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Monday, January 27, 2020

परदे

परदे
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Parda

सन्तोष कुमार पीडब्ल्यूडी में अवर अभियंता हैं। बेहद ईमानदार हैं ऊपरी कमाई से तो दूर से हाथ जोड़तें हैं, सहकर्मी उनका मजाक भी उड़ातें हैं, उन्हें "हरिश्चंद्र" कहतें हैं। लेकिन संतोष जी पर कोई फर्क नहीं पड़ता है।सोचतें है कि, "ऊपरी कमाई पाप होती है।"
पत्नी भी सीधी-सादी है, संतोष जी के परिवार में कुल चार ही लोग हैं वे खुद, पत्नी और दो लड़के। दोनों लड़के शादी योग्य हो चुके हैं जबकि संतोष जी रिटायरमेन्ट योग्य, पत्नी से संतोष जी अक्सर कहतें रहते हैं, "दोनों बच्चों को हम लोगों ने कितनी परेशानियों से पढ़ाया-लिखाया और बड़ा किया है, हम दोनों ही जानतें हैं, मेरी एक ही इच्छा है कि मेरे बच्चे मुझसे दो कदम आगे निकलें।मैं रिटायर होने वाला हूॅ, बस फिर जी भरकर आराम करूँगा, हमें क्या करना है कभी बड़े के पास रहेंगे तो कभी छोटे के पास, बस जिन्दगी आराम से गुजर जायेगी।"
इत्तेफाक से उनके दोनों लड़के उनके शहर में ही इंजीनियर हो गये। उनके साथ ही रहने लगे, संतोष जी को अपने सपने पूरे होते दिखने लगे। लड़के भी माँ-बाप का ध्यान रखने लगे। समय के साथ-साथ संतोष जी ने दोनो लड़कों की शादी कर दी। बहुएं आयीं चूँकि संतोष जी आजाद ख्याल के आदमी हैं अतः बहुओं से परदा नहीं करवाते हैं, उनका मानना है कि नजर और जुबान से बड़ा कोई परदा नहीं होता।
दिन बीतते गये आज के जमाने में दो बहुएं सास-ससुर के साथ एक साथ प्यार से रह जायें आश्चर्य जनक है न? संतोष जी की बहुएं भी जमाने से अलग नहीं हैं, सो दोनों में किसी न किसी बात पर खटपट होती रहती है। कभी एक बहू अपने कमरे को धोती तो पानी बहकर दूसरे के कमरे में आ जाता है तब दोनों बहुओं में कहा-सुनी हो जाती है।कभी एक बहू का बच्चा दूसरी बहू के कमरे में गन्दा कर देता है तो दोनों बहुओं में  खटपट हो जाती है। ऐसी ही छोटी-छोटी बातों पर दोनो बहुएं प्रायः लड़ने लगतीं हैं। धीरे-धीरे उनमें बोलचाल बन्द हो गयी। दोनों को शिकायत रहती है कि, "माँ जी, मेरे पक्ष में कुछ नहीं बोलतीं। "इसी शिकायत के चलते दोनों ने संतोष जी की पत्नी से बोलना छोड़ दिया। खटपट यहाँ तक पहुंच गयी कि दोनो लड़कों ने आपस में बोलना छोड़ दिया, फिर बात बढ़ी तो दोनों ने अलग अलग चूल्हे जला लिए।संतोष जी और उनकी पत्नी ने  दोनों लड़कों तथा बहुओं को खूब समझता लेकिन उनके समझ में कुछ न आया।दोनों लड़कों में तय हुआ कि माँ बड़े के साथ खायेगी और संतोष जी छोटे के साथ, संतोष जी ने सुना तो पत्नी से बोले,"हमने तो दोनों को कभी बाँटा नहीं फिर उन्होंने हम दोनों को क्यों बाँट लिया, नहीं हम दोनों नहीं बँटेंगे, अपना भोजन खुद बनायेंगे।"
इस तरह एक ही छत के नीचे एक परिवार तीन परिवारों में बँट गया। होली का त्यौहार आने वाला है सभी खरीदारी करने में लगे हुए हैं। संतोष जी के लड़कों ने अन्य सामानों के साथ-साथ कमरों के दरवाजे तथा खिड़कियों के लिए मोटे लम्बे और खूबसूरत परदे खरीदे। संतोष जी ने परदों को देखा तो उनकी खूब तारीफ की और अन्त में बोले, "इनसे अच्छे नजर ,जुबान और प्रेम के परदे होते हैं जिनके आगे सब परदे बेकार हैं।"
सुनकर दोनों लड़के तथा उनकी पत्नियां एक-दूसरे को देखने लगे जबकि संतोष जी की आवाज में एक दर्द छुपा हुआ था।


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Tuesday, December 24, 2019

बड़ा कौन

बड़ा कौन
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three Brothers

राम बाबू और श्याम बाबू दोनों भाइयों में बहुत घनिष्ठता थी, घनिष्ठता होती भी क्यों न? दोनों बहुत बड़े व्यापारी थे, धनाढ्य और हर सुख-संपत्ति से संपन्न, हर सुख में एक-दूसरे का साथ देने वाले, दोनों ही अपने तीसरे भाई कन्हैया बाबू को हीन भावना से देखते थे। किस्मत के मारे कन्हैया बाबू न तो धनाढ्य थे न ही सुख-संपत्ति से संपन्न थे। जहाँ एक ओर राम बाबू तथा श्याम बाबू के दो-दो लड़के थे वहीं कन्हैया बाबू के तीन लड़कियां थी। कन्हैया बाबू नौकरी-पेशे वाले थे, साधारण रहन-सहन था उनका, राम बाबू और श्याम बाबू हमेशा ही कहते रहते थे कि कन्हैया को कंधा देने वाला कोई नहीं है। कन्हैया सुनकर दुःखी रहते थे लेकिन उत्तर नहीं देते थे, अतः भाइयों से कुछ दूरी बनाकर ही रहते थे।
राम बाबू और श्याम बाबू की पहुंच भी ऊँचे-ऊँचे तबके तक थी। किन्तु कन्हैया बाबू ने इसका फायदा न उठाना ही बेहतर समझा न ही राम तथा श्याम बाबू उनकी कोई मदद ही करते थे। बेचारे कन्हैया बाबू कम में ही सन्तुष्ट रहते थे।
एक बार श्याम बाबू बहुत बीमार पड़े।राम बाबू के पास इतना समय नहीं था कि उनकी बीमारी में काम आते, केवल मोबाइल पर ही हाल-चाल ले लेते थे। किन्तु कन्हैया बाबू तथा उनके परिवार ने श्याम बाबू की देखभाल में दिन-रात एक कर दिया, तन-मन-धन से उनकी देखभाल में लग रहे, आखिर मेहनत रंग लाई, श्याम बाबू ठीक हो गये तो कन्हैया बाबू को गले लगाते हुए बोले,"धन से बहुत लोग बड़े होते हैं मगर दिल से बड़ा होना कोई तुमसे सीखे।"

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Thursday, December 5, 2019

नारद मुनि का काम-वेदना से पीड़ित होना

       नारद मुनि का काम-वेदना से पीड़ित होना
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Narad Muni


एक बार नारद मुनि ने हिमालय की एक गुफा में घोर तपस्या की, इन्द्र डरे कि नारद मेरा सिंहासन लेना चाहते हैं (क्योंकि देवताओं में सबसे परेशान और डरपोक इन्द्र ही हैं।सिंहासन के लिए हमेशा परेशान रहतें हैं और सिंहासन पर कभी किसी असुर का तो कभी साधु पुरूष का खतरा बना रहता है।) तुरन्त कामदेव और बसन्त को नारद की तपस्या भंग करने का आदेश दे डाला।
बहुत कोशिश के बाद भी किसी प्रकार कामदेव और बसन्त नारद की तपस्या भंग नहीं कर सके वापस चले गये, इधर तपस्या पूरी होने पर नारद जागे तो उन्हें यह घमण्ड हो गया कि, "मैंने काम पर विजय पा ली है।"
किन्तु यह नहीं जानते थे कि उसी स्थान पर भगवान् शंकर ने कामदेव को अपनी तीसरी ऑख से भस्म कर दिया था तथा रति व देवताओं की विनती पर कामदेव को पुनः जीवित भी कर दिया था लेकिन यह भी कहा कि,"इस जगह से जितनी दूर तक नजर जायेगी कामदेव निष्क्रिय रहेंगे"
जिसके कारण ही नारद पर कामदेव का वश नहीं चला और नारद ने समझ लिया, "मैंने काम पर विजय प्राप्त कर ली है।"
उन्होंने भगवान् शंकर को यह बात बताई। भगवान् शंकर ने कहा, "नारद, यह बात किसी और से मत कहना खासकर भगवान् विष्णु से।"लेकिन नारद घमण्ड में चूर कहाॅ मानने वाले थे, अतः ब्रह्मा तथा विष्णु से भी यह बात बता दी। तब भगवान् शंकर ने नारद को लीला से वशीभूत कर दिया। उधर विष्णु ने नारद के मार्ग पर एक शहर की रचना कर डाली। शहर का राजा शीलनिधि को बनाया और उसकी पुत्री श्रीमती का स्वयंवर  रचाया। नारद ने जब श्रीमती को देखा उनमें कामवासना पैदा हो गई, सोचने लगे, "किस उपाय से श्रीमती को प्राप्त करूँ चूँकि नारियां सुन्दरता पसंद करतीं हैं इसलिए भगवान् विष्णु का रूप लेना उचित होगा।"
सोचकर उन्होंने भगवान् विष्णु से उनका रूप मांगा, नारद को कामवासना से ग्रस्त देख कर विष्णु ने उन्हें सबक सिखाना चाहा तथा रूप अपना देकर मुंह वानर का दे दिया। नारद खुशी-खुशी स्वयंबर में गये। श्रीमती ने उनके वानर मुंह पर घास तक नहीं डाली। जब कि अन्य लोगों को नारद का मुनि रूप ही दिखा।।
सभा में भगवान् शंकर के दो गण नारद की रक्षा के लिए मौजूद थे। नारद के वानर रूप को वे जानते थे। इधर भगवान् विष्णु अदृश्य रूप में सभा में आये और श्रीमती को ब्याह ले गये, तो शंकर के गणों ने नारद से कहा,"मुनिवर, आइने में अपना मुंह तो देख लीजिये वानर जैसा है।"
नारद ने जब आइने में खुद को देखा तो बहुत दुःखी और क्रोधित हुए। शिव गणों को श्राप दे दिया कि, "तुम दोनों ब्राह्मण की ही संतान होगे लेकिन राक्षस।"
भगवान् विष्णु को श्राप दिया कि, "जिस प्रकार तुमने स्त्री के लिए मुझे तड़पाया है तुम नारी के वेश में सबको छलते हो, असुरों को नारी के वेश में ही विष पान करवाया, भस्मासुर को नारी वेश में ही भस्म किया, जाओ मैं श्राप देता हूॅ कि वैसे ही स्त्री वियोग में तुम भी तड़पोगे।तुमने मुझे वानर का रूप दिया है न तो यही वानर तुम्हारे सहायक होंगे।"

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Friday, November 15, 2019

ढकोसला

ढकोसला
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श्याम लाल जी यों तो ५६  साल के हैं और पेशे से व्यापारी, उनका व्यापार भी खूब चलता है, सो अपने बड़े बेटे को अपना सहयोगी बना लिया है। स्वभाव से भी बहुत अच्छे हैं। जिससे उनके व्यवहारिक भी बहुत अधिक हैं। सभी रिश्तेदारों तथा जान-पहचान वालों को बाँधें रहतें हैं। कोई उनकी मौसी का लड़का है तो कोई मामी का, कोई गाँव का पाटीदार है तो कोई गाँव का चौकीदार, कहने का आशय सभी से मेल-व्यवहार बनाकर रखतें हैं। हैं तो सर्वाहारी। किसी चीज से परहेज नहीं करते। यहाँ तक कि अपने परिवार में हर शादी के बाद मांसाहार पार्टी करतें हैं।
लेकिन एक बिमारी से बहुत ग्रस्त रहतें हैं बेचारे, मौके पर धार्मिक बन जातें हैं। कोई कार्य करने से पहले पंडित जी से मुहूर्त निकलवातें हैं। व्यापार पर कब जाना उचित रहेगा? किस दिशा की ओर मुंह करके जाना उचित रहेग? आज दिशा-शूल है कि नहीं? कहीं शादी पड़ी जाये तो पंडित जी मुहूर्तों की लाइन लगा देते हैं। लाख बेइज्जती हो जाये परन्तु काम मुहूर्त पर ही करेंगे, उनकी लड़की की गोद भराई (Engagement) थी। पंडित जी ने कहा, "लड़के वालों के आने का मुहूर्त  ११:०० बजे हैं और गोद भराई का मुहूर्त  ३:०० से ६:०० बजे तक और आप (लड़की वालों) लोगों को वहाँ ४:०० बजे पहुंच जाना चाहिए। वह पंडित जी पर इतना विश्वास करतें हैं या मुहूर्त से डरते हैं कि लड़के वालों को तो ११.०० बजे होटल में बुला लिया खुद आये ४:०० बजे, अब सोचिए लड़के वाले कितने पक गए होंगे? उसके कितने मेहमान बिना नाश्ता-भोजन किये ही भूखे वापस चले गए। लड़के के बाप झल्ला कर रह गए लेकिन श्याम लाल जी मुहूर्त से मजबूर थे। मुहूर्त उन पर इस कदर हावी रहतें हैं कि मांसाहार पार्टी का भी मुहूर्त निकलवातें हैं और पंडित जी निकाल भी देतें हैं। साथ में शराब पीने का मुहूर्त भी निकाल लेतें हैं।
ऐसा नहीं कि यह मुहूर्त-बिमारी केवल श्याम लाल जी को ही हो उनके पूरे परिवार को है।
लड़की दूसरे के घर ब्याह गयी जो यह सब नहीं मानता, उस पर भी मुहूर्त-बिमारी है। कोई भी काम करना होगा सास-ससुर से नहीं पूछेगी अपने माँ-बाप से कहकर पंडित जी से निकलवायेगी, फिर तो सास-ससुर ही क्या ब्रह्मा भी कहें तब भी वह माँ-बाप के द्वारा बताए गए मुहूर्त पर ही काम करेगी। श्याम लाल जी के लड़की के घर में इस हस्तक्षेप का यह असर पड़ा कि सास-ससुर हों या ससुराल का कोई सदस्य कोई उसके बीच में बोलता ही नहीं कौन अपनी बेइज्जती कराये। क्योंकि वह वही करेगी जैसा उसके माँ-बाप बतायेंगे।नतीजा-धीरे धीरे ससुराल वालों से उसकी दूरी बढ़ने लगी। सास-ससुर तो उसके बीच में वैसे भी नहीं बोलतें लेकिन जब कभी अपने बेटे को मुहूर्त-बिमारी से ग्रस्त होते देखतें हैं तो उसे टोक देतें हैं परन्तु बेटा भी क्या करे बेचारा जब पत्नी और उसके माँ-बाप मुहूर्त-बिमारी से बुरी तरह ग्रस्त हैं।

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Wednesday, November 13, 2019

बिटिया रानी

बिटिया रानी 
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daugther father

कमलेन्द्र जी ने नीलू को बहुत प्यार और अरमानों से बड़ा किया था, करतें भी क्यों न नीलू उनकी अकेली संतान जो ठहरी। पत्नी नीलू के बचपन में ही स्वर्ग सिधार गयीं थीं। कमलेन्द्र ही उसके सब कुछ थे। माँ-बाप भाई-बहन सब, अच्छी से अच्छी शिक्षा दिलाई, अच्छे से अच्छे कपड़े पहनाते, नीलू की तबीयत जरा सी खराब होती बेचारे परेशान हो जाते, किसी भी चीज की मांग नीलू की जिद में बदलती उससे पहले वह सामान हाजिर हो जाता। दिन बीते  नीलू बड़ी होती गई लेकिन कमलेन्द्र जी का दिमाग उसके प्रति नहीं बदला, उनकी निगाह में नीलू बच्ची रहती, नतीजतन नीलू जिद्दी होती गयी, जहाँ कहती,"पापा, यह सामान चाहिए।"
पापा दौड़ पड़ते बाजार की तरफ, कमलेन्द्र जी की एक बहन थी। वह समझाती,"कमल, नीलू को इतना दिमाग मत चढ़ाओ, कभी शादी करोगे इसकी, तब क्या लड़के वाले इसके नखड़े उठायेंगे? सोचो।"
परन्तु कमलेन्द्र केवल एक हँसी में बातों में उड़ा देते। कहते,"दीदी, नीलू के आदमी को घर जंवाई बना लूंगा पर नीलू को अपने से अलग नहीं करूंगा।"
बहन उनकी बातों पर हँस कर रह जाती, कहती, "मेरा काम तुम्हें समझाना था समझा दिया, आगे तुम जानो और तुम्हारा काम।"
कमलेन्द्र पुराने रवैये पर अड़े रहे,  नीलू दिन प्रतिदिन जिद्दी होती गयी, उसके सपनों को भी पंख लग गये, अतः थोड़ी अभिमानी हो गई।
कमलेन्द्र जी ने बहुत कोशिश की उसकी शादी करने की लेकिन नतीजा फिस्स। नीलू को कोई लड़का पसंद नहीं आता, सभी लड़कों में कमी निकाल देती। परिणामस्वरूप नीलू  45 साल के उम्र में भी क्वांरी ही रह गई।

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Friday, November 8, 2019

घर वापसी

घर वापसी
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Saas Bahu
किरण को और अधिक सहना भारी पड़ रहा था। घर है कि कबाड़खाना, जब देखो काम-काम बस काम ही काम, राजेश को कार्यशाला आठ बजे पहुंचना होता है, कार्यशाला भी घर से साठ किलोमीटर दूर है और बस से जातें हैं राजेश सो सुबह साढ़े पाँच ही बजे उठना पड़ता है किरण को, राजेश को तैयार करके ऑफिस भेजना उसके बाद    दो साल की बिटिया उठ जाती है। उसे देखना, फिर सत्तर-बहत्तर साल के सास-ससुर को देखना। नाश्ता-पानी भोजन आदि-आदि। चूंकि सास-ससुर बूढ़े हैं मदद तो करतें नहीं ऊपर से उनके साथ कुछ न कुछ लगा ही रहता है।  दो साल की बेटी के साथ भी कुछ न कुछ लगा ही रहता है। परिवार में पाँच व्यक्ति हैं, राजेश,
सास ससुर, बिटिया और खुद किरण। पाँचों का खान-पान अलग-अलग समय अलग-अलग, किरण ने राजेश से अलग होने को कई बार कहा पर राजेश कहतें, माँ-बाप की उम्र देखती हो कि नहीं? उन्हें छोड़कर कैसे अलग हो जाऊँ?"
आखिर एक दिन ऐसा भी आया कि किरण ने सास-ससुर के लिए कुछ भी करना बन्द कर दिया। वे बेचारे खुद बनाने-खाने लगे। किरण झांकने भी नहीं जाती। राजेश ने किरण को टोंकना शुरू किया। जब किरण पर कोई असर नहीं पड़ा तो एक दिन एक तमाचा जड़ दिया।
किरण को अपने मायके पर बड़ा गर्व था। गुस्से में मायके आ गई। यहाँ पर सभी ने राजेश को न देखकर उससे उसके बारे में पूछना शुरू किया। किरण ने सही-सही बता दिया। किरण के पिताजी बोले, "अभी इसी वक्त जैसे आई हो वापस चली जाओ अपने घर।क्या तुम सास-ससुर की सेवा नहीं करोगी? आखिर तुम्हारे भाइयों की बीवियों को हमारी देख-रेख करनी होगी या नहीं? या तुमको देखेंगी?  एक बात तो याद रखना राजेश के बिना इस घर में तुम्हारे लिए कोई जगह नहीं है न तो ससुराल वालों से बिगाड़ रखकर।"

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Wednesday, November 6, 2019

विमला बहन जी

विमला बहन जी

My teacher

बात कर रहा हूॅ जब मैं कक्षा पाँच में पढ़ता था। लड़कों के लिए विद्यालय में सीट नहीं खाली थी अतः पिताजी ने मेरा नाम लड़कियों के साथ लिखा दिया था। मैं विद्यालय में लड़कियों के साथ बैठता, जिसके कारण मेरे अन्दर एक हीन भावना आ गई थी। लड़के भी चिढ़ाते, "20 लड़कियों में एक लड़का नाक कटाने आया है।" जो मेरी हीन भावना को और बढ़ाने के लिए बहुत था। मैं लड़कों से बोल नहीं पाता था और लड़कियों को दोस्त नहीं बना पाता था। मैं उस समय पढ़ने में बहुत अच्छा था हमेशा ही अच्छे नम्बरों से पास होता था, बाद में संगति बिगड़ी और मैं बिगड़ा।
मैं ध्यान देता विमला बहनजी मुझ पर मेहरबान रहतीं थीं तो बहुत कड़क मिजाज की विद्यालय के जिस रास्ते से गुजरतीं हल्ला हो जाता, "विमला बहनजी आ रहीं है।" हर लड़का या लड़की दुबक जातें थें,ec सन्नाटा और केवल सन्नाटा ही रहता था।
एक दिन चपरासी ने मुझे बताया कि, "तुम्हें विमला बहनजी ने बुलाया है।" सुनते ही मुझे काटो तो खून नहीं लेकिन जाना तो पड़ा ही विमला बहनजी की बात जो थी, मैंने कांपते पैरों से उनके कमरे का दरवाजा खोला बोला, "मे आई कम इन मैडम?"
उन्होंने रोबीली आवाज में कहा, "यस कम इन।"
मैं कमरे घुसा, उन्होंने सर पर हाथ फेरते हुए कहा, "मैं तुम्हारी हीन भावना को अच्छी तरह समझती हूॅ पर विद्या का कोई स्थान नहीं होता चाहे तुम लड़कियों के बीच बैठो या लड़कों के बीच. विद्या समान ही रहेगी. बदलती हैं तो दिमागी दशा. तुम एक अच्छे विद्यार्थी हो मन लगाकर पढ़ो मुझे तुमसे आशा है।
उनकी बातें मन को लगीं मैं विद्यालय में प्रथम आया, नाम दूसरे विद्यालय में लिख गया।
काश,
विमला बहन जी फिर मिल जातीं।


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Friday, November 1, 2019

एक दीपावली ऐसी भी

एक दीपावली ऐसी भी

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इधर कुछ ऐसा संयोग बैठ जाता था कि विद्या के घर कोई त्यौहार नहीं मनाया जाता था।पिछले साल सास मर गयी थीं तो उसके पिछले साल ससुर जी।अतः दोनों साल कोई त्यौहार नहीं मनाया गया।अब इस साल पति की चाची मर गयीं अतः इस साल भी त्यौहारों पर रोक लग गयी लेकिन बच्चें तो बच्चें ही होंते हैं न कहाँ मानने वाले थे।दीपावली की तैयारी में लगे थे।घर-ऑगन साफ किया एक घरौंदा बनाया।उनके पिता मना करते रह गये पर कहाँ मानने वाले थे।विद्या ने पटाखे और दीये मंगवा दिये।बच्चें उन्हें सजाने लगे।पति ने मना किया तो बोली,"बच्चों का मन कैसे तोड़ दूं।घुटन सी महसूस हो रही है न? दो साल बिना त्यौहार के बीत गये। कहते हुए उसने सभी दरवाजे और खिड़कियां खोल दी ताकि ताजी हवा अन्दर आ सके।


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Wednesday, October 30, 2019

विद्वेष

विद्वेष
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Love Traingle

कभी-कभी व्यक्ति विद्वेष के कारण अर्थ का अनर्थ सोच लेता है। कोई भी निर्णय लेने से पहले रिश्ते की गहराई तक जाना चाहिए। महेश को शीला और दीपक का एक साथ रहना अच्छा नहीं लगता था क्योंकि वह शीला से बेइन्तहा प्यार करता था।शीला को दीपक के साथ हँसते-बोलते देखकर वह जल भुन जाता था। ऐसा नहीं कि शीला महेश से प्यार नहीं थी करती थी दिलो-जान से महेश को चाहती थी। यह बात महेश जानता भी था। ऐसी हालत में शीला का दीपक के साथ हँसना-बोलना उसे अच्छा न लगना लाज़िमी हो जाता है न?
एक दिन महेश ने शीला से पूछ ही लिया, "दीपक तुम्हारा कौन है? तुम्हारा उससे रिश्ता क्या है सही-सही बताओ।"
शीला बोली, "महेश, तुमने शक करके अच्छा नहीं किया. मैं तुमसे प्यार करती हूॅ , बेइन्तहा करती हूॅ, लेकिन तुमने मुझ पर शक किया सच्चे प्यार में शक! इसकी यही सजा है कि मैं तुमसे शादी न करूं और सुनो तुमसे शादी नहीं की तो क्वांरी ही रहूंगी, रही दीपक की बात? तो सुनो हम दोनों ने भाई-बहन के अलावा कुछ नहीं समझा।"

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Tuesday, October 8, 2019

सास और बहू

सास और बहू
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मालती जी आयु होगी यही लगभग ५९ वर्ष। सीधी-सादी,सुशील, कुछ पुराने कुछ नये ख्यालात की मिश्रण, चाहे कोई भी हो सबके साथ मिलकर रहना उनका यह स्वभाव बहुत अच्छा है। पति होंगे ६० साल के अभी दो महीने और नौकरी में रहना है उन्हें, घर से कार्यशाला लगभग ५० किमी पर है और ड्यूटी आठ बजे से सो घर से साढ़े पाँच बजे सुबह ही निकल जातें हैं। बड़ा बेटा कुछ दिनों पहले तक साथ ही रहता था। अब तो बाहर नौकरी लग गयी है। जब वह साथ ही रहता था तो आठ बजे ऑफिस जाता था। अतः मालती जी सुबह साढ़े चार ही उठ जातीं हैं। पहले झाड़ू-पोछा लगाकर पति के लिये नाश्ता व दोपहर का लंच तैयार कर देंती हैं, फिर उसके बाद बड़े बेटे के लिये नाश्ता व दोपहर का लंच तैयार करतीं थीं।
जब बेटा शादी लायक हो गया तो उसकी शादी कर दी। सोचा,"अब कुछ आराम हो जायेगा, बहू हाथ बँटायेगी" लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ बहू तो आठ- साढ़े आठ बजे तक सोकर उठती है, जब उसका पति ऑफिस जाने लगता तब। तब तक बेटे को नाश्ता व लंच मालती जी दे चुकी रहतीं थीं। बहू आजकल की बहुओं की ही तरह है। ५९ साल की सास की बराबरी खुद की ३० साल से करती है। दिन का भोजन मालती जी बनातीं हैं तो रात का भोजन बहू बनाती है। यदि बर्तन माँजने वाली महरी नहीं आई तो बहू कभी बर्तन नहीं धोती है। धोयेंगी तो मालती जी ही, नहीं बर्तन जूठा ही पड़ा रहेगा।
आजकल अधिकांश बहुओं में एक आदत खराब होती है मायके के आगे ससुराल पक्ष को छोटा देंखतीं हैं । अपने मायके पर बहुत घमण्ड करतीं हैं वह भूल जातीं हैं कि किस भी मौके पर पहले ससुराल पक्ष ही खड़ा होगा।
मालती जी के माता-पिता अभी जिन्दा है पिता की उम्र ८४ साल तथा माँ की उम्र ८२ साल होगी। अब इस उम्र में उनसे कोई काम तो होता नहीं हाँ अपना ही काम कर लेंते हैं यही बहुत है। उन लोगों ने भोजन बनाने के लिए एक महाराजिन रखी है। वह कभी-कभी दो-चार दिन नहीं आती है या इतनी उम्र में कुछ न कुछ बिमारी लगी रहती है क्योकि मालती जी को कोई भाई नहीं है इसलिये मौके पर उन्हें अपने माँ-बाप को भी देखने जाना पड़ता है। तब घर में केवल उनके पति और बहू रह जातें हैं। चूँकि पति सुबह जातें हैं सो मालती जी के न रहने पर ससुर को नाशता-लंच देने के लिए बहू को उठना पड़ता है जो उसे खलता है। मालती जी कह देती है, "आप अपने माँ-बाप के पास चलीं जातीं हैं तो पापा जी और अपने एक बेटे को देखना मेरे लिए संभव नहीं हैं।"
बेचारी मालती जी!

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Monday, September 30, 2019

एक औरत ऐसी भी

एक औरत ऐसी भी
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Saas Bahu

वैसे तो औरतें जैसी भी हों, सीधी, समझदार, विनम्र, सहनशील आदि-आदि। लेकिन अधिकांशतः औरतों में एक आदत बुरी ही पाई जाती है, वे बातूनी बहुत होंती हैं और अपनी सास की शिकायत तो बढ़-चढ़ कर करतीं हैं। अधिकांश औरतें शादी के बाद स्वयं को और अपने मायके वालों को ससुराल पक्ष की अपेक्षा अच्छा समझतीं हैं।ससुराल पक्ष की हर छोटी-बड़ी शिकायत, जो टाली जा सकतीं हैं, किसी से कहें या न कहें अपनी माँ से जरूर कहतीं हैं।माँ भी उनकी हाँ में हाँ मिलाकर उनको ससुराल पक्ष के खिलाफ करतीं हैं।
लेकिन विमला जी ठीक इसके विपरीत हैं। अपनी सास या ससुराल पक्ष की कोई भी शिकायत किसी से नहीं करतीं हैं। यहाँ तक कि अपनी माँ या पति से भी नहीं।यदि कोई शिकायत रहती भी है, तो उसे उम्र का तकाजा मानकर टाल जातीं हैं। उनके दिमाग में यह बात हमेशा ही गूँजती रहती है कि वह इस घर की बहू हैं तो सास की ही वजह से हैं। न सास होतीं, न पति पैदा होता, यदि कोई दूसरी औरत अपने ससुराल पक्ष की शिकायत उनसे करती है तो यह कहकर चुप करा देतीं हैं कि,"यह तुम्हारी समस्या है, मैं सुनकर क्या करूँगी।"
इसीलिये वे जहाँ मुहल्ले के बड़े-बुजुर्ग की निगाह में भली रहतीं हैं, वहीं पुरूषों की पसंदीदा औरत हैं तथा औरतों की नजर में खटकतीं रहतीं हैं। लेकिन विमला जी इन सब की परवाह न करते हुए अपनी सास की सेवा करतीं हैं तथा ससुराल पर जान देती हैं। उनके एक लड़का और एक लड़की हैं। दोनों पर इसका असर पड़ता गया।
लड़की की शादी हो गई है। वह भी माँ से सीखे संस्कारों के कारण ही अपने ससुराल पक्ष की बड़ी कद्र करती है। यदि कभी भूल से भी वह विमला जी से कोई शिकायत कर देती है तो विमला जी उसकी पूरी बात सुनकर उसे समझाकर चुप करा देंती हैं ।ऐसा जतातीं हैं कि उसकी बातों को गौर से नहीं सुना। लेकिन शिकायत का हल शालीनता से खोज ही लेंती हैं।अधिकतर लड़की ही बात का बतंगड़ बनाते दिखती है, जिस पर वह बिना मोह-माया के लड़की को डाँट देती हैं। अब तो हालात यह है कि लड़की ससुराल पक्ष की कोई भी शिकायत नहीं करती।
समय पर उन्होंने लड़के की भी शादी कर दी। चूँकि लड़का जो देखता आया है अपनी पत्नी को वही सिखाता है। एक बार विमला जी बहुत बीमार पड़ गयीं। उधर उनकी लड़की की सास पहले से ही बीमार चल रहीं थीं। लड़की विमला जी मिलना चाहती है। लेकिन विमला जी की बहू ने यह कहकर उसे रोक दिया कि, "बीबी जी, आप अपनी सास को देखिये मैं अपनी सास को देख रहीं हूॅ।माँ जी इतना नहीं बीमार हैंं कि उन्हें देखने आपको आना पड़े।हाँ, जब ऐसी हालत आयेगी आपको खबर कर दिया जाएगा।"
विमला जी ने यह बातें सुन ली अपनी बहू को गले लगा कर कहा,"मुझे ऐसी ही बहू चाहिए थी, मैं बहुत खुश किस्मत हूॅ।"

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Monday, September 23, 2019

औलाद

औलाद
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Aulaad

ईश्वर का दिया सब कुछ था राम नाथ जी के पास, माँ-बाप का मकान, धन-दौलत-वैभव सब कुछ था। नहीं थी तो एक औलाद। बेचारे कहाँ-कहाँ नहीं दौड़े। कितनी मनौतियां नहीं मनाई लेकिन सब बेकार, थक-हार कर औलाद होने की उम्मीद छोड़ बैठे थे, न जाने किसकी दुआओं से उसके घर में किलकारियाँ गूँजी कि एक पुत्र रत्न की प्राप्ति उन्हें हुई। चूँकि शादी के बारह साल बाद पुत्र प्राप्त हुआ था उनकी खुशी का ठिकाना न रहा। खूब बड़ा भोज किया, शहनाई बजवायीं।
पुत्र दिन-ब-दिन बड़ा होता गया, बाबा-दादी का भी प्यारा था। वे अपनी ऑखों से ओझल नहीं होने देते थे उसे। जहाँ जाते अपने साथ ले जाते। खूब लाड़-प्यार करते थे। हर जिद पूरी कर देते थे। नतीजा वही हुआ जो माँ-बाप के कन्ट्रोल के बिना होना था। पुत्र जिद्दी हो गया। अब तो यह बात सत्य है कि माँ-बाप के साथ संतान जितनी अनुशासित रहेगी किसी और के साथ नहीं रह सकती केवल अपने चाचा को छोड़कर। बाबा-दादी, नाना-नानी तो बच्चे को दुलार करेंगे ही, लड़का हाईस्कूल पास करके इण्टर में पहुंच गया तो जिद्दी होने के साथ-साथ महत्वाकांक्षी भी हो गया।
लोगों ने इंजीनियरिंग की कोचिंग करने की सलाह दी, पर लड़के की इच्छा थी कि कोचिंग तो करेंगे ही लेकिन बाइक से जाऊँगा और उसी से वापस आऊँगा। पन्द्रह-सोलह के लड़के को बाइक न देना ही उचित समझा गया अतः बाइक नहीं दी गई।लड़के को हर जिद पूरी करवाने की आदत थी लेकिन यह जिद पूरी न होते देख अवसाद में चला गया। माँ-बाप से बोलना छोड़ दिया अकेले ही रहता। बहुत दवा की गई तब अब ठीक है लेकिन देर हो चुकी थी नौकरी के लिए उम्र सीमा समाप्त हो चुकी थी।
राम नाथ जी चिन्ता में डूबे रहते हैं लेकिन उनकी पत्नी अब भी लड़के के ऊपर मरी जातीं हैं। मकान है तो दस कमरे का ऑगन है, पोर्च है यानि मकान में सब कुछ है, पर राम नाथ जी के तीन भाई और हैं। जिनके हिस्से पर भी उनकी पत्नी ऑख गड़ाये बैठीं  थीं। न तो राम नाथ जी, न पत्नी लड़के के बारे में कुछ सोचतें हैं। न ही लड़का अपने बारे में कुछ सोचता है। राम नाथ जी के बाद माँ-बेटे का गुजर कैसे होगा ईश्वर ही जाने।

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Saturday, September 21, 2019

रिटायर पापा

रिटायर पापा

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retirement

पापा रोडवेज में फोरमैन हुआ करते थे।नौकरी में थे तो हँस-मुख थे। माँ जब वह पचपन साल के थे उनका साथ छोड़कर चलीं गईं, तब से पापा अकेले से पड़ गये। किसी से अपना दुःख-दर्द नहीं कह पाते हैं, अपने मन की बात भी नहीं कहते हैं। ऑफिस की देर होती रहती थी लेकिन भाभी को जल्दी भोजन बनाने के लिए नहीं कहते थे। देर से ही सही ऑफिस जरूर जाते थे। शाम को आते चुपचाप कुर्सी पर निढाल बैठ जाते थे पर पानी नहीं मांगते थे। भाभी ने जब दे दिया पी लेते थे या खुद ही फ्रिज से निकाल कर पी लेते थे। लेकिन साथ में कुछ खाने की उम्मीद भी नहीं करते थे। चाय मिल गयी तो पी लिया नहीं चुप मारकर रह जाते थे। उनकी एक आदत थी जो अब भी है सुबह बासी मुंह गर्म पानी लगभग डेढ़ लीटर पीते हैं फिर उसके बाद एक कप शुद्ध दूध की चाय अपने हाथ से स्वयं बनाकर पीते हैं। माँ थीं तो बराबर ध्यान देती थीं किन्तु जब से वह न रहीं सुबह कभी दूध नहीं मिलता तो कभी चाय बनाने का बर्तन, पापा बिना चाय पिये ही रह जातें हैं। माँ के रहते हुए यदि सुबह चाय के लिए दूध नहीं पाते थे तो हंगामा मचा देते थे लेकिन अब कोई हंगामा नहीं। शायद समय की नज़ाकत समय समझ चुके हैं ।
अब तो पापा रिटायर हो चुके हैं सो दिन भर घर में ही रहतें हैं। भइया के बच्चों के साथ दिन बिताते हैं। कभी-कभी भाभी भी गजब कर देतीं हैं अगर पापा सोये रहतें हैं तब भी बच्चों को उनके पास भेज देतीं हैं। सोने का मन होते हुए भी पापा बिना मन के बच्चों के साथ भारी मन से खेलने लगतें हैं। वैसे तो पापा बच्चों को रोज पार्क में घुमाने ले जातें हैं। लेकिन भाभी का उम्मीद लगाना कि वह घुमाने तो ले ही जायेंगे उन्हें बुरा लगता है। अब बासठ-पैसठ साल के बुजुर्ग से किसी बात की उम्मीद करना बेकार है कि नहीं?
भाभी का यह उम्मीद करना कि वे बच्चों को पढ़ाने के साथ-साथ सब्जी वगैरह ला दिया करें उन्हें बुरा लगता है। वे अपनी जिन्दगी अपने हिसाब से जीना चाहते हैं पर भाभी जब कोई काम थोपतीं हैं तो उनका बुरा मानना लाज़िमी है। पापा पढ़ने-लिखने के बहुत शौकीन है सो अक्सर ही कुछ न कुछ पढ़ते-लिखते रहतें हैं उस समय उन्हें अवरोध पसंद नहीं रहता है जब भाभी उस समय भी कोई काम कह देंती हैं तो पापा को कितना कष्ट होता है कोई नहीं समझ सकता।
मेरा तो विचार है कि रिटायर व्यक्ति को अपने मन-मुताबिक दिन-चर्या से रहने देना चाहिए क्योंकि जब वह अपने हिसाब से जियेगा तो ज्यादा खुश रहेगा और लम्बी उम्र जियेगा। उस पर किसी काम को थोप कर उससे कार्य करने को मजबूर करना जहाँ एक ओर उसकी खुशियों को उससे छीनता है वहीं दूसरी ओर उसकी उम्र कम करता है।

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Tuesday, September 17, 2019

एक रात यमराज आये पास मेरे

एक रात यमराज आये पास मेरे
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Yamraj

एक रात की बात बताऊँ,
यमराज आये थे पास मेरे,
जगाया मुझे,
बोले,
"उठ बेटा,
चल अब मेरे साथ,
समय तेरा पूरा हो गया।"
मैं जागा,
उनको देखा,
काले-कलूटे से थे वे,
उनका भैंसा द्वार पर खड़ा-खड़ा,
जुगाली कर रहा था।
मैंने कहा,
"कौन हो भाई,
मेरे पास क्यों आये हो?
मैं दान आदि में विश्वास नहीं करता,
मुझसे कुछ न पाओगे।"
रंग बदला यमराज के चेहरे का,
बोले,
"मैं कुछ लेने नहीं,
तेरी उम्र पूरी हुई,
तुझको ही लेने आया हूॅ,
चल मरने को तैयार हो जा।"
मैं बोला,
"अभी-अभी मैं उठा हूॅ,
वह भी तुमने उठा दिया है,
सुबह के केवल पाँच बजे हैं,
मैं नौ बजे के बाद उठता हूॅ,
अभी तो कहीं जा नहीं सकता,
मरने की बात दूर है।"
यमराज तमतमा उठे,
बोले,
"तेरी इतनी हिम्मत,
जानता नहीं यमराज हूॅ मैं  !"
मैं बोला,
"कोई भी हो,
डरता नहीं किसी से मैं,
पहली बात यह कहता हूॅ,
जबान संभाल कर बात करो,
तुम मुझे जानते नहीं,
इस गली का दादा हूॅ मैं,
क्या तुमको डर नहीं लगता,
वह भैंसा तुम्हारा ही है न,
गोबर कर गेट गन्दा कर डाला है,
जाओ पहले गोबर साफ करो,
तब मुझसे बात करना आकर।"
यमराज गुस्से में लाल हो गये,
मुझे मारने को गदा उठाया,
मैंने भी बन्दूक लेनी चाही,
तभी पत्नी की आवाज कानों में पड़ी,
"किस बेवकूफ का भैंसा है यह,
यहाँ कहाँ से आ गया,
गेट गन्दा कर डाला है,
ए जी उठिए तो जरा,
उसे ढूँढ कर लाइये,
और इस भैंसे को दूर यहाँ से भगाइए।"
सुनकर मेरी पत्नी की बातें,
यमराज की कंपकंपी छूट गयी,
बोले,
"बेटा,
क्या तू अपनी पत्नी से डरता नहीं,
बड़े ताज्जुब की बात है,
मुझे भी वह उपाय बताओ,
पत्नी मेरी मुझसे डरा करे।"
पत्नी बोल पड़ी तुरन्त ही,
"कहाँ हो यार,
मैं कब से चिल्ला रही,
क्या कानों  में नहीं घुसी?"
मैंने देखा,
यमराज घबड़ाये से थे,
मैं बोला,
"भाई,
तुम चाहे जो कोई भी हो,
मैं नहीं जानता,
लेकिन अभी तो चल सकता नहीं,
पत्नी से मैं बहुत डरता हूॅ,
पहले उसकी आज्ञा सुनूगां,
तुम्हारे बारे में बाद में सोचूंगा,
पहले भैंसा भगाना है जरूरी।"
सुनते ही यमराज बोले,
"सच है,
पत्नी से दुनिया डरती है,
अभी तो मैं भैंसा लेकर भागता हूॅ,
फिर कभी आऊँगा।"

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Friday, September 13, 2019

ईश्वर मिल गये रास्ते में

ईश्वर मिल गये रास्ते में
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God on road

कल ईश्वर से मुलाक़ात हो गई,
रथ पर सवार कहीं जा रहे थे, 
पड़ गया मैं उनके रास्ते में,
वे घबड़ा उठे।
सारथी ने हार्न बजाया, 
पर, 
मैं हटने को तैयार न था,
हार गया बेचारा, 
खुद ही चलकर आया।
बोला, 
"हटते क्यों नहीं,
बहरे हो क्या?"
मैं बोला, 
"बहरा तो नहीं,
लेकिन, 
जिद्दी हूॅ।"
वह बोला, 
"तकलीफ है क्या?"
मैं बोला, 
"तुमसे मतलब?
मैं ईश्वर से मिलना चाह रहा हूॅ।"
वह बोला, 
"मुझसे बोलो, 
ईश्वर तो न आयेंगे।"
मैं बोला, 
"क्यों न आयेंगे,
हमने तो सड़क जाम करके, 
न जाने कितनों को बुलाया है,
इनको भी आना ही होगा।"
बहस बढ़ती देख,
ईश्वर खुद आ गये,
बोले,
"वत्स, 
क्या बात है, 
यह जाम क्यों लगा बैठे हो?"
मैं बोला, 
"भगवन् , 
आप से ही बात करनी है, 
ये बताइए, 
बाप के रहते बेटा क्यों मर जाता है,
कभी-कभी छोटे बच्चों को छोड़कर, 
जवान बाप  क्यों मर जाता है?
हे ईश्वर, 
यह तो बताइए, 
सतयुग में आपके पिता ने श्रवण को मारा, 
तो उसके अंधे माँ-बाप कितने दुःखी हुए थे,
आपने देखा ही होगा?
और,
उन्हीं के श्राप से, 
आपके पिता मर गये, 
क्या आप दुःखी नहीं थे?
चलिए और गिनाऊँ,
आपके रहते झूठा अश्वत्थामा मारा गया,
द्रोणाचार्य कितने दुःखी हुए थे, 
क्या आपने देखा न था? 
अभिमन्यु मर गया अकेले, 
अर्जुन का दुःख आप झेल न पाये, 
और फिर, 
छल-कपट करके जयद्रथ को मरवा दिया,
ऐसा आपने क्यों किया?
जब आप खुद झेल न पाये, 
हम मनुष्य क्या झेलेंगे?"
ईश्वर बोले,
"वत्स, 
यह तो विधि का विधान है।"
मैं बोला, 
"अच्छा,
यह तो बताइए,
विधि कौन है,
और, 
यह विधान किसका है?
क्योंकि,
गीता में आपने कहा है, 
मैं ही ईश्वर हूॅ, 
और जो कुछ होता है, 
मेरी इच्छा से होता है।"
अब ईश्वर झांकने लगे इधर-उधर,
जवाब तो दे न पाये।
मैं फिर बोला, 
"हे ईश्वर, 
विनती करता हूॅ, 
भारत की राजनीतिक दलों को,
अपने पास बुला लीजिये, 
फिर चुनाव करवा दीजिए, 
जो जीतेगा पाँच साल,
उसे ईश्वर बना दीजिए, 
वादा करता हूॅ, 
वे आपके इस विधान को, 
कुछ लोगों पर से हटा देंगे,
और,
आपके सुप्रीम कोर्ट के विरोध में,
आपकी लोक सभा, 
आपकी विधान सभा,
आपकी राज्य सभा, 
आपकी विधान परिषद से,
कोई न कोई विधेयक पास करा ही लेंगे।"
बस सुनते भारत के राजनीतिक दलों का नाम, 
ईश्वर अन्तर्ध्यान हो गये,
और,
मेरा सपना टूट गया।

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Tuesday, September 10, 2019

पिता की शादी

पिता की शादी
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शक्ति सिंह जी लगभग ५५ साल के होंगे।बहुत ही सज्जन पुरूष थे।छल-कपट तो आता नहीं था।उनके एक लड़का नीरज सिंह था।बहुत अच्छा लड़का था।पत्नी भी अच्छी पा गया था।पूरा परिवार सुखी था।कोई कष्ट नहीं था।शक्ति सिंह हर बात पत्नी से कर लेते थे।कोई भी कष्ट हो,चिन्ता हो,ऑफिस या और कहीं की।पत्नी से कहकर हल्के हो लेते थे।इसी बीच उनके ऊपर व्रजपात हो गया पत्नी स्वर्ग सिधार गयी।बेचारे उस उम्र में अकेले हो गये जब जीवन साथी की जरूरत सबसे ज़्यादा होती है।अब अपना दुखड़ा किसी से न कह पाते।
नीरज ने भी अनुभव किया कि,"पापा हमेशा चुप ही रहतें हैं।कम ही बोलतें हैं।केवल मतलब की ही बात करतें हैं।"
एक दिन पापा भोजन कर चुके थे।नीरज करने लगा तो उसने पाया कि दाल में नमक नहीं है।पत्नी को बताया तो उसने कहा, "पापा ने तो कुछ बताया ही नहीं।"
नीरज समझ गया कि पापा बहू के काम में बुराई नहीं कर सके।शक्ति सिंह वर्कशॉप के कर्मचारी थे।हर वर्कशॉप में हाजिरी समय से ही होती है।नहीं तो अधिकारी से Late allow करवाना पड़ता है या अनुपस्थित होना पड़ता है।शक्ति सिंह अक्सर ही लेट हो जाते थे।रोज-रोज Late allow करते-करते अधिकारी भी नाराज हो जाता।लेकिन बेचारे शक्ति सिंह किसी से कुछ कह नहीं पाते।बहू नाश्ता व भोजन ही देर से देती थी।पत्नी थी तो देर होने पर उसकी जान खा जाते थे लेकिन बहू को क्या कहें?
एक दिन अधिकारी ने उन्हें Late allow नहीं किया।बेचारे सड़क पर ही घूमते रहे।घर नहीं आये।घर पर जल्दी आने का कारण क्या बतायेंगे कि बहू ने देर कर दी इसलिये ड्यूटी से वापस कर दिया गया हूॅ?
रोज शाम को घर आकर निढाल होकर कुर्सी पर बैठ जाते।जब नीरज की पत्नी पानी चाय देते तो पी लेते।माँगते कभी नहीं थे।नीरज इन सब बातों समझ रहा था।पिता की विवशता भी जान रहा था।लेकिन क्या कर ही सकता था?
एक दिन उसके मन में एक विचार आया।परन्तु पापा से कैसे कहे?वह न मानेंगे।समाज भी हँसेगा।इसी उधेड़बुन में पड़ा रहा।लेकिन कब तक?
हिम्मत करके उसने शक्ति सिंह से कहा,"पापा शादी कर लो।"
शक्ति सिंह भड़क उठे,"पागल हो क्या? इस उम्र में शादी?समाज क्या कहेगा?जवान बहू घर में है वह क्या सोचेगी?"
नीरज बोला,"समाज को मत देखिये।रहना तो हमारे साथ है आपको। समाज दो दिन में सब भूल जाता है।मुझसे आपका अकेला पन नहीं देखा जाता।"
शक्ति सिंह कहते,"कौन करायेगा मेरी शादी और किससे करवायेगा?"
नीरज कहता,"आप इसकी चिन्ता छोड़ो।मैं सब कुछ करवा दूंगा।बहुत सी बिना संतान की बेवा औरतें ५० साल से ऊपर की हैं इस समाज में तिरस्कृत।किसी से शादी करवा दूंगा।आपको एक जीवन साथी मिल जायेगा और इसी बहाने किसी विधवा का उद्धार भी हो जायेगा।"
बेटे की जिद के आगे शक्ति सिंह ने हथियार डाल दिए।बेटे नीरज ने इस प्रकार दों जिन्दगियों को आबाद कर दिया।

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Wednesday, September 4, 2019

प्रेम की भाषा

प्रेम की भाषा
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राम प्रकाश जी की उम्र होगी लगभग ५६ साल की, साधारण परिवार से हैं और ऑफिस में बाबू हैं।बड़ी मुश्किल से कालोनी में मकान बनवा पायें हैं।इनको लक्ष्मण तथा लखन नाम बहुत पसंद है अतः दोनों लड़कों का नाम भी लक्ष्मण व लखन ही रख दिया। बड़े का नाम लखन तो छोटे का लक्ष्मण रखा।लखन कचहरी में पेशकार तो लक्ष्मण बैंक में नौकरी करता है। लखन की शादी भी कर चुके हैं। उसकी पत्नी छोटे कद की है साथ ही कुछ मोटी, कहने का मतलब गोल-मटोल है। लेकिन स्वभाव से बहुत अच्छी मिलनसार, हँस-मुख, दूसरों की कद्र करने वाली, बड़ों को उचित आदर देती है तो छोटों को उनका प्यार, कोई भी मौका हो हर मौके में सबकी सहयोगी, यही कारण है कि घर से लेकर पास-पड़ोस सब जगह पसंद की जाती है, किन्तु किस्मत की मारी शादी के पाँच साल बाद भी बच्चा न जन्म सकी।
लक्ष्मण भी शादी योग्य हो गया था सो राम प्रकाश जी ने उसकी भी शादी कर दी।आज-कल लड़का जे ई हो, बैंक में हो,
रेलवे में हो, एल आई सी में हो अर्थात कुल मिलाकर ऐसी ही सरकारी नौकरी में हो पत्नी के माने में वह किस्मत वाला होता है।लक्ष्मण तो बैंक में है पत्नी सुन्दर मिली। पढ़ी-लिखी भी है, लम्बी छरहरी। सुरभि (लक्ष्मण की पत्नी) ससुराल में रहने लगी तो हर क्षेत्र में अपना एकाधिकार जमाने की कोशिश करने लगी। जेठानी (कमला) की लोकप्रियता उसे पसंद न आती। वह सोचती, "कमला नाटी और मोटी है, मुझसे कम सुन्दर है, मैं अधिक पढ़ी-लिखी हूॅ तब मुझे अधिक प्यार मिलना चाहिए। मेरे में क्या कमी है जो उसे लोग अधिक पसंद करतें हैं?"
यह सोच उसकी कुढ़न में बदलने लगी। सास-ससुर हों या कमला सबसे कूढ़ने लगी। हर सवाल का जवाब उल्टा देने लगी।बात-बात पर गुस्सा उसकी नाक पर रहता, पास-पड़ोस से भी उसके सम्बन्ध बिगड़ते चले गए, धीरे-धीरे वह लक्ष्मण से अलग रहने को कहने लगी। लक्ष्मण टाल जाता था तो मुंह फुला लेती और कई-कई दिनों तक किसी से बात न करती। राम प्रकाश जी और उनकी पत्नी सब देख-समझ रहे थे।
जब बहुत अति हो गई तो लक्ष्मण से एक दिन कह दिया, "बेटा, अब अलग होने में ही भलाई है तुम्हारी भी तथा हम लोगों की भी।क्योंकि बहू का व्यवहार सहा नहीं जाता। कमला को बाँझ कहती है। हम लोगों को भी जो जी में आता है बक देती है।"
लक्ष्मण ने बहुत कोशिश की, कि अलग न हों लेकिन सुरभि की जिद व घर वालों से उसके व्यवहार के कारण उसने अलग ही होने में भलाई समझी। अतः सुरभि के साथ किराये के कमरे में रहने लगा।
एक साल बाद सुरभि गर्भवती हुई। डाॅक्टर को दिखाया तो उसने कहा, "केस बिगड़ा हुआ है, इन्हें आराम की सख्त जरूरत है।"
किसे बुलाया जाये समस्या थी, लक्ष्मण के घर वालों को सुरभि पसंद नहीं करती थी, मायके वालों ने अपनी मजबूरी जता दी।दुबारा डाॅक्टर को दिखाया तो उसने चेतावनी दे दी। थक-हार कर लक्ष्मण ने घर वालों को बताया। सुरभि बोली, "आयेगा कौन वही बाँझ?"
लक्ष्मण ने मजबूरी जताते हुए कहा, "सुरभि, बात समझा करो, चलो मान लेता हूॅ भाभी ही आयेंगी, लेकिन मत भूलो कि मौके पर गधे को भी बाप कहना पड़ता है।"
दूसरे दिन कमला पहुंच गई।पूरा काम संभाल लिया।लक्ष्मण से बोली, "देवर जी, आप अपनी नौकरी देखिए बस।सुरभि को मैं देख लूंगी।"
वह सुरभि की सेवा-सुश्रुषा में लग गयी। सुरभि को काम न करने देती। अबकी डाॅक्टर ने कहा, "हालत में सुधार है।बस बच कर रहिएगा।"
धीरे-धीरे दिन आ गया, सुरभि अस्पताल में भर्ती हो गई, कमला उसके साथ रहती।डाॅक्टर ने कहा, "ऑपरेशन होगा।"
सुरभि घबड़ाई, कमला समझाती , "कुछ नहीं होगा, मैं हूॅ।"
ऑपरेशन से बच्चा हुआ, सुरभि बहुत देर बाद बेड पर आई, होश आने पर बच्चे को देखा, लेकिन कमला को न देखकर बोली, "दीदी कहाँ है?"
कोई समझ नहीं पाया किसे पूछ रही है? वह बोली, "कमला दीदी को पूछ रही हूॅ।"
सभी भौंचक्के रह गए, कमला के लिए सुरभि के मुंह से  "कमला दीदी"  सुनकर, लक्ष्मण ने बताया, "बाहर बैठीं हैं, उन्होंने कोई बच्चा नहीं जन्मा है न इसलिये बच्चे को छूते डर रहीं हैं।"
सुरभि बोली, "बुला दो"  उसकी ऑखों के कोरों से ऑसू बहने लगे।
तभी कमला आ गई, सुरभि ने उसे अपने पास बुला लिया, बच्चे को उसकी गोद में दे दिया, कमला समझ न पाई क्या हो रहा है?
सुरभि बोली, "दीदी, यह बच्चा तुम्हारा ही है।अगर तुम न आती  तो न मैं रहती न यह बच्चा।"
कहकर वह सुबकने लगी, पता नहीं कमला का एक हाथ सुरभि के बालों को कब सहलाने लगा।
उसे पता तब चला जब सुरभि ने कहा, "दीदी क्षमा----------"
आगे न बोल सकी।
कमला ने कहा,"पगली कहीं की।"

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Tuesday, September 3, 2019

ममत्व

ममत्व ------------

mother love

ज्ञान प्रकाश ने अपने पिता को नहीं देखा है उसके बचपन में स्वर्ग सिधार गये थे। माँ ने पाल-पोस कर बड़ा किया। अनपढ़-गँवार है बेचारी। इसलिये दूसरों के घर बर्तन माँजती थी और घरों में झाड़ू पोछा लगाकर अपना तथा ज्ञान प्रकाश का भरण-पोषण करती थी। माँ की एक ही इच्छा थी कि ज्ञान प्रकाश को बाप की कमी न खले तथा वह पढ़-लिख कर किसी लायक बन जाये, जी तोड़ मेहनत करती थी। जैसे-जैसे ज्ञान प्रकाश बड़ा होता गया और उसकी पढ़ाई का बोझ उसकी माँ के कंधों पर बढ़ता गया माँ ने और भी घरों में काम पकड़ लिया किन्तु ज्ञान प्रकाश को किसी प्रकार की कमी नहीं होने देती थी, चाहे वह पढ़ाई में हो या कपड़ों की या फिर दोस्तों में सामंजस्य की. हर कमी पूरी करती थी। ज्ञान प्रकाश भी माँ से बहुत प्यार करता था। माँ के ही साथ खाता-पीता।जब तक माँ को सुला नहीं देता सोता नहीं था।
अब ऊपर वाला मेहरबान हुआ तो ज्ञान प्रकाश अच्छी पद की नौकरी पा गया। माँ से सारे काम छुड़वा दिया और अब खुद माँ का ध्यान रखने लगा। समय बीता ज्ञान प्रकाश की शादी एक अच्छे परिवार की लड़की से हो गयी।लड़की आधुनिक विचारों वाली थी और माँ पुराने विचारों वाली। माँ आदत के अनुसार बर्तन माँजने से लेकर घर के सारे करती थी। सीमा(ज्ञान प्रकाश की पत्नी)का विचार था कि सब कामों के लिए एक नौकरानी रख ली जाये।
ज्ञान प्रकाश से उसने कहा तो ज्ञान प्रकाश ने माँ से कहा, "माँ तुमने जिन्दगी भर दूसरे के घरों में काम करके मुझे इस लायक बना दिया है कि मैं घर के कामों के लिए एक नौकरानी तो रख ही सकता हूॅ। तुम्हारी सेवा करने का जो मौका मुझे मिला है उसे मुझसे मत छीनो।"
माँ का कलेजा दूना हो जाता लेकिन कहती, "बेटा, जब दूसरों के घर काम करते मुझे शर्म नहीं आई तो अपने घर का काम करने में क्या आयेगी?"
ज्ञान प्रकाश निरुत्तर हो जाता। उसे ऑफिस आठ बजे जाना होता था जो सीमा के उठने का समय होता था।अतः माँ ही सुबह का नाश्ता व दोपहर का लंच बनाकर उसे ऑफिस भेजती थी। कई बार उसने सीमा को समझाया लेकिन वह सुनती नहीं थी। कहती, "जरूर उस बुढ़िया ने कहा होगा, इसके पहले मैं नहीं उठ सकती थकान दूर नहीं होती।"
ज्ञान प्रकाश माँ को कष्ट न हो कि सीमा उन्हें बुढ़िया कहती है शान्त ही रह जाता।
कुछ दिनों बाद सीमा ने एक बच्चे को जन्म दिया। धीरे-धीरे वह दो साल का हो गया। सुबह से शाम तक बच्चा दादी के पास रहता। दादी बच्चे को गोविन्द कहती जो सीमा को पसंद न था। उसे आधुनिक नाम पसंद था इसलिये बच्चे को टिंकी कहती और चाहती थी यही नाम बच्चे का रखा जाये। किन्तु चूँकि बच्चा दादी से ही अधिक सटा रहता था सो गोविन्द नाम से ही लोग पुकारते। दादी बच्चे को भजन, पुराने बच्चों के गीत सुनाती, कहानी किस्से सुनाती जिन्हें सीमा पसंद नहीं करती। उसका विचार था कि इस तरह तो बच्चा  १८ वीं सदी का हो जायेगा। वह बच्चे को आधुनिक बनाना चाहती थी, सो टीवी पर नये गाने लगाकर कभी डिस्को, कभी ब्रेक, कभी टिप्स डांस सिखाती, जब कभी दादी बच्चे को कुछ सिखाती सीमा बच्चे को बुला लेती।
एक दिन ज्ञान प्रकाश ऑफिस के कामों में अधिक व्यस्त रहा। मानसिक व शारीरिक रूप से थका घर आया तो सीमा ने उससे कहा, "बुढ़िया को समझा दो. बच्चे से दूर ही रहे या फिर मुझे मेरे घर पहुंचा दो।"
एक ऑफिस की उलझन ऊपर सीमा का यह रूख ज्ञान प्रकाश को गुस्सा आ गया।सीमा से कुछ कहने की हिम्मत नहीं हुई तो सारा गुस्सा माँ पर उतार दिया,"माँ इस घर में रहना है तो मेरे और सीमा के अनुसार चलो नहीं तो दूसरा ठिकाना खोज लो।रोज की चिक-चिक से मैं ऊब गया हूॅ-------------‌--"
और भी क्या-क्या कह डाला गुस्से में उसे खुद याद न रहा।
माँ अपने लड़के का यह रूप देख भौंचक्का रह गई।इतना ही बोल पायी,"अब इस उम्र में किसके पास जाऊँ?"
ज्ञान प्रकाश बोला,"भाड़ में जाओ लेकिन यहाँ से जाओ।"
उस रात किसी ने खाना नहीं खाया।गुस्सा ठंडा होने पर ज्ञान प्रकाश बहुत पछताया।माँ ने उसे कैसे-कैसे पाला है याद करने लगा रात भर सो न पाया।पांच-छह बार बाथरूम गया।जब उठता माँ को करवट बदलते देखता।कई बार माँ के पास गया लेकिन वह सोने का नाटक करते हुए ऑखें बन्द कर लेती।लेकिन ऑसुओं को न छुपा पाती।वह भी ज्ञान प्रकाश की एक-एक हरकत देख रही थी।
सुबह ज्ञान प्रकाश को झपकी आने लगी।माँ उठी और उसके सर पर तेल लगाने लगी।ज्ञान प्रकाश ने ध्यान भी दिया पर बोला कुछ नहीं।बहुत दिनों बाद माँ आज सर सहला रही थी।इतना प्यारा स्पर्श पाकर माँ की गोद में सर रखकर सो गया। ।दो घण्टे बाद सोकर उठा।माँ को वैसे ही बैठे देखकर बोला,"माँ तुम हटी नहीं?"
माँ बोली,"बेटा, मैं हटती तो तुम जाग जाते।"
ज्ञान प्रकाश को प्रायश्चित होने लगा।रूऑसा होकर बोला,"माँ मैंने रात में तुम्हें न जाने क्या-क्या कह दिया माफ कर दो।"
माँ बोली,"बेटा, बहू की कोई बात नहीं।दूसरे घर से आई है।उसे मेरे साथ तथा मुझे उसके साथ तालमेल बैठाने में समय लगेगा।तुम तो मेरे शरीर से जन्मे हो।जब तुम कुछ कहते हो
तो मुझे बहुत कष्ट होता है।मैं मर्माहत हो।जाती हूॅ।"
ज्ञान प्रकाश बोला,"माँ, माफ कर दो।आइन्दा से--------------"
इसके आगे वह न बोल पाया।गला रूंध गया।ओंठ काँपने लगे।बस माँ को पकड़ कर बिलख-बिलख कर रोने लगा।उसके रोने में उसका पश्चाताप घुलने लगा।माँ भी रो रही थी उसके ऑसुओं में बेटे के प्रति ममत्व उमड़ रहा था।

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Saturday, August 31, 2019

प्यार हो गया

प्यार हो गया

                                                                       ----------------

Physical attraction

              

रीमा, राजकुमार से हद से ज्यादा प्यार करती थी। क्लास रूम हो या बाहर उसके ही ख्यालों में खोई रहती थी। ऐसा होता भी क्यों न राजकुमार नाम का ही राजकुमार नहीं था, देखने में भी राजकुमार था। गोरा-चिट्टा, लम्बा, घुंघराले बाल, बातचीत का सलीका, रहन-सहन, हँस-मुख सब अच्छाइयां तो थी उसके अन्दर। दोस्तों से घिरा रहता है, दोस्त तो दोस्त लड़कियां भी उसकी दीवानी रहतीं थीं, अमीर घर का लड़का है, राजकुमार सो पैसे भी दोस्तों के बीच खूब खर्च करता रहता था। ऐसा नहीं कि लड़कियां उसकी दीवानी भर थीं कई लड़कियों से प्रगाढ़ सम्बन्ध थे, उसके। रीमा का प्यार एक तरफा था, राजकुमार से कभी बात तक नहीं हुई थी, लेकिन दीवानापन था कि कम होने का नहीं ले रहा था। ख्यालों में राजकुमार तो ख्वाबों में राजकुमार हर जगह राजकुमार।
राजकुमार एक दिन अपने दोस्तों के साथ आ रहा था। तभी रीमा रास्ते में पड़ गई। ऑखें एक क्षण के लिए उससे टकरा गई रीमा सिहर गई। उसका प्यार परवान चढ़ने लगा। धीरे-धीरे राजकुमार के नजदीक आती गई। दोनों एक-दूसरे को दिलो-जान से चाहने लगे। कभी बाग में तो कभी किसी माॅल में मिलने लगे। राजकुमार उसे बार-बार छूने की कोशिश करता लेकिन वह "शादी के बाद" कह कर टाल जाती।
इसी बीच रीमा के पापा उसकी शादी के लिए दौड़-धूप करने लगे। रीमा ने पापा से साफ कह दिया, "वह राजकुमार से ही शादी करेगी।"
पापा ने पूछा, "कैसा लड़का है?"
रीमा ने कहा, "बहुत अच्छा, हैंडसम हैं, सुन्दर है, हँस-मुख है।क्या नहीं है उसके अन्दर।"
पापा ने कहा, "जीवन-साथी के रूप में देखो।"
रीमा ने कहा, "देख लिया है पापा, बहुत अच्छा जीवन साथी होगा।"
पापा ने कहा, "तब ठीक है।"
लेकिन पापा चैन से नहीं बैठे। राजकुमार के पीछे लग गये। उसकी दिनचर्या पर ध्यान देने लगे।
एक दिन पापा ने रीमा से कहा, "बेटा, आज शाम को होटल चलना है। जल्दी घर आ जाना।"
उस दिन पापा उसे एक होटल ले गये। खाने के लिए ऑर्डर दिया, तभी पापा की नजर राजकुमार पर पड़ी जो कुछ दूर पर पाँच लड़कों के साथ शराब पी रहा था, पापा ने रीमा को इशारा करके राजकुमार को दिखाया, रीमा राजकुमार का यह रूप देख आश्चर्य चकित रह गई।
पापा बोले, "अब क्या कहती अपने राजकुमार के लिए?"
रीमा ने कहा, "पापा, जो उचित समझें करें, मैं रास्ता भटक गयी थी।"
पापा ने कहा, "तुम केवल शारीरिक सुन्दरता देख रही थी, मैं तुम्हें यहाँ उसके मन की सुन्दरता दिखाने लाया हू।"
रीमा ने भावुक होते हुए कहा, "बहुत बदसूरत।"

आज के लिए इतना ही...धन्यवाद
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