Sunday, October 6, 2019

                       बँटवारा -2
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जगदीश प्रसाद जी धनाढ्य थे।बात बहुत पहले की है।भगवान का दिया जगदीश प्रसाद जी के पास कुछ था जो आज से लगभग साठ-सत्तर पहले एक आदमी के पास होना चाहिए।मकान था या कोठी।आगे बहुत बड़ी बगिया जिसमें तरह-तरह के पेड़-पौधे थे।फिर मकान।मकान में बहुत बड़ा सा ऑगन इतना बड़ा कि जगदीश प्रसाद जी अपने चार लड़कों तथा दों बेटियों की शादी उसी मकान से किया था।फिर उसके बाद दों बेटों ने अपनी संतानों(जिसमें से एक बेटे को तीन पुत्र चार बेटियां थीं दूसरे बेटे की दों लड़कियां थीं)की शादी भी उसी मकान से की।तीसरे लड़के ने अपना मकान बनवा लिया।चौथा लड़का बाहर नौकरी कर रहा था।जगदीश प्रसाद जी की एक पत्नी स्वर्ग सिधार गयीं थीं जिनसे सब बड़ी संतान एक लड़का था स्वामी प्रसाद।तब जगदीश प्रसाद जी ने दूसरी शादी की उस पत्नी से उनके तीन लड़के तथा दो लड़कियां हुईं।
इतना बड़ा परिवार छोड़कर जगदीश प्रसाद जी उनकी पत्नियां परलोक चले गये।चारों भाइयों में मेल था। किन्तु स्वामी प्रसाद का परिवार भी बड़ा ही था सो उनके लड़कों ने उनसे इस मकान में न रहने को कहा।किन्तु स्वामी प्रसाद की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी कि दूसरा मकान बनवाते।लड़को ने अलग होने को दवाब डाला तो स्वामी प्रसाद ने अपने सौतेले भाइयों से बँटवारे की माँग रखी।भाई न माने तो स्वामी प्रसाद कोर्ट चले गये।उन्होंने कोर्ट से कहा कि,"चूँकि मैं अपने पिता की पहली पत्नी से इकलौता वारिस हूॅ अतः मकान के आधे हिस्से में मेरा कब्जा होता है"
बहुत दिनों तर्क-वितर्क होता रहा।किन्तु कोर्ट न मानी।स्वामी प्रसाद को मकान का एक चौथाई हिस्सा दे दिया।अन्य सौतेले तीनों भाइयों ने अफनी रज्जामंदी से बँटवारा कर लिया।नतीजा यह हुआ कि अब न तो बगिया है और न ही ऑगन।सब कुछ खत्म हो गया।

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