Saturday, August 17, 2019

बँटवारा

बँटवारा 
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अमीर चन्द्र जी नाम के ही अमीर नहीं हैं बल्कि वाकई में अमीर हैं, व्यापार में माहिर हैं, गाँव में पुश्तैनी बहुत बड़े शानदार मकान में रहतें हैं, बाप की अकेली संतान हैं सो बाप की पूरी सम्पत्ति के मालिक हैं कई बीघा जमीन है, बहुत बड़े काश्तकार हैं, लक्ष्मी तो घर में वास करतीं हैं, चार लड़के हैं, खुद तो कम पढ़े-लिखे हैं लेकिन बच्चों को पढ़ाने-लिखाने की उनकी बड़ी इच्छा है, बड़े तीनों लड़के तो पढ़-लिख गये यहाँ तक विदेश भी हो आयें हैं भाई, बड़े अधिकारी जो ठहरे।
लेकिन सबसे छोटा लड़का उनके लाख प्रयास के बाद भी बड़ी मुश्किल से हाईस्कूल ही पास कर पाया वह भी तृतीय श्रेणी, अमीर चन्द्र जी ने उसे डाँटा-डपटा मारा-पीटा हर विषय में ट्यूशन रखा पर छोटे के दिमाग में गोबर ही भरा रहा, थक-हार कर अमीर चन्द्र जी ने उसे पारचून की दुकान खुलवा दी।
जिससे उसे मामूली आमदनी होती है, लेकिन वह खाता-पीता और मस्त रहता है। छल-कपट तो जानता नहीं है गाँव का सीधा-सादा आदमी ही है, जबकि बड़े तीनों लड़के शहरी रंग में रंग चुके हैं। छोटे की एक आदत अच्छी है वह माँ-बाप से लगा रहता और उनकी सेवा करता रहता है।
अमीर चन्द्र जी ने बहुत समझाया, "हमारी चिंता छोड़ो अपनी करो, हमारा क्या है कब उठ जायें।"
छोटा कहता, "पिताजी,  आप दोनों से मैं हूॅ, आप लोग हैं तो मैं हूॅ, फिर मेरे तीन भाई बड़े आदमी हैं मुझे क्या चिन्ता?"
अमीर चन्द्र जी अपने इस लड़के से बहुत दुःखी रहते।
एक बार अमीर चन्द्र जी का मन बड़े तीनों लड़कों के पास जाने को हुआ ,अतः पत्नी सहित निकल पड़े, गाँव के सीधे-सादे खेतिहर आदमी हैं अतः दोनों पति-पत्नी गाँव के ही रंग में थे।
तीनों लड़कों का व्यवहार देख कर वे दंग रह गए ,जहाँ गाँव आते तो दोनों को छोड़ते नहीं हैं अम्मा-पिताजी की रट लगाये रहतें हैं, किन्तु अपने-अपने घर में जैसे पहचान नहीं रहें हैं। अपने बच्चों को दूर ही रखते कहीं गाँव का गँवार पन न सीख लें न किसी को बताते कि ये मेरे माँ-बाप हैं। लगभग रोज ही शाम को कार से परिवार सहित घूमने जाते लेकिन कभी भी नहीं कहतें, "अम्मा-पिताजी आप लोग भी चलिए।"
अमीर चन्द्र जी का मन खिन्न हो गया ,जल्द ही वापस आ गए अपने उसी छोटे के पास।
एक दिन देखा तीनों बड़े लड़के कारों से घर आयें हैं बताया भी नहीं था पहले से, कहने लगे, "आप और अम्मा बूढ़े हो गये हैं, इसके पहले कि आप दोनों को कुछ हो जाये हम लोग सोचतें हैं जायदाद का बँटवारा कर लें,  नहीं तो कौन कचहरी के चक्कर लगायेगा"
पति-पत्नी अवाक् रह गए, बोले, "जो इच्छा हो कर लो।"
उन्होंने छोटे को भी बुलाया, उससे पूछा गया तो वह बोला, "मैं दुकान जा रहा हूॅ, तुम लोगों को जो लेना है ले लेना मैं दस्तखत कर दूंगा,  लेकिन अम्मा-पिताजी को मत लेना, उनको मैं ही रखूँगा।"
अपनी पत्नी को देखकर फिर बोला, "क्यों कमला, ठीक कहा न?"
कमला ने भी हामी भर दी।
अपनी बात कहकर छोटा चला गया लेकिन जाते-जाते बड़े भाइयों को नैतिकता का तमाचा जड़ गया और अमीर चन्द्र जी तथा उनकी पत्नी की ऑखों में ऑसू छोड़ गया।

आज के लिए इतना ही...धन्यवाद
अगर आपको यह पोस्ट अच्छी लगी हो तो कृपया कमेंट और शेयर करें... सुधीर श्रीवास्तव

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