Tuesday, September 17, 2019

                 एक दिन पहुंचा मैं ईश्वर के द्वार
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एक दिन पहुंचा मैं ईश्वर के द्वार,
भीड़ वहाँ बहुत अधिक थी,
वी आई पी भी बैठे थे,
चाहे राज नेता रहें हों,
या आम जनता ही हो,
या फिर कोई और रहा हो,
एक कतार में खड़े हुए थे।
चित्रगुप्त जब नाम बोलते,
उपस्थित सामने होते थे,
चित्रगुप्त लेखा-जोखा देखते,
ईश्वर को बताते थे।
लेकिन,
ईश्वर को मैंने देखा,
सर पकड़कर बैठे थे,
कुछ लोग उन्हें घेरे थे,
हल्ला खूब मचा रहे थे।
मैं तो जीवित अवस्था में था,
उनके पास पहुंच गया,
पूछा,
"भगवन्,
आप बड़े चिंतित लगतें हैं,
आखिर क्या बात है?"
ईश्वर बोले,
"वत्स,
क्या बताऊँ,
बात ही कुछ ऐसी है,
अपनी गलती से यहाँ पृथ्वी से मैंने,
सत्ता और विपक्ष दोनों को बुला लिया है,
सत्ता पक्ष शान्त बैठा है,
विपक्ष चिल्ला रहा है,
"हम चाहे जैसे भी हों,
स्वर्ग हमको चाहिए,
और,
जो साथी मेरे नर्क में बैंठे हैं,
उनको भी यहीं बुलाओ तुम।"
यदि मैं नहीं मानता,
धरने तथा भूख हड़ताल की धमकी देतें हैं।"
मैं बोला,
"हे ईश्वर,
छोड़िये यह सब,
बस,
अब चुनाव करवा दीजिए।"
सुनकर मेरी बातों को,
ईश्वर न जाने क्यों कुपित हो गये,
बोले,
"दुष्ट,
क्या बोल रहा है,
मुझे बेवकूफ समझा है क्या?
नहीं छोड़नी मुझे अपनी कुर्सी,
चल भाग यहाँ से,
नहीं तो----------------।"
मैं भागा तुरन्त वहाॅ से,
और,
बिस्तर पर आ गिरा।

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