Friday, August 16, 2019

बहू की राखी

बहू की राखी 

Bahu ki rakhi


प्रतिभा की शादी इसी साल साधारण घर में हुई है। घर में केवल सास "कान्ति देवी" और पति "राजेश" ही हैं।शादी से पहले पिता-भाई से उसने सुन रखा था कि सास कान्ति देवी अनुशासन प्रिय तथा सख्त मिजाज की हैं, सो प्रतिभा उनसे डरकर ही रहती है। शुरू में तो प्रतिभा बहुत परेशान हुई कोई सामान इधर-उधर हुआ नहीं कि कान्ति देवी टोक देती। सब कुछ समय से करना पड़ता, दैनिक दिनचर्या से शुरू करके रात सोने तक हर काम करीने से करना पड़ता। लेकिन अब तो प्रतिभा की आदत सी हो गई है।
रक्षाबंधन आने को था। चूंकि शादी के बाद पहला रक्षाबंधन था अतः भाइयों को राखी बाँधने के लिए प्रतिभा का मन मायके जाने को बहुत लालायित था। किन्तु उसी दिन पति राजेश की बहन भी आने वाली थी, इसलिए वह सास के डर से मन मसोस कर रह गई कि पता नहीं वे जाने देंगी या नहीं।
रक्षाबंधन के एक दिन पहले कान्ति देवी ने पूछा, "प्रतिभा, भाइयों को राखी बाँधने नहीं जाओगी क्या?"
प्रतिभा ने जबाव दिया, "जाना तो चाहती हूॅ माँ जी, लेकिन बीबी जी भी तो आ रहीं हैं।"
सुनकर कान्ति देवी चुप हो गईं। उनकी चुप्पी को प्रतिभा ने न समझा। मन टूट गया उसका ऐसे अनुशासन से,
कान्ति देवी तीनों का एक साथ नाश्ता व भोजन करना पसंद करतीं थीं। रक्षाबंधन वाले दिन भी तीनों लोग सुबह एक साथ नाश्ता कर रहे थे तो गेट पर एक कार का हाॅर्न सुनाई पड़ा कुछ देर बाद काॅल बेल बज पड़ी।
राजेश बोले, "त्रृतु आई होगी? प्रतिभा दरवाजा खोल दो।"
प्रतिभा ने दरवाजा खोला तो एक अपरिचित को देखकर ऋतु को खोजने लगी, जब वह नहीं दिखी तो अपरिचित को प्रश्न भरी नजरों से देखा।
वह बोला, "कान्ति देवी जी का घर यही है न?"
प्रतिभा ने कहा, "हाँ है, तो लेकिन--------?"
अपरिचित बोला, "उन्होंने रात को फोन किया था, टैक्सी मँगवाई है।"
प्रतिभा ने मुड़कर कान्ति देवी को देखा, वह मुस्करा रहीं थीं बोली, "जल्दी से तुम दोनों तैयार हो जाओ, प्रतिभा तुमको भाइयों को राखी बाँधने जाना है अभी।"
राजेश और प्रतिभा हक्का-बक्का, बोले, "लेकिन माँ ऋतु---------?"
कान्ति देवी बोलीं, "मेरी आदत जानते हो मैंने कह दिया जाना है तो जाना है ऋतु को मैं समझा दूंगी।"
कहकर वे अपने कमरे में चलीं गयीं, राजेश कहने लगे, "न कोई तैयारी है, न हो सकती है, राखी खरीदना है मिठाई खरीदना है, ऊपर से  100 किलोमीटर का सफर है, माँ भी गजब हैं आर्डर सुना दिया, चलो जाओ तैयार हो जाओ, नहीं तो माँ को जानती हो न।"
दोनों तैयार होने चले गए, प्रतिभा को एक ओर मायके जाने की खुशी हो रही थी वहीं तैयारी न कर पाने की खिसियाहट हो रही थी। खैर तैयार होकर आई तो देखा कि कान्ति देवी ने राखी का पूरा सामान, राखी, मिठाई आदि-आदि मेज पर रख दिया था। बोलीं, "बहू, यह सामान लेती जाओ, कुछ खरीद तो पाई नहीं होगी?"
सास का प्रेम देख प्रतिभा की ऑखों में ऑसू आ गये। कान्ति देवी बोलीं, "बहू,सुना नहीं मैंने क्या कहा?"
प्रतिभा सामान उठा कर चलने लगी तो कान्ति देवी बोलीं, "शाम को आ भी जाना बहू वहाँ रूकना मत।"
प्रतिभा भरे गले से केवल "जी" ही कह पाई।
दूसरे दिन सुबह काँल बेल फिर बज उठी।कान्ति देवी स्नान कर रहीं थीं। वहीं से बोलीं, "बहू, देखो तो कौन है? "
प्रतिभा ने दरवाजा खोला तो ऋतु दिखाई पड़ी, प्रतिभा अचरज से बोली, "बीबी जी आप!"
ऋतु बोली, "अरे भाभी, अन्दर भी आने दोगी या फिर?"
कहते-कहते वह अन्दर घुस आई। बोलती जा रही थी, "ये माँ भी गजब की है कल मुझे आने को मना कर दिया था कि आज बहू राखी बाँधने जायेगी तुम आज नहीं कल आना सो मैं आज आ गयी---------------।"
वह और न जाने क्या-क्या कहती रही प्रतिभा सुन नहीं पायी, सामने कान्ति देवी को देखकर उनसे लिपट कर रोने लगी बोली;
,"माँ जी-----------।"
कान्ति देवी बोली, "बहू, तुम बहू नहीं मेरी बेटी हो। मैं एक माँ हूॅ।"

आज के लिए इतना ही...धन्यवाद
अगर आपको यह पोस्ट अच्छी लगी हो तो कृपया कमेंट और शेयर करें... सुधीर श्रीवास्तव
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