Monday, September 16, 2019

मैं पहुंचा इन्द्र पुरी में

मैं पहुंचा इन्द्र पुरी में
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कल मैं उड़ रहा था,
आसमान में,
ऊपर बहुत ऊपर,
किधर जा रहा था,
पता नहीं था।
स्वर्ग खोज रहा था,
या,
नर्क को,
यह भी याद नहीं है,
बस,
भटक रहा था बीच आसमान में,
लेकिन,
उड़ तो ऊपर की ओर ही था।
देखा,
क्या देखा?
देखा,
इन्द्र पुरी में पहुंच गया था,
मैं पहुंच गया दरबार में,
इन्द्र देव सोम रस में मस्त थे,
देवता भी सोम रस ले रहे थे,
झूम रहे थे बेचारे,
और,
नर्तकियां नृत्य कर रहीं थीं,
सभी देवता बेखबर थे,
द्वार पाल भी मस्त पड़े थे,
किसी को खबर नहीं थी,
मैं अन्दर आ गया हूॅ।
उड़ते-उड़ते मैं थक गया था,
सोचा,
थोड़ा सोम रस ले लूं,
थकान मिट जायेगी।
पहुंचा सोम रस घड़े के पास,
एक कोने में रखा हुआ था,
बस,
चुल्लू भर पिया,
मजा आ गया,
थकान मिटने लगी थी।
क्योंकि,
मैं मनुष्य था,
लालच बढ़ने लगा,
पीने लगा मैं,
गटागट गटागट,
आखिर बूंद तक पी गया,
एक भी बूंद न छोड़ा था।
लेकिन,
मैं था इंसान ही,
लालची और दूसरे का हक मारने वाला,
घड़े को चाटने लगा,
सफा चट जब वह हो गया,
मुझे होश आने लगा,
कि,
क्यों मनुष्य असंतोषी होता है,
क्यों काटता है दूसरों का गला,
सब कुछ पाने के लिए?
उत्तर तो मिलना नहीं था,
मैं सोम रस पीकर भी,
बेचैन होने लगा।
उधर इन्द्र जी को होश आने लगा,
सोम-सोम चिल्लाये,
देवता दौड़े घड़े की ओर,
मैं डरा,
अब तो मेरी खैर नहीं।
छुप गया एक कोने में,
मैं देखने लगा,
देवता घड़े तक आये,
उसे उठाया,
और,
चिल्लाये,
"महाराज,
घड़ा तो खाली हो गया।"
इन्द्र समझ गये तुरन्त ही,
बोले,
"ढूंढो,
लगता है,
कोई मनुष्य आ गया,
वह ही इतना असंतोषी होता है।"
मैं भागा नीचे की ओर,
और बिस्तर पर गिरा,
तब जाना,
यह तो एक सपना था,
पर,
कितनी सत्यता लिये था,
अब,
समझ में आने लगा।

आज के लिए इतना ही...धन्यवाद
अगर आपको यह पोस्ट अच्छी लगी हो तो कृपया कमेंट और शेयर करें... सुधीर श्रीवास्तव

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