Tuesday, September 24, 2019

वह बेनाम रह गया

वह बेनाम रह गया
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lal bahadur Shatri ji


मैंने बहुत सपूत देंखे हैं,
किस-किस का मैं नाम गिनाऊँ,
सबके होते रहतें हैं किस्से,
और आतें हैं याद।
कुछ सपूत ऐसे भी आये,
बिना नाम के रह गये,
लोगों ने उन्हें भुलाया,
वे बेनाम रह गये।
एक छोटा सा दुबला-पतला,
बिल्कुल साधारण गरीब सा,
न साधु न सन्यासी था,
बिल्कुल मामूली आदमी था।
दो अक्टूबर को दुनिया में आया,
पर बड़े नाम में खो गया,
वह भी मेरा ही सपूत था,
बिना नाम के रह गया।
उसने दुश्मन को औकात दिखाई,
दूर जो दुश्मन के साथ खड़े थे,
उनको भी ऑख दिखा दी,
बोला,
"अपना बोयेंगे अपना खायेंगे,
तुझसे हम कुछ न लेंगे,
अब तो,
"जय जवान जय किसान"
हमको कहना ही है।

पर हाय रे मेरी किस्मत,
तू क्यों रूठ गई थी,
उसे बिना समय दिये ही,
मुझसे क्यों छीन लिया है?
अब तो कोई उसे याद नहीं करता,
शायद नाम याद न होगा,
"जय जवान जय किसान"
फिर कैसे याद रहेगा,
तब फिर क्यों मैं नाम बताऊँ,
मेरा सपूत आखिर वह कौन था?

आज के लिए इतना ही...धन्यवाद
अगर आपको यह पोस्ट अच्छी लगी हो तो कृपया कमेंट और शेयर करें... सुधीर श्रीवास्तव

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