Friday, November 1, 2019

एक दीपावली ऐसी भी

एक दीपावली ऐसी भी

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इधर कुछ ऐसा संयोग बैठ जाता था कि विद्या के घर कोई त्यौहार नहीं मनाया जाता था।पिछले साल सास मर गयी थीं तो उसके पिछले साल ससुर जी।अतः दोनों साल कोई त्यौहार नहीं मनाया गया।अब इस साल पति की चाची मर गयीं अतः इस साल भी त्यौहारों पर रोक लग गयी लेकिन बच्चें तो बच्चें ही होंते हैं न कहाँ मानने वाले थे।दीपावली की तैयारी में लगे थे।घर-ऑगन साफ किया एक घरौंदा बनाया।उनके पिता मना करते रह गये पर कहाँ मानने वाले थे।विद्या ने पटाखे और दीये मंगवा दिये।बच्चें उन्हें सजाने लगे।पति ने मना किया तो बोली,"बच्चों का मन कैसे तोड़ दूं।घुटन सी महसूस हो रही है न? दो साल बिना त्यौहार के बीत गये। कहते हुए उसने सभी दरवाजे और खिड़कियां खोल दी ताकि ताजी हवा अन्दर आ सके।


आज के लिए इतना ही...धन्यवाद
अगर आपको यह पोस्ट अच्छी लगी हो तो कृपया कमेंट और शेयर करें... सुधीर श्रीवास्तव

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