Saturday, August 17, 2019

ढूँढता हूॅ तुमको

ढूँढता हूॅ तुमको यहाँ-वहाँ,
तुमसे ही तुम्हारा पता पूछता हूॅ,
तुम्हारे दरबार में आकर,
तुमको ही खोजा करता हूॅ।
देख कर मूरत तुम्हारी,
तुमसे ही तुमको पूछता हूॅ,
कभी यहाँ तो कभी वहाँ,
दर-दर मारा-मारा फिरता हूॅ।
नहीं मिलते तुम कहीं भी,
जबकि सुनता हूॅ मैं,
तुम कण-कण में रहते हो,
फिर,
क्यों दुनिया में कोई राजा,
कोई फकीर है।
अन्तर क्यों इतना रखते हो,
जब हर दिल में वास करते हो,
जो भक्त तुम्हारा है,
क्यों भूखा मरता है,
जो भक्त नहीं होता है,
क्यों चैन की नींद सोता है?

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