Tuesday, August 27, 2019

                       चित्रकार
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एक चित्रकार जिस वक्त कोई चित्र बनाता है चाहे काल्पनिक हो या किसी को दिमाग में रखकर।वह चित्र बनाते समय चित्र में ही खो जाता है।उस समय वह किसी की दखलंदाजी पसंद नहीं करता बल्कि एकाग्र चित्त होकर चित्र में रंग भरने में व्यस्त रहता है।निश्चित है कि उसका दिमाग बँटा नहीं कि चित्र को मनचाहा रूप नहीं दे पायेगा चित्र बिगड़ भी सकता है।उस समय उसके दिल का कष्ट तथा दिमाग की उलझन वही समझ सकता है दूसरा कोई नहीं।
ठीक इसी प्रकार यह हमारा जीवन एक चित्र है और हम इसके चित्रकार।यह चित्र हमें ही बनाना होता है।जीवन चित्र बनाने वाले को जीवन को बनाने में इतना मशगूल रहना चाहिए कि उसे अपना ही होश नहीं नहीं रहना चाहिए।उसका एक ही लक्ष्य होना चाहिए अपना जीवन संवारना।मैंने तो खुद अपने ऊपर आजमाया है मैं वह चित्रकार हूॅ जो जीवन चित्र बनाते समय चित्र से दिमाग हटा चुका हूॅ और अपना जीवन जैसा कि अब अनुभव करता हूॅ वैसा नहीं बना सका जैसी मेरी इच्छा थी या बना सकता धा।बिगाड़ बैठा।
जीवन चित्र बिगड़ने का एहसास चित्र बनाते समय नहीं होता है।अनुभव होता है तब जब वक्त बीत जाता है।एक उम्र के बाद।जब हम पिछला बीता जीवन याद करतें हैं तो पाते हैं जीवन बनाते समय कहाँ-कहाँ हमने गलत रंगों का उपयोग किया था तब यदि हम संवेदनशील है तो सिवाय पछताने के कुछ नहीं बचता।अन्जाने में ही अपना जीवन बिगाड़ते समय हम गलत रंगों का प्रयोग कर बैठतें हैं और वही बिगड़ा रंग उस समय अच्छा लगता है।बाद में हम जब जीवन चित्र को हकीकत का जामा पहनाने लगतें हैं और जब जामा खुद को ही अच्छा नहीं लगता तब उसे स्वीकार करने के अलावा कोई उपाय नहीं रह जाता है।यही सोचकर कि किस्मत में यही लिखा था।
हमें अपना जीवन चित्र बनाने की कोशिश करनी चाहिए यह सोचकर नहीं कि होगा वही जो किस्मत में लिखा होगा।यदि एक चित्रकार यही सोच ले तो कभी अच्छा चित्र नहीं बना पायेगा।

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