Wednesday, October 30, 2019

                कानाफूसी मत कीजिये
           ------------------------------------
जी हाँ,
          कभी भी, कानाफूसी मत कीजिये।मैंने बहुत से लोगों को देखा है कि बातचीत के दौरान कानाफूसी करतें हैं।कानाफूसी जहाँ एक ओर दूसरों की शिकायत करने का द्योतक है तो दूसरी ओर दूसरों का मजाक उड़ाने का।कानाफूसी के दौरान हम अपनी वास्तविक आवाज का प्रयोग न करके बनावटी धीमी आवाज का प्रयोग करतें हैं जिसका सीधा असर हमारे दिल दिमाग तथा शरीर पर पड़ता है।कानाफूसी के दौरान हमें डर रहता है कि हमारी बातें अमुक व्यक्ति न सुन ले जो हमारे दिल पर सीधा प्रभाव डालता है। कानाफूसी में दिल और दिमाग दोनों को ही कन्ट्रोल करना पड़ता है जो हमारी काफी ऊर्जा को बर्बाद कर देता है।कान भी धीमी आवाज सुनने के आदी हो जातें हैं जिससे दिमाग पर अतिरिक्त दवाब पड़ता है जिससे हमारी जिन्दगी कम हो जाती है।

विद्वेष

विद्वेष
-------------

Love Traingle

कभी-कभी व्यक्ति विद्वेष के कारण अर्थ का अनर्थ सोच लेता है। कोई भी निर्णय लेने से पहले रिश्ते की गहराई तक जाना चाहिए। महेश को शीला और दीपक का एक साथ रहना अच्छा नहीं लगता था क्योंकि वह शीला से बेइन्तहा प्यार करता था।शीला को दीपक के साथ हँसते-बोलते देखकर वह जल भुन जाता था। ऐसा नहीं कि शीला महेश से प्यार नहीं थी करती थी दिलो-जान से महेश को चाहती थी। यह बात महेश जानता भी था। ऐसी हालत में शीला का दीपक के साथ हँसना-बोलना उसे अच्छा न लगना लाज़िमी हो जाता है न?
एक दिन महेश ने शीला से पूछ ही लिया, "दीपक तुम्हारा कौन है? तुम्हारा उससे रिश्ता क्या है सही-सही बताओ।"
शीला बोली, "महेश, तुमने शक करके अच्छा नहीं किया. मैं तुमसे प्यार करती हूॅ , बेइन्तहा करती हूॅ, लेकिन तुमने मुझ पर शक किया सच्चे प्यार में शक! इसकी यही सजा है कि मैं तुमसे शादी न करूं और सुनो तुमसे शादी नहीं की तो क्वांरी ही रहूंगी, रही दीपक की बात? तो सुनो हम दोनों ने भाई-बहन के अलावा कुछ नहीं समझा।"

आज के लिए इतना ही...धन्यवाद
अगर आपको यह पोस्ट अच्छी लगी हो तो कृपया कमेंट और शेयर करें... सुधीर श्रीवास्तव

ऐसे ही और कहानियां पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करे

Friday, October 25, 2019

दीपावली आने वाली है

दीपावली आने वाली है
------------------------
Diwali


दशहरा गया,
दीपावली आने वाली है,
स्वागत लक्ष्मी-गणेश का करना है,
घर-घर साफ हो रहा,
स्वागत की तैयारी है, 
वे आयें या न आयें,
स्वागत तो करना ही है।
मन में उमंग जैसी है,
दीपमाला सजानी है,
और दारिद्र दूर करने की कामना,
उनसे करनी है,
अच्छा है, 
घर-ऑगन साफ करें हम,
लेकिन मन?
वह भी तो साफ होना चाहिए।।

आज के लिए इतना ही...धन्यवाद
अगर आपको यह पोस्ट अच्छी लगी हो तो कृपया कमेंट और शेयर करें... सुधीर श्रीवास्तव

ऐसे ही और कहानियां पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करे

Wednesday, October 23, 2019

ऊँ श्री लक्ष्मी देवी माताय नमः

ऊँ श्री लक्ष्मी देवी माताय नमः
------------------------------
Laxmi mata

माँ लक्ष्मी, 
तुम जगत्माता हो।
द्वार मेरे तुम आओ न,
आस लगाये बैठा हूॅ, 
हाथ पसारे राह ताक रहा हूॅ, 
अंखियां थक गयीं तकते-तकते।
रूप तुम्हारा अति प्यारा है, 
महिमा तुम्हारी अति न्यारी है, 
जानता हूॅ संतोष न होगा,
जितना आओ मेरे घर में।
भण्डार बड़ा नहीं है मेरा,
पर खाली खाली लगता है, 
तुम बिन तो माता, 
यह जग सूना सूना लगता है।
जग तुम्हारा दास बना है,
आगे-पीछे भाग रहा है, 
जिसको भी मैंने देखा, 
तुम्हारी चाहत रखता है।
न रखो हाथ मेरे सर पर, 
चरण-रज ही रख दो माता, 
मैं धन्य हो जाऊँगा, 
रज तुम्हारे चरणों की पाकर।।
माँ लक्ष्मी, 
तुम जगत्माता हो।।

आज के लिए इतना ही...धन्यवाद
अगर आपको यह पोस्ट अच्छी लगी हो तो कृपया कमेंट और शेयर करें... सुधीर श्रीवास्तव

ऐसे ही और कहानियां पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करे

Tuesday, October 8, 2019

सास और बहू

सास और बहू
---------------------



मालती जी आयु होगी यही लगभग ५९ वर्ष। सीधी-सादी,सुशील, कुछ पुराने कुछ नये ख्यालात की मिश्रण, चाहे कोई भी हो सबके साथ मिलकर रहना उनका यह स्वभाव बहुत अच्छा है। पति होंगे ६० साल के अभी दो महीने और नौकरी में रहना है उन्हें, घर से कार्यशाला लगभग ५० किमी पर है और ड्यूटी आठ बजे से सो घर से साढ़े पाँच बजे सुबह ही निकल जातें हैं। बड़ा बेटा कुछ दिनों पहले तक साथ ही रहता था। अब तो बाहर नौकरी लग गयी है। जब वह साथ ही रहता था तो आठ बजे ऑफिस जाता था। अतः मालती जी सुबह साढ़े चार ही उठ जातीं हैं। पहले झाड़ू-पोछा लगाकर पति के लिये नाश्ता व दोपहर का लंच तैयार कर देंती हैं, फिर उसके बाद बड़े बेटे के लिये नाश्ता व दोपहर का लंच तैयार करतीं थीं।
जब बेटा शादी लायक हो गया तो उसकी शादी कर दी। सोचा,"अब कुछ आराम हो जायेगा, बहू हाथ बँटायेगी" लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ बहू तो आठ- साढ़े आठ बजे तक सोकर उठती है, जब उसका पति ऑफिस जाने लगता तब। तब तक बेटे को नाश्ता व लंच मालती जी दे चुकी रहतीं थीं। बहू आजकल की बहुओं की ही तरह है। ५९ साल की सास की बराबरी खुद की ३० साल से करती है। दिन का भोजन मालती जी बनातीं हैं तो रात का भोजन बहू बनाती है। यदि बर्तन माँजने वाली महरी नहीं आई तो बहू कभी बर्तन नहीं धोती है। धोयेंगी तो मालती जी ही, नहीं बर्तन जूठा ही पड़ा रहेगा।
आजकल अधिकांश बहुओं में एक आदत खराब होती है मायके के आगे ससुराल पक्ष को छोटा देंखतीं हैं । अपने मायके पर बहुत घमण्ड करतीं हैं वह भूल जातीं हैं कि किस भी मौके पर पहले ससुराल पक्ष ही खड़ा होगा।
मालती जी के माता-पिता अभी जिन्दा है पिता की उम्र ८४ साल तथा माँ की उम्र ८२ साल होगी। अब इस उम्र में उनसे कोई काम तो होता नहीं हाँ अपना ही काम कर लेंते हैं यही बहुत है। उन लोगों ने भोजन बनाने के लिए एक महाराजिन रखी है। वह कभी-कभी दो-चार दिन नहीं आती है या इतनी उम्र में कुछ न कुछ बिमारी लगी रहती है क्योकि मालती जी को कोई भाई नहीं है इसलिये मौके पर उन्हें अपने माँ-बाप को भी देखने जाना पड़ता है। तब घर में केवल उनके पति और बहू रह जातें हैं। चूँकि पति सुबह जातें हैं सो मालती जी के न रहने पर ससुर को नाशता-लंच देने के लिए बहू को उठना पड़ता है जो उसे खलता है। मालती जी कह देती है, "आप अपने माँ-बाप के पास चलीं जातीं हैं तो पापा जी और अपने एक बेटे को देखना मेरे लिए संभव नहीं हैं।"
बेचारी मालती जी!

आज के लिए इतना ही...धन्यवाद
अगर आपको यह पोस्ट अच्छी लगी हो तो कृपया कमेंट और शेयर करें... सुधीर श्रीवास्तव

ऐसे ही और कहानियां पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करे

यही दुनिया है
------------------
दूसरों में कमी खोजतें सभी,
अपनी कमी कोई खोजता ही नहीं,
दूसरों का किया याद रखतें हैं सभी,
अपना किया याद रखतें ही नहीं।
दूसरा गलत रहता है सोचतें हैं सभी,
खुद को गलत कोई समझता नहीं,
कैसा स्वभाव है मानव का यह,
मेरी समझ कुछ आता नहीं।
याद आतीं हैं अपनी अच्छाइयां ही,
दूसरों की अच्छाइयां याद आतीं नहीं,
हम ही सही हैं सोचतें हैं सभी,
दूसरा भी सही है हम सोचतें नहीं।
गर बुराई खोंजे खुद की हम,
तो खुद में केवल बुराई ही नजर आयेगी,
और दूसरे की अच्छाइयां खोंजे अगर,
तो दूसरों की केवल अच्छाइयां ही नजर आयेंगी।।

Sunday, October 6, 2019

                       बँटवारा -2
                     -----------------
जगदीश प्रसाद जी धनाढ्य थे।बात बहुत पहले की है।भगवान का दिया जगदीश प्रसाद जी के पास कुछ था जो आज से लगभग साठ-सत्तर पहले एक आदमी के पास होना चाहिए।मकान था या कोठी।आगे बहुत बड़ी बगिया जिसमें तरह-तरह के पेड़-पौधे थे।फिर मकान।मकान में बहुत बड़ा सा ऑगन इतना बड़ा कि जगदीश प्रसाद जी अपने चार लड़कों तथा दों बेटियों की शादी उसी मकान से किया था।फिर उसके बाद दों बेटों ने अपनी संतानों(जिसमें से एक बेटे को तीन पुत्र चार बेटियां थीं दूसरे बेटे की दों लड़कियां थीं)की शादी भी उसी मकान से की।तीसरे लड़के ने अपना मकान बनवा लिया।चौथा लड़का बाहर नौकरी कर रहा था।जगदीश प्रसाद जी की एक पत्नी स्वर्ग सिधार गयीं थीं जिनसे सब बड़ी संतान एक लड़का था स्वामी प्रसाद।तब जगदीश प्रसाद जी ने दूसरी शादी की उस पत्नी से उनके तीन लड़के तथा दो लड़कियां हुईं।
इतना बड़ा परिवार छोड़कर जगदीश प्रसाद जी उनकी पत्नियां परलोक चले गये।चारों भाइयों में मेल था। किन्तु स्वामी प्रसाद का परिवार भी बड़ा ही था सो उनके लड़कों ने उनसे इस मकान में न रहने को कहा।किन्तु स्वामी प्रसाद की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी कि दूसरा मकान बनवाते।लड़को ने अलग होने को दवाब डाला तो स्वामी प्रसाद ने अपने सौतेले भाइयों से बँटवारे की माँग रखी।भाई न माने तो स्वामी प्रसाद कोर्ट चले गये।उन्होंने कोर्ट से कहा कि,"चूँकि मैं अपने पिता की पहली पत्नी से इकलौता वारिस हूॅ अतः मकान के आधे हिस्से में मेरा कब्जा होता है"
बहुत दिनों तर्क-वितर्क होता रहा।किन्तु कोर्ट न मानी।स्वामी प्रसाद को मकान का एक चौथाई हिस्सा दे दिया।अन्य सौतेले तीनों भाइयों ने अफनी रज्जामंदी से बँटवारा कर लिया।नतीजा यह हुआ कि अब न तो बगिया है और न ही ऑगन।सब कुछ खत्म हो गया।
                      चरित्र हीन
                   ----------------
चरित्र हीनता का मतलब प्रायः हम उस पुरूष या स्त्री से रखतें हैं जो पर स्त्री या पर पुरुष से सम्बन्ध रखतें हैं।बात भी सही है किन्तु मेरा विचार है कि इसके साथ-साथ चरित्र हीनता के और भी कारण हैं मसलन,जबान का खराब होना,व्यवहार का अच्छा न होना, अहंकार करना आदि-आदि।है कि नहीं?बदजुबान व्यक्ति व्यवहार कुशल नहीं हो सकता।और अहंकारी अपनी दुनिया में खोया रहता है।वह दूसरों को अपने छोटा समझता है।वह भी व्यावहारिक नहीं सकता।आखिर जिसे हम वाकई चरित्र हीन कहतें हैं लोग उससे दूर ही रहतें हैं।ठीक यहीं बात और तरह के चरित्र हीनों पर भी तो लागू होती है। हम उनसे दूर ही रहतें हैं।उनसे घृणा करतें हैं।जिसे अंग्रेज़ी में कहें तो उनका,"SOCIAL BOYCOTT" कर देतें हैं।ठीक वैसे ही जैसे पर पुरुष या स्त्री से सम्बन्ध रखने वाले का। यह सब क्या है अन्य प्रकार की चरित्र हीनता तो है।
दुनिया उसीका ,"SOCIAL BOYCOTT" जिससे घृणा हो जाती है।हम लाख अपने को अच्छा समझतें हों लेकिन यदि ये कमियां हममें हैं हम चरित्र हीन ही कहे जायेंगे।पर पुरुष या स्त्री से सम्बन्ध रखने वाला व्यक्ति जुबान का अच्छा,व्यवहार कुशल हो सकता है,अहंकार उसको हो जरूरी नहीं।लेकिन अन्य प्रकार के चरित्र हीन जुबान व व्यवहार से अकुशल तथा अहंकारी ही रहेगा।

Saturday, October 5, 2019

जय श्री राम

   जय श्री राम
-------------------
Lord ram

जय राम जय राम रमैया,
दुनिया में तुम अद्भुत हो,
नहीं कोई ऐसा नर देखा,
जो पुरूषोत्तम कहलाता हो।
तोड़ा शिव-धनुष भरी सभा में,
परशुराम क्रोध में बहुत आये,
लेकिन जब तुमको जाना,
नतमस्तक हुए तुरन्त ही।
भक्तों के प्रति श्रद्धा थी तुमको,
शबरी के जूठे फल खाये थे,
हनुमान की भक्ति पर,
उनको भरत समान मान लिया।
श्याम वर्ण हे धनुष धारी,
अहं रावण का चूर करने वाले,
हे पुरूषोत्तम जय श्री राम,
सीता सहित है तुमको प्रणाम।।

आज के लिए इतना ही...धन्यवाद
अगर आपको यह पोस्ट अच्छी लगी हो तो कृपया कमेंट और शेयर करें... सुधीर श्रीवास्तव

ऐसे ही और कहानियां पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करे

Friday, October 4, 2019

जय माता रानी

    जय माता रानी
 ---------------------

Goddess Durga

तुम आई हो द्वार मेरे,
मन प्रफुल्लित हो गया,
देख नहीं पाता हूॅ तुमको,
पर अनुभव तो करता हूॅ।
एक नयी शक्ति का होता है संचरण,
सुख-संपत्ति लेकर आई हो,
आशा यह होती है,
नवजीवन मुझको तुम दोगी।
आशा इसकी भी होती है,
शक्ति का अपने प्रयोग करोगी,
कष्ट दुःख अब सब हर लोगी,
कपट भी हमसे दूर रहेगा,
अहं मेरा मिट जायेगा।
नौ दिन पृथ्वी पर रहकर,
अपने धाम चली जाओगी,
लेकिन इन दिनों की छाया,
हमेशा हम पर रखोगी।

आज के लिए इतना ही...धन्यवाद
अगर आपको यह पोस्ट अच्छी लगी हो तो कृपया कमेंट और शेयर करें... सुधीर श्रीवास्तव

ऐसे ही और कहानियां पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करे

                         महाजन
                    ---------------
महाजन प्रसाद नाम के ही महाजन नहीं थे।सच में महाजन थे।पेट बाहर निकला हुआ,दाँत कुछ बड़े-बड़े,पैसा बहुत था उनके पास,कपड़ों में तेल लगा हुआ क्योंकि तेल का व्यापार करते थे।सभी से ऐंठ कर बात करना लेकिन ग्राहक देख कर आवाज को विनम्र या तेज कर देना,जैसा ग्राहक वैसी भाषा,खाने-पीने पहनने का कोई शौक नहीं,केवल पैसे पर जान देने वाले।उम्र यही कोई पैंतालीस साल की।
पत्नी और भी कंजूस।कंजूसी के कारण ही सूती साड़ी पहनती।जबान की बहुत तेज।सीधे-सीधे कहती,"लेवे के होवे त ल नाहीं त दूसर दुकान देख ल।"
उसकी भाषा से तो आप समझ ही गए होंगे कि अनपढ़-गँवार थी।हालाँकि महाजन प्रसाद जी भी बहुत लिखे-पढ़े नहीं थे।अपना नाम भी टेढ़ा-मेढ़ा लिखते थे।लेकिन एक ही शौक था कि लड़का आलोक पढ़-लिख ले।इसीलिये उसे व्यापार से दूर ही रखते थे।ईश्वर की मर्जी आलोक पढ़ने में बहुत तेज था।बड़ा होकर ऊँचे पद की नौकरी पा गया।महाजन प्रसाद ने उसकी शादी करनी चाही तो हर लड़की को नापसंद कर देता।आखिरकार शहर की लड़की से शादी कर बैठा।अब उस लड़की को महाजन प्रसाद तथा उनकी पत्नी का रहन-सहन पसंद नहीं आया सो पति को लेकर अलग हो गई।
महाजन प्रसाद और उनकी पत्नी मन मसोस कर रह गए।आलोक ने माँ-बाप से मतलब रखना छोड़ दिया। कुछ दिनों बाद आलोक की पत्नी को एक लड़का हुआ।पत्नी के चलते आलोक ने यह बात माँ-बाप को नहीं बताई कि कौन अपनी बेइज्जती कराये।लेकिन बाबा-दादी का दिल पोते को गोद लेने के लिए मचलने लगा।अतः एक दिन बिना बताये ही महाजन प्रसाद सपत्नीक आलोक के घर पहुंच गए।
आलोक की पत्नी ने उन्हें अलग कमरा दे दिया नौकरों वाला।बच्चे को उनके पास जाने से रोकने लगी।महाजन प्रसाद को यह बेइज्जती पसंद नहीं आई।पोते को गोद में खिलाने का शौक शौक ही रह गया। दो दिन में ऊब गये।वापस होने को हुए तो आलोक गेट तक छोड़ने आया।जब वह माँ-बाप के पैर छूने लगा तो महाजन प्रसाद बोले,"बेटा, सबकी आशा करना लेकिन ईश्वर से बेटा मत माँगना।"