Saturday, August 17, 2019

शिक्षक दिवस पर विशेष मास्टर साहब

मास्टर साहब 


मास्टर सुरेन्द्र श्रीवास्तव जी सीधे-सादे सज्जन व्यक्ति हैं, साथ ही अपने काम के प्रति समर्पित रहतें हैं। छात्रों के प्रिय हैं।हालांकि हैं तो हिन्दी के अध्यापक लेकिन हर विषय पर समान अधिकार रखतें हैं। छात्र सुरेन्द्र जी की सादगी और शालीनता तथा ज्ञान से इतने प्रभावित रहतें कि चाहे जिस विषय के प्रश्न का उत्तर समझना होता है उन्हीं के पास जातें हैं। अन्य अध्यापकों को उनकी यह लोकप्रियता पसंद नहीं है।
अन्य विषयों के अध्यापक छात्रों को डाँटते, "उनके पास क्यों गये थे, मुझसे नहीं समझ सकते थे?"
लेकिन छात्र हैं कि मानते नहीं। अध्यापक सुरेन्द्र जी से कहते तो वे बोलते, "भाई, मैं एक टीचर हूॅ और टीचर का काम है छात्रों का ज्ञान बढ़ाना और उनकी समस्याओं को हल करना,  मैं किसी को बुलाता तो नहीं, लेकिन जो भी छात्र मेरे पास समस्या लेकर आयेगा मैं हल करना सिखाया करूँगा।"
उनके इस उत्तर से अध्यापकों में रोष पैदा हो जाता है क्योंकि इसका उनकी ट्यूशन व कोचिंग पर सीधा असर पड़ता है। जो अध्यापकों को पसंद नहीं आता है। क्योंकि सभी अध्यापक या तो ट्यूशन या कोचिंग चलाता है। लेकिन सुरेन्द्र जी इनमें से कुछ नहीं करते लेकिन बच्चों को इतना अच्छा पढ़ातें हैं कि छात्रों को ट्यूशन या कोचिंग की जरूरत नहीं होती है।
अन्य अध्यापक उनके द्वारा पढ़ाये गये छात्रों को प्रेक्टिकल में कम नम्बर दिलाने की कोशिश करते हैं किन्तु सुरेन्द्र जी छात्रों को इतना परिपूर्ण कर देते हैं कि परीक्षक अध्यापक के कहने के बाद भी नम्बर कम नहीं दे पाते हैं।
आखिर हार कर अध्यापक प्रधानाचार्य से कहते, "सर, सुरेन्द्र जी को मना दीजिए कि मेरे विषय में हस्तक्षेप न किया करें नहीं तो लड़कों के फेल होने की जिम्मेदारी हमारी न होगी।"
प्रधानाचार्य ने कई बार सुरेन्द्र जी डाँटा भी कि, "क्यों दूसरे के विषय के सवालों का हल छात्रों को बताते हो? अपने विषय हिंदी पर ही ध्यान दिया करो।"
सुरेन्द्र जी कहते, "सर,मैं एक अध्यापक हूॅ और अध्यापक होने की फर्जादायगी नहीं करता बल्कि फर्ज अदा करता हूॅ।"
प्रधानाचार्य उन्हें निलंबित करने की धमकी दे देते। लेकिन सुरेन्द्र जी अपने रवैये अड़े रहते हैं।
विद्यालय का वार्षिक उत्सव आ गया। अध्यापकों में से किसी एक को "सर्वश्रेष्ठ अध्यापक" का पुरस्कार मिलना है। सभी अध्यापक अपनी-अपनी व्यवस्था में लगे हुए हैं क्योंकि उसी अध्यापक का नाम मुख्यालय भेजा जायेगा। जिसे प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर से पुरस्कार मिल सकता है। चार आदमियों की समिति बनी है।
प्रधानाचार्य भी उस समिति के सदस्य हैं। पशोपेश में रहतें हैं क्योंकि कई अध्यापक उनके करीबी हैं, समिति के सामने "किसका नाम पेश करूँ?"
सभी अध्यापक उनके पास किसी न किसी तरह पहुंच रहा है सिवाय सुरेन्द्र जी।
उनका मानना है,"मुझे पुरस्कार के लिए नहीं छात्रों के भविष्य के लिए रखा गया है।"
समिति बैठी अध्यापकों के कार्य की समीक्षा होने लगी। प्रधानाचार्य ने बिना कुछ सोचे-समझे सुरेंद्र जी का नाम अग्रसारित कर दिया। जिसे समिति ने प्रधानाचार्य द्वारा प्रस्तुत किये गये तथ्यों पर सर्व सम्मति से स्वीकार कर लिया।

आज के लिए इतना ही...धन्यवाद
अगर आपको यह पोस्ट अच्छी लगी हो तो कृपया कमेंट और शेयर करें... सुधीर श्रीवास्तव

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