हम न भूलेंगे
राकेश और ममता बचपन में साथी थे, साथ ही खाते-पीते थे। यदि कोई दूसरा बच्चा इनमें से किसी से बात भी करता तो जाने क्यों दूसरा चिढ़ जाता था। इन्हें दूसरे बच्चे का यूं बात करना पसंद नहीं आता था। यदि कोई मार भी खाता तो कष्ट दूसरे को होता था। एक दिन किसी बच्चे ने ममता को कुछ कह दिया वह रोने लगी तो राकेश उस बच्चे से भिड़ गया मार कर ही उसने दम लिया। दिन बीतते गये दोनों की उम्र बढ़ती गई, दोनों बड़े होते गये किशोरावस्था लाँघ कर जवान हो गये, साथ ही बढ़ती गई इनकी प्रगाढ़ता, न जाने कब दोनों को एक-दूसरे से प्यार हो गया पता नहीं चला।
दोनों एक-दूसरे को जी जान से चाहने लगे। घर वाले जब तक इनकी दोस्ती का बदला रूप समझते बहुत देर हो चुकी थी। दोनों प्यार की सीमा समझते थे।इनका प्यार उस सीमा के अंदर ही रहता था। कभी भी वह सीमा लाँघने की कोशिश नहीं की।लेकिन यह समाज है ऊँगलियां उठने लगीं। परिवार वालों ने दोनों पर बंदिशें लगानी शुरू कर दीं। ममता घर में नजरबंद तो राकेश परेशान, वह ममता से मिलने की कोशिश करता लेकिन ममता के घर वालों की नजर देखकर हिम्मत नहीं कर पाता था।
इधर राकेश के बाबा समझदार व्यक्ति थे।दोनों की दशा समझ रहे थे।उन्होंने एक दिन राकेश से खुलकर बात की, राकेश ने साफ-साफ कह दिया, "मैं ममता के बिना नहीं रह सकता।"
बाबा ने समझाया, "कम्बख्त, उसे इतना ही चाहता है तो कुछ दिन के लिये उसे भूल जा। पहले कुछ बनने की कोशिश कर, मैं वादा करता हूॅ कि तेरी शादी उसी से करवा दूंगा।लेकिन उसके लिए तुझे कुछ बन कर दिखाना होगा।"
राकेश ने यह चुनौती स्वीकार कर ली।
दूसरे दिन शाम को बाबाजी राकेश के पिताजी को साथ लेकर ममता के घर गये। पहले उसके घर वालों ने मिलने से इंकार कर दिया। लेकिन बाबाजी की उम्र का लिहाज करते हुए ममता के पिताजी बात करने को राजी हुए।घर में बैठाया और प्रश्न भरी नजरों से देखा।बाबाजी शालीनता से बोले, "केशव, तुमने और माधव (राकेश के पिताजी) ने बचपन से ध्यान नहीं दिया।बच्चे जब एक-दूसरे को जानने-समझने लगे तो यह पाबंदियां क्यों? बच्चों की गलती कम तुम दोनों की अधिक है।"
अब केशव तथा माधव जी एक-दूसरे को देखने लगे।
तभी बाबाजी बोंले, "केशव, ममता को थोड़ा बुला दो।"
बुजुर्ग की बात केशव टाल नहीं पाये।ममता आई तो बाबाजी ने उसे पास बैठाया। बोले, "बेटा, स्पष्ट शब्दों में उत्तर देना।यह राकेश और तुम्हारी जिन्दगी का सवाल है।"
ममता जमीन देखती रही।
बाबाजी ने सीधा प्रश्न किया, "राकेश को तुम कितना चाहती हो? वह तो कुछ करता नहीं।मेरी एक सलाह है यदि तुम दोनों कुछ बन कर दिखाओ तो मानूं, और रही शादी की बात तो उसे मैं करवा दूंगा।"
ममता कुछ देर सोचती रही फिर अपने पिता केशव को देख कर केवल यही बोली, "ठीक है बाबाजी, हमें आशिर्वाद दीजिए।"
फिर राकेश और ममता ने मिलना छोड़ दिया बस इसी आशा में कि यदि हमारा प्यार सच्चा है तो हम कुछ बनकर रहेंगे।आखिरकार दोनों की चार साल की अथक मेहनत रंग लायी, राकेश इंजीनियर तो ममता डॉक्टर बन गयी।
एक दिन बाबाजी ने केशव और माधव जी से पूछा, "अब क्या विचार है?"
दोनों कुछ न बोल पाये।बाबाजी ने कहा,"जवान बच्चों को पाबंदी लगा कर नहीं रोक सकते, अतः शर्त रखो कि वे भविष्य बनाने के साथ-साथ अपनी इच्छा भी पूरी कर सकें।"
आज के लिए इतना ही...धन्यवाद
अगर आपको यह पोस्ट अच्छी लगी हो तो कृपया कमेंट और शेयर करें... सुधीर श्रीवास्तव
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