Tuesday, August 27, 2019

मैं पहुंचा चित्रगुप्त के द्वार

मैं पहुंचा चित्रगुप्त के द्वार

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Chitra gupt
Chitragupt

मुझे,
अपने कर्मों का लेखा-जोखा देखना था,
पहुंच गया चित्रगुप्त के द्वार,
मैंने देखा भीड़ वहाँ पर,
मेरे तो छक्के छूट गए।
लोग पसीने-पसीने हो रहे थे,
मैं हैरान रह गया,
दरबान से बोला,
"कितनी भीड़ है यार,
अन्दर जाना तो मुश्किल है? "
वह बोला,
"यह नरक द्वार है,
ऐसी ही भीड़ होती है।
मानव जाति ऐसी कुकर्मी,
मरती है,
और,
यहाँ पर वेटिंग लिस्ट में पड़ती है,
इससे अधिक भीड़ तो अन्दर है,
कुछ को दाखिला मिल गया है,
कुछ वेटिंग लिस्ट में अभी पड़े हैं।
यह तो अभी-अभी आये हैं,
फार्मेल्टी निभा रहे हैं,
वह देखो,
वह स्वर्ग द्वार है,
अब बिलकुल खाली रहता है।
नहीं तो,
सतयुग में यही हालत वहाॅ की थी,
कलियुग क्या आया,
सारी भीड़ यहीं चली आई।"
मैं जीता-जागता मनुष्य था,
आदत से मजबूर था,
दरबान को धोखा देकर,
स्वर्ग द्वार से,
चित्रगुप्त के पास पहुंच गया।
बिजी थे बेचारे,
सर उठाने की भी फुर्सत नहीं थी,
बोले,
"अगला"
मैं बोला नहीं,
पर,
परिचय की पूरी लिस्ट थमा दिया,
उन्होंने सब देख डाला,
आधार, पैन कार्ड तथा वोटर आई डी,
राशनकार्ड, पासपोर्ट, बिजली का बिल,
पानी का बिल,टेलीफोन का बिल,आदि-आदि,
और संतुष्ट हो गये।
मेरा बहीखाता खोला,
बोले,
"तूने केवल पाप किये हैं,
पुण्य का तो नामोनिशान नहीं है।"
मैं बोला,
"बिल्कुल गलत है,
दो-तीन पुण्य भी किये हैं मैंने।"
वे बोले,
"तेरे उन पुण्यों ने,
तेरे कुछ पापों को धो दिया है,
तू तो घोर नरक में जायेगा।"
मैं बोला,
"मैं यह देखने आया हूॅ,
पुण्य कितने किये हैं मैंने,
और ब्याज सहित कितने होतें हैं,
अजी,
छोड़िये मेरे पापों को,
उन्हें दूसरे के खाते में डाल दीजिए,
तथा उपाय और बतायें,
जिससे मेरे पुण्य बढ़ जायें,
ये चुपके से ले लीजिए,
पूरे पचास हजार हैं,
लेकिन नर्क में मत डालिए।
पृथ्वी पर तो यह खूब चलता है ,
बाबू हो या अधिकारी हो,
ऐसे ही काम करतें हैं।"
गुस्से में उन्होंने,
सर उठा कर देखा,
फिर चिल्लाये,
"यह जीवित मनुष्य कैसे आया है,
भ्रष्टाचार फैला रहा।"
दरबानों ने मुझे उठा कर फेंका,
मैं सीधा बिस्तर पर गिरा,
सोचने लगा,
आखिर,
मैंने क्या गलत कर डाला,
कि,
चित्रगुप्त जी नाराज हो गए,
पृथ्वी पर,
बाबू और अधिकारी,
सभी तो रिश्वत खातें हैं।

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