Friday, October 4, 2019

                         महाजन
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महाजन प्रसाद नाम के ही महाजन नहीं थे।सच में महाजन थे।पेट बाहर निकला हुआ,दाँत कुछ बड़े-बड़े,पैसा बहुत था उनके पास,कपड़ों में तेल लगा हुआ क्योंकि तेल का व्यापार करते थे।सभी से ऐंठ कर बात करना लेकिन ग्राहक देख कर आवाज को विनम्र या तेज कर देना,जैसा ग्राहक वैसी भाषा,खाने-पीने पहनने का कोई शौक नहीं,केवल पैसे पर जान देने वाले।उम्र यही कोई पैंतालीस साल की।
पत्नी और भी कंजूस।कंजूसी के कारण ही सूती साड़ी पहनती।जबान की बहुत तेज।सीधे-सीधे कहती,"लेवे के होवे त ल नाहीं त दूसर दुकान देख ल।"
उसकी भाषा से तो आप समझ ही गए होंगे कि अनपढ़-गँवार थी।हालाँकि महाजन प्रसाद जी भी बहुत लिखे-पढ़े नहीं थे।अपना नाम भी टेढ़ा-मेढ़ा लिखते थे।लेकिन एक ही शौक था कि लड़का आलोक पढ़-लिख ले।इसीलिये उसे व्यापार से दूर ही रखते थे।ईश्वर की मर्जी आलोक पढ़ने में बहुत तेज था।बड़ा होकर ऊँचे पद की नौकरी पा गया।महाजन प्रसाद ने उसकी शादी करनी चाही तो हर लड़की को नापसंद कर देता।आखिरकार शहर की लड़की से शादी कर बैठा।अब उस लड़की को महाजन प्रसाद तथा उनकी पत्नी का रहन-सहन पसंद नहीं आया सो पति को लेकर अलग हो गई।
महाजन प्रसाद और उनकी पत्नी मन मसोस कर रह गए।आलोक ने माँ-बाप से मतलब रखना छोड़ दिया। कुछ दिनों बाद आलोक की पत्नी को एक लड़का हुआ।पत्नी के चलते आलोक ने यह बात माँ-बाप को नहीं बताई कि कौन अपनी बेइज्जती कराये।लेकिन बाबा-दादी का दिल पोते को गोद लेने के लिए मचलने लगा।अतः एक दिन बिना बताये ही महाजन प्रसाद सपत्नीक आलोक के घर पहुंच गए।
आलोक की पत्नी ने उन्हें अलग कमरा दे दिया नौकरों वाला।बच्चे को उनके पास जाने से रोकने लगी।महाजन प्रसाद को यह बेइज्जती पसंद नहीं आई।पोते को गोद में खिलाने का शौक शौक ही रह गया। दो दिन में ऊब गये।वापस होने को हुए तो आलोक गेट तक छोड़ने आया।जब वह माँ-बाप के पैर छूने लगा तो महाजन प्रसाद बोले,"बेटा, सबकी आशा करना लेकिन ईश्वर से बेटा मत माँगना।"

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