Thursday, December 5, 2019

नारद मुनि का काम-वेदना से पीड़ित होना

       नारद मुनि का काम-वेदना से पीड़ित होना
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Narad Muni


एक बार नारद मुनि ने हिमालय की एक गुफा में घोर तपस्या की, इन्द्र डरे कि नारद मेरा सिंहासन लेना चाहते हैं (क्योंकि देवताओं में सबसे परेशान और डरपोक इन्द्र ही हैं।सिंहासन के लिए हमेशा परेशान रहतें हैं और सिंहासन पर कभी किसी असुर का तो कभी साधु पुरूष का खतरा बना रहता है।) तुरन्त कामदेव और बसन्त को नारद की तपस्या भंग करने का आदेश दे डाला।
बहुत कोशिश के बाद भी किसी प्रकार कामदेव और बसन्त नारद की तपस्या भंग नहीं कर सके वापस चले गये, इधर तपस्या पूरी होने पर नारद जागे तो उन्हें यह घमण्ड हो गया कि, "मैंने काम पर विजय पा ली है।"
किन्तु यह नहीं जानते थे कि उसी स्थान पर भगवान् शंकर ने कामदेव को अपनी तीसरी ऑख से भस्म कर दिया था तथा रति व देवताओं की विनती पर कामदेव को पुनः जीवित भी कर दिया था लेकिन यह भी कहा कि,"इस जगह से जितनी दूर तक नजर जायेगी कामदेव निष्क्रिय रहेंगे"
जिसके कारण ही नारद पर कामदेव का वश नहीं चला और नारद ने समझ लिया, "मैंने काम पर विजय प्राप्त कर ली है।"
उन्होंने भगवान् शंकर को यह बात बताई। भगवान् शंकर ने कहा, "नारद, यह बात किसी और से मत कहना खासकर भगवान् विष्णु से।"लेकिन नारद घमण्ड में चूर कहाॅ मानने वाले थे, अतः ब्रह्मा तथा विष्णु से भी यह बात बता दी। तब भगवान् शंकर ने नारद को लीला से वशीभूत कर दिया। उधर विष्णु ने नारद के मार्ग पर एक शहर की रचना कर डाली। शहर का राजा शीलनिधि को बनाया और उसकी पुत्री श्रीमती का स्वयंवर  रचाया। नारद ने जब श्रीमती को देखा उनमें कामवासना पैदा हो गई, सोचने लगे, "किस उपाय से श्रीमती को प्राप्त करूँ चूँकि नारियां सुन्दरता पसंद करतीं हैं इसलिए भगवान् विष्णु का रूप लेना उचित होगा।"
सोचकर उन्होंने भगवान् विष्णु से उनका रूप मांगा, नारद को कामवासना से ग्रस्त देख कर विष्णु ने उन्हें सबक सिखाना चाहा तथा रूप अपना देकर मुंह वानर का दे दिया। नारद खुशी-खुशी स्वयंबर में गये। श्रीमती ने उनके वानर मुंह पर घास तक नहीं डाली। जब कि अन्य लोगों को नारद का मुनि रूप ही दिखा।।
सभा में भगवान् शंकर के दो गण नारद की रक्षा के लिए मौजूद थे। नारद के वानर रूप को वे जानते थे। इधर भगवान् विष्णु अदृश्य रूप में सभा में आये और श्रीमती को ब्याह ले गये, तो शंकर के गणों ने नारद से कहा,"मुनिवर, आइने में अपना मुंह तो देख लीजिये वानर जैसा है।"
नारद ने जब आइने में खुद को देखा तो बहुत दुःखी और क्रोधित हुए। शिव गणों को श्राप दे दिया कि, "तुम दोनों ब्राह्मण की ही संतान होगे लेकिन राक्षस।"
भगवान् विष्णु को श्राप दिया कि, "जिस प्रकार तुमने स्त्री के लिए मुझे तड़पाया है तुम नारी के वेश में सबको छलते हो, असुरों को नारी के वेश में ही विष पान करवाया, भस्मासुर को नारी वेश में ही भस्म किया, जाओ मैं श्राप देता हूॅ कि वैसे ही स्त्री वियोग में तुम भी तड़पोगे।तुमने मुझे वानर का रूप दिया है न तो यही वानर तुम्हारे सहायक होंगे।"

आज के लिए इतना ही...धन्यवाद
अगर आपको यह पोस्ट अच्छी लगी हो तो कृपया कमेंट और शेयर करें... सुधीर श्रीवास्तव

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