Friday, August 9, 2019

दो भाई

यह दोनों हैं भाई-भाई,
बचपन में एक साथ रहते थे,
खाते-पीते साथ थे दोनों,
झगड़ा भी कर लेते थे,
यह झगड़ा कितना प्यारा था,
फिर एक-दूजे के हो जाते थे,
माँ-बाप भी देखकर इन दोनों को,
खुश होते वह दोनों थे।
पापा के साथ स्कूल जाते थे,
मम्मी के साथ आते थे,
साथ ही खाते साथ ही पीते,
खाते-पीते मस्त थे दोनों।
झगड़ा जब दूजे से होता,
मिलकर लड़ जाते थे,
पापा की डाँट सुनते रहते,
पर मार कर उसे दम लेते थे।
समझाते एक-दूजे को थे,
भाई तुम यहाँ गलत थे,
तुम्हें यहाँ न यह करना था,
ऐसा नहीं ऐसा करना था।
पढ़ने-लिखने में अच्छे थे,
नौकरी पा गये जल्दी ही,
ऑफिस जाते माँ-बाप से मिलकर,
आने पर भी मिल लेते थे।
फिर दोनों की शादी हो गई,
व्यस्त यह दोनों होने लगे थे,
समय बँटा अब तीन हिस्सों में,
पत्नी, माँ-बाप और ऑफिस में।
फिर इनकी सन्तानें हो गयीं,
जरूरत इनकी बढ़ने लगी थी,
समय भी अब घटने लगा था,
माँ-बाप दूर होने लगे थे।
समय एक बुरा सा आया,
माँ-बाप चलते बने थे,
इनके बच्चें बढ़नें लगे थे,
खेलने-कूदने-हँसने लगे थे।
पहले वाली बात न रह गई,
दोनों परिवार बँटनें लगे थे,
अलग ही खाते अलग ही पीते,
अपने परिवारों में सीमित हो गये।
मकान जो माँ-बाप ने बनाया,
कर लिया उसका बँटवारा,
बीच में दीवार आ गई,
तेरे और मेरे घर में।
इनकी दूरी बढ़ने लगी थी,
बोल-चाल भी बन्द हो गयी,
मिलने को कौन कह सकता,
एक-दूजे को देख नहीं सकते।
गैरों को अपना बनाकर,
दुश्मन हो गये दोनों भाई,
कैसा यह आ गया जमाना,
भाई से भाई नहीं मिलता।
हे भगवान,
मुझे बचाना,
मुझको ऐसी बुद्धि न देना,
माँ-बाप के अरमानों पर,
मुझको नहीं है पानी फेरना।।



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