Friday, September 6, 2019

                         अन्तर बेटों का
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लाला अमर नाथ एक सीधे-सादे साधारण घर के आदमी थे।साधारण रहतें थे।रहन-सहन भी साधारण था।पहले जब टेलीग्राफ ऑफिस(तार घर) हुआ करता था उसमें टेलीग्राफिस्ट थे।प्रोन्नति पाकर टेलीग्राफ मास्टर हो गये थे।हालाँकि बाहर "तार बाबू" के नाम से मशहूर थे लेकिन ऑफिस वाले "डाॅक्टर साहब" कहते थे।क्योंकि उन्हें पढ़ने-लिखने का शौक था हमेशा कुछ न कुछ पढ़ते रहते थे।बातें भी फिलाॅस्फरों की तरह करते थे।यकीन मानिए  ९० साल की उम्र में भी बंगाली सीखते रहते थे।
उनके दों लड़के हैं ओम प्रकाश और ओम नारायण।ओम प्रकाश पढ़ने में बहुत तेज था साथ ही मेहनती।मेहनत रंग लाती और शुरू से कक्षा में प्रथम आता था।हाईस्कूल तथा इण्टर या कोई भी कक्षा हो कोई न कोई पोजीशन रखता था।किस्मत का धनी था सो पढ़ाई के लिए विदेश भी हो आया।नौकरी लगी तो बहुत ऊंची पोस्ट पर।साल में दो-तीन बार विदेश के चक्कर लगाने लगे।लाला अमर नाथ जी का दिमाग सातवें आसमान पर रहने लगा।ओम प्रकाश की शादी के लिए लड़की देखने लगे तो लड़कियों में कमी ही निकालने लगे।चूँकि लड़का बहुत काबिल था इसलिये लड़की भी बहुत पढ़ी-लिखी,बहुत सुंदर,स्मार्ट चाहिए थी।अतः जो भी लड़की देखते कमी ही निकाल देते।किसी को कम सुन्दर बता देते तो किसी को छोटे कद की,किसी को कम पढ़ी-लिखी,तो किसी को ऊँटनी कह देते,अगर राह रास्ते कोई लड़की वाला अपनी लड़की दिखाता तथा यदि उसकी लड़की धूपी चश्मा पहनी हो तो कह देते इसकी ऑखों में दिक्कत हो सकती है।कहने का आशय कि कोई लड़की ही पसंद नहीं करते थे।ओम प्रकाश की उम्र को जैसे पंख लग गये थे।दिन-ब-दिन बढ़ती ही जा रही थी।बहुत इंतजार किया उसने तो हारकर एक प्रेम विवाह कर बैठा।लड़की साधारण ही थी लेकिन होशियार थी।लाला अमर नाथ जी के हाथ के तोते ही उड़ गए।किन-किन अरमानों को सोचा था।सब ध्वस्त हो गये।ओम प्रकाश अक्सर ही बाहर रहता इसलिये पत्नी को भी साथ ले जाता।उसके पास माँ-बाप के लिए समय न रहता।
ओम नारायण इसके विपरीत पढ़ने में कमजोर था।मेहनती था तो लेकिन शारीरिक।माँ-बाप का ध्यान रखता था।बिस्तर वगैरह सब बिछाता था।उसकी नौकरी एक बाबू के रूप में लग गयी।पत्नी मिली साधारण लेकिन सास-ससुर का ध्यान रखने वाली।
एक बार ओमप्रकाश तथा ओम नारायण घर में ही थे।माँ-बाप भी थे।दोनों बेटों में किसी बात को लेकर कहा-सुनी हो गई।तो लाला अमर नाथ बोले,"ओमप्रकाश तुमने मुझे नाम तो दिया किन्तु पुत्र का सुख तो ओम नारायण ने ही दिया है।मैं तो यही आशिर्वाद दूंगा कि तुम दोनों सुखी रहो।"

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