यमराज मिल गये रास्ते मे
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एक दिन की बात बताऊँ,
यमराज मिल गये रास्ते में,
मैंने पूछा,
"महाराज आप !
यहाँ क्यों पधारे हैं?"
यमराज बोले,
"वत्स,
देखने आया हूॅ,
किस किस के दिन पूरे हो गये,
किसको कब उठाना है,
अपने दूत को कब भेजना है।"
मैंने पूछा,
"चित्रगुप्त क्या करतें हैं,
क्या लेखा-जोखा नहीं रखतें हैं?"
यमराज बोले,
"वत्स,
वह रिटायर हो चुकें हैं,
ईश्वर ने नयी भर्ती को मना किया है,
नये आदेशों तक संविदा पर,
एक व्यक्ति रखा है,
तब तक मुझे ही सब करना है,
क्या करूँ,
आखिर सुपरवाइजर जो ठहरा,
रोज ही डाँट-डपट सुनता हूॅ।"
मैंने कहा,
"उस संविदा का परिचय तो दीजिए।"
वह बोले,
"पहले कलियुग का व्यक्ति था,
साला बहुत बेईमान कमीना था,
उल्टी-सीधी पोस्टिंग करता था,
बहस ऊपर से करता था,
अब सतयुग का रखा है,
ईमानदारी से काम सीख रहा है।"
उनके द्वारा नाम लिखते-लिखते शाम होने को आ गयी,
बोले,
"वत्स,
थक गया हूॅ,
अब सोना चाह रहा हूॅ।"
एक पेड़ के नीचे,
हम दोनों बैठ गये,
मैंने कहा,
"महाराज,
सोने के इस गदे को तकिया बना लीजिये,
और चाँदी की चप्पल को पैरों से मत उतारिए,
कलियुग बड़ा विकट है,
मनुष्य का कोई ठिकाना नहीं।"
यमराज न माने,
अपनी ऐंठन में थे,
और,
गहरी नींद में सो गये।
रात लगभग दो बजे,
उन्होंने मुझको हड़बड़ा कर उठाया,
बोले,
"गजब हो गया,
गदा मेरा चोरी हो गया,
क्या जवाब दूंगा ईश्वर को,
नहीं समझ में आ रहा।"
मैंने कहा,
"मैंने पहले ही कहा था,
आप ही न मानें,
यहाँ तो अच्छे-अच्छे दरोगाओं की पिस्टल ही,
चोरी हो जाती है,
चलिए,
अब थाने चलतें हैं,
और,
रपट लिखातें हैं।"
थाने में,
दरोगा के कानूनी सवालों का जवाब,
तो यमराज दे न पाये,
उस पर से सिपाहियों की नजरें,
अपने गहनों पर गड़ी देखकर,
वह घबड़ा गये।
बोले,
"वत्स,
जो हो गया सो हो गया,
किसी तरह झेल ही लूंगा,
लेकिन,
इतने कानूनी दांव-पेंच मैं नहीं जानता,
सीधा-सादा इज्ज़तदार आदमी हूॅ,
इज्ज़त अधिक प्यारी है,
ऊपर से सिपाहियों की गड़ी नजरें,
बर्दाश्त के बाहर हैं,
चलो वत्स,
मुझे रपट नहीं लिखानी है।"
मैं भी अब समझा,
एक इज्ज़तदार आदमी पुलिस से,
क्यों बचता है,
और,
कानूनी दांव-पेंच से क्यों,
दूर भागना चाहता है।
आज के लिए इतना ही...धन्यवाद
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