Tuesday, September 17, 2019

मैं श्मशान जब कभी जाता हूॅ

मैं श्मशान जब कभी जाता हूॅ
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Truth of Life

जिन्दगी जीतें हैं लोग कई तरीकों से,
कोई रहता बंगलों में है,
कोई झोपड़-पट्टी में,
किसी का आलीशान मकान बना है,
किसी की एक छोटी झोपड़ी सी है।
कोई खा पीकर मस्त रहता है,
कोई खाने को तरसता है,
कोई सूट-बूट धारण करता है,
कोई कपड़े के एक टुकड़े को तरसता है।
किसी का नाम बहुत रहता,
कोई बेनाम रह जाता है,
जिन्दगी जीना सभी चाहते,
अपने-अपने तरीकों से।
मैं भी जीना बहुत चाहता,
परिवार में अपने,
सुख-संपत्ति सभी चाहता,
दुःख न आये मेरे ऊपर।
कभी खुद को नहीं देखता,
न ही अपने कर्म देखता हूॅ,
मैं ही सबसे अच्छा हूॅ,
ऐसा मैं समझता हूॅ।
लेकिन,
जब श्मशान जाता हूॅ,
हकीकत समझ में आती है,
चाहे राजा या रंक हो,
बिना वस्त्र के देखता हूॅ।
एक ही लकड़ी का बिस्तर,
एक ही तरह का चंदन,
घी का लेप देखता हूॅ,
वही फूलों की माला,
एक ही आग देखता हूॅ।
बिना महापात्र के उद्धार नहीं होता,
ऐसा लोग कहतें हैं,
जीते जी राक्षस रहा हो,
या,
साधु पुरूष रहा हो,
प्रेत योनि में रहता है।
लेकिन,
मैं यह सब नहीं मानता,
पर,
समाज से मजबूर हूॅ।
यदि,
जीते जी साधु पुरूष रहें हम,
तो,
दाह-संस्कार जैसा भी हो,
उद्धार खुद हो जायेगा।।

आज के लिए इतना ही...धन्यवाद
अगर आपको यह पोस्ट अच्छी लगी हो तो कृपया कमेंट और शेयर करें... सुधीर श्रीवास्तव

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