Wednesday, August 14, 2019

संस्कार

अजय की शादी हुए पाँच साल हो गए थे।किन्तु संतान का मुंह न देख पाये।कई मनौतियां मनाई कई देवी-देवता पूजे लेकिन संतान पर जैसे भगवान ने रोक लगा रखी थी।बेचारे डाक्टरों के पास दौड़े लेकिन परिणाम ढाँक के तीन पाँत सिफर।परेशान हो गए।पत्नी की बहुत इच्छा थी संतान को गोद खिलाने की।अजय की माँ पोते की आशा लगाये ही दुनिया से उठ गईं।पिताजी पोते की आशा में अभी तक जिन्दा हैं।पास-पड़ोस वाले चर्चा करनें लगें।चार औरतें जहाँ जुटतीं यही चर्चा करतीं।अजय की पत्नी नीलम भी अन्दर ही अन्दर घुटती रहती।
थक-हार कर अजय ने अनाथालय से बच्चा गोद लेने का विचार बना डाला।नीलम को बताया तो थोड़ा न नुकुर के बाद वह तैयार हो गई।पिताजी ने विरोध तो किया लेकिन अजय अपने निर्णय पर अटल रहे।
पिताजी बोलतें,"न जाने क्या कर रहे हो।न जाने किस जाति का लड़का मिले।"
अजय कहते,"पिताजी,चाहे जिस जाति का हो।पालन-पोषण हमें करना है इसलिए उसकी जाति भी हमारी हो जायेगी।"
पिताजी के विरोध के बावजूद अजय अनाथालय से एक बच्चा गोद ले आये।पिताजी ने अजय से बात करना ही छोड़ दिया।नीलम बच्चे में व्यस्त हो गयी।वह एक भली पढ़ी-लिखी अच्छे परिवार की लड़की थी सो बच्चा भी अच्छे संस्कार सीखने लगा।अजय को पापा और नीलम को मम्मी कहने लगा।अजय के पिताजी को बाबा कहता लेकिन वे उससे दूर ही रहते।घृणा करते।चूंकि अजय तथा पत्नी नीलम उनकी मानसिकता समझते थे इसलिये उनकी बातों का ध्यान नहीं देते थे।बच्चे का नाम रखा गया,"सुयश"
बड़ा अच्छा लगता था तथा पढ़ने में भी बहुत तेज।इन सबके ऊपर अजय तथा नीलम द्वारा उसे दिये जा रहे अच्छे संस्कार सोने में सुहागा साबित हो रहे थे।लेकिन पिताजी को पोता न होने का कष्ट बना रहा।दिन बीतते गये लड़का बड़ा होता गया।जैसा नाम वैसा ही काम। वह स्कूल जाने लगा तो बाबा का पैर छू कर जाता।स्कूल से आने पर भी छूता था।रात में सोने जाते समय,"बाबा,गुड नाइट " जरूर कहता।कोई प्रश्न समझ में नहीं आता तो बाबा से पूछता।आखिर अजय के पिताजी बुजुर्ग व्यक्ति हैं बच्चे से दूर कहाँ रह सकते थे ऊपर से उसके संस्कारों ने तो जादू कर दिया।सुयश बाबा के करीब होता गया।
कैसे?
पिताजी भी नहीं समझ पाये।एक दिन अजय ने किसी बात पर सुयश को एक थप्पड़ जड़ दिया।बच्चे के रोने की आवाज सुनकर अजय के पिताजी आ गये।उसे गोद में लेकर दुलारते हुए बोला,"खबरदार जो मेरे पोते को आइन्दा मारा।"
अजय तथा नीलम की ऑखों में ऑसू आ गये और खुशी का ठिकाना न रहा।उन्हें यह भी पता न चला कि यह सब बच्चे को उनके द्वारा दिये गये संस्कारों के कारण ही सम्भव हुआ है।

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