Thursday, August 1, 2019

घर से दूर रहने वाले बच्चों के प्रति माँ-बाप का फर्ज

घर से दूर रहने वाले बच्चों के प्रति माँ-बाप का फर्ज
------------------------------------------‌---------------
हो सकता है, मेरी बातें कुछ लोगों को बुरी लगे, लेकिन मैं जो कुछ भी कहने वाला हूॅ, ईश्वर जानता है बिना किसी द्वेष भावना के बच्चे के हित के लिए कह रहा हूॅ।
हर माँ-बाप की इच्छा होती है कि, "मेरी संतान अच्छा पढ़े अच्छा कमाये।" इसके लिए बहुत कम माँ-बाप खुशकिस्मत होतें हैं जिनकी संतान साथ ही रहती है। वरना अधिकांश बच्चों को बाहर ही रहना पड़ता है, जिसे माँ-बाप अपना बड़प्पन समझतें हैं। आज की शानो-शौकत की चकाचौंध दुनिया में बच्चे बहक भी जातें हैं।बहकने का मतलब, शराब और सिगरेट आदि ही नहीं होता फिजूलखर्ची भी होती है, आय से अधिक खर्च दिखावे में, जिसे माँ-बाप अपने बच्चे की और अपनी शान समझतें हैं।
लेकिन मेरे विचार से माँ-बाप को यह पता लगाते रहना चाहिए कि बच्चा कितना कमा रहा है या हम उसे जो खर्च दे रहें हैं उसका वह करता क्या है? इसमें कोई बुराई नहीं लगती और माँ-बाप इसे दूर रह कर भी जान सकतें हैं।
केवल समय-समय पर बच्चे से ही उसकी दिनचर्या पूछ कर मसलन, "आज क्या किये? कहाॅ गये थे? क्या खरीदे? क्या खाये? कहाॅ खाये होटल में या घर पर?"
इसके लिए बच्चे को अपने विश्वास में लेना बहुत जरूरी है चाहे वह शादीशुदा हो या क्वांरा। खुद माँ-बाप जान जायेंगे बच्चा किस रास्ते जा रहा है, फिजूलखर्ची तो नहीं कर रहा है? यदि कर रहा है तो इतने पैसे कहाँ से लाता है?
बच्चों में निर्णय लेने की शक्ति उत्पन्न करना माँ-बाप का फर्ज है, लेकिन उसके किसी भी निर्णय को माँ-बाप को जानना आवश्यक भी है, ताकि पता चल सके कि उनके बच्चे द्वारा लिया गया निर्णय, विशेष तौर से क्वांरे बच्चे द्वारा, सही है या गलत।

आज के लिए इतना ही...धन्यवाद
अगर आपको यह पोस्ट अच्छी लगी हो तो कृपया कमेंट और शेयर करें... सुधीर श्रीवास्तव

ऐसे ही और कहानियां पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करे


No comments:

Post a Comment