असर नहीं पड़ता है।ऐसा नहीं कामना सास-ससुर का अपमान करती है।ध्यान बहुत रखती है उनका।
दोनों बच्चे बड़े होते गये।कमाने भी लगे।वैभव डाॅक्टर है तो लाली इंजीनियर।लेकिन अहंकार तो दूर-दूर तक नहीं है दोनों में।ठीक पिता की तरह विनम्र हैं दोनों।सीनियर्स हो जूनियर्स सभी से प्रेम से ही बोलते हैं।त्रिपाठी जी और उनकी पत्नी अधेड़ होने लगे सो वैभव की शादी करनी चाही।लेकिन वैभव तैयार न था।कहता,"पहले लाली की शादी करिये।"
आखिर हार कर त्रिपाठी जी ने  लाली की शादी कर डाली। इत्तेफाक कहिए या कुछ भी।कामना और लाली की सास को एक बार एक ही साथ दिल का दौरा पड़ा।लाली असमंजस में थी किसे देखूँ माँ को या सास को।दोनों को सेवा की जरूरत थी।त्रिपाठी जी और वैभव से पूछा तो एक ही उत्तर मिला,"तुम्हें यहाँ आने की कोई जरूरत नहीं।अपनी सास को देखो।यहाँ हम लोग हैं।जब सास ठीक हो जायें तो आकर माँ को देख जाना।"

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