मेरे हिन्दी के शिक्षक
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आज मैं जो कुछ भी हूॅ उसमें उनका बहुत बड़ा योगदान है। हालाँकि मैं पढ़ने में सामान्य था। लेकिन उनकी बातें ध्यान से सुनता था। वे ऐसा पढ़ाते ही थे। कभी-कभी मैं अन्य विषय की कक्षा छोड़कर भाग जाता था। लेकिन उनकी कक्षा मैं नहीं छोड़ता था।क्योंकि हिन्दी के अतिरिक्त वे दुनिया दारी की बातें समझाते रहतें थे और मुझे हिन्दी कम दुनिया दारी की बातें अधिक अच्छी लगतीं थीं, अब भी लगतीं हैं।
उनकी बातें दिल में ऐसी बैठतीं कि यदि उन्हें अपनी जिन्दगी में प्रयोग करें तो जिन्दगी बन जाये।
अरे,
लगता है मैं राह भटक रहा हूॅ। शिक्षक महोदय की बात करते-करते अपनी बात करने लगा।
आइए,
उन्हीं की बात करता हूॅ।
एक दिन उन्होंने हम छात्रों से कहा, "एक सवाल करता हूॅ, देखूँ उत्तर कौन दे पाता है? सवाल है कि, ईश्वर ने ऐसी कौन सी चीज बनाई है जो राजा या रंक सबको एक समान दी है? जो उसका जिस रूप में जितना प्रयोग करता है उतना ही वह उसी रूप में उपयोगी होता है।"
सभी छात्र चुप, किसी को उत्तर समझ में नहीं आया, सभी सोचने लगे, कुछ छात्रों ने अपनी समझ से उत्तर भी दिया पर शिक्षक महोदय नकार गये।
लगभग दस मिनट प्रतीक्षा करवाने के बाद शिक्षक महोदय बोले, "मैं जानता हूॅ सवाल टेढ़ा है, इसलिए मैं खुद उत्तर देता हूॅ, उस चीज का जैसा जितना प्रयोग करोगे उतना ही वैसा बनोगे और वह चीज है...
"एक दिन के चौबीस घण्टे"
न किसी को एक सेकेंड कम न एक सेकेंड अधिक, चाहो तो बनो चाहो तो बिगड़ो।
आज के लिए इतना ही...धन्यवाद
अगर आपको यह पोस्ट अच्छी लगी हो तो कृपया कमेंट और शेयर करें... सुधीर श्रीवास्तव
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