Thursday, August 15, 2019

ऐसे भी परिचित

मुकेश जी बहुत ही सज्जन पुरूष हैं।हैं तो बिजनेस मैन काफी पैसा भी जुटा कर रखें हैं।दिल वाले हैं सबके हर दुःख में एक पैर पर खड़े रहतें हैं।इसलिए रिश्तेदारों तथा परिचितों में अलग ही पहचान रखतें हैं।सभी उनसे प्रसन्न रहतें हैं।किन्तु उनकी एक आदत बहुत बुरी है किसी की उन्नति वह नहीं देख पातें हैं।पता नहीं दूसरे की उन्नति से वे चिढ़ क्यों जातें हैं।सोचतें हैं सभी हमसे नीचे रहें कोई आगे न बढ़ पाये।लड़का अधिकारी क्या बन गया आसमान में उड़ने लगे।अपने को और बड़ा समझने लगे।
मैंने समझाया भी कई बार,"मुकेश बाबू,यह दुनिया है।इसमें यह मत समझिये कि आप सबसे ऊँचे हैं दुनिया में न जाने कितने ही लोग आपसे भी ऊँचें हैं।एक से एक बढ़कर लोग हैं इतने ऊंचे कि हमको आपको खड़े-खड़े खरीद लें।आप सबके दुःख में काम आतें हैं अच्छी बात है लेकिन किसी की उन्नति  जहाँ तक मैंने पाया है आपको अच्छी नहीं लगती।"
वे मेरी बातों को वे मजाक में उड़ा देते।कहते,"फिलहाल तो यहाँ तो सबसे ऊंचा हूॅ।"
मैंने कहा, "भाईसाहब, आपको समझा रहा हूॅ समय से बड़ा कोई नहीं।न जाने समय किसका पलटकर आ जाये।"
बात आई गई हो गई।मेरा बड़ा बच्चा चूंकि क्लर्क है उनका अधिकारी अतः वे मेरे दोनों को हेय दृष्टि से देखते।कहते," अरे, इनके बेटे तो बस ऐसे ही हैं।मेरा बेटा तो अधिकारी है अधिकारी।"
मैंने इसे चुनौती के रूप में लिया।अपने दोनों बच्चों को ढाँढस और हिम्मत देनी शुरू की।धीरे-धीरे उनमें जोश भरा।मेरी मेहनत रंग लाई दोनों में अधिकारी बनने की ललक पैदा हो गई।आखिरकार दोनों बच्चे अधिकारी हो गये।बड़े वाले ने क्लर्क की नौकरी से इस्तीफा दे दिया।ऑफिस की तरफ से दोनों को स्टाफ कार मिल गयी।मुकेश जी अब कुछ न बोलते।
मैंने अब दोनों बच्चों को समझाया,"बेटा, दुनिया में कई तरह के आदमी होतें हैं एक वे जो तुम्हारे दुःख में काम तो आयेंगे लेकिन तुम्हारी उन्नति देख कर चिढ़ जायेंगे।दूसरे वे जो सुख-दुःख हर तरह के मौके पर काम आयेंगे।मैं तो यही कहूँगा किसी की उन्नति पर चिढ़ना नहीं और न ही खुद को ऊँचा समझना क्योंकि दुनिया में ऊँचें और बहुत ऊँचें लोगों की संख्या कम नहीं है।

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