Tuesday, August 20, 2019

वह माई

वह माई
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Old Lady

मैं शाम की ट्रेन से चला था, सफर चार घण्टे का था, किन्तु रास्ते में ट्रेन लेट हो गई, सो एक बजे प्रयागराज पहुंचा। स्टेशन से घर तीन किलोमीटर पर है, सोचा था छः बजे चला हूॅ तो दस बजे तक प्रयागराज पहुंच कर साढ़े तक घर पहुंच ही जाऊँगा लेकिन ट्रेन की लेट लतीफी ने मुझे कहीं का नहीं छोड़ा। घर पर केवल बूढ़े माँ-बाप ही रहतें हैं। छोटा भाई दिल्ली में रहता है।पिताजी फोन से रास्ते भर पूछते रहे, "कहाँ पहुंचे हो?"
मैं बताता चला गया लेकिन उन्हें स्टेशन आने से मना करता रहा, "आपको आने की जरूरत नहीं मैं घर आ जाऊँगा।"
स्टेशन उतरा तो देखा तेज बारिश हो रही थी। वैसे तो घर तक रिक्शे आदि हमेशा मिल जाते हैं किन्तु तेज बारिश में कोई जाने को तैयार नहीं हुआ।
"अब क्या करूँ?" मैं सोचने लगा।
इधर पिताजी का फोन आ रहा था,"बारिश बहुत तेज है कैसे आओगे?"
एक बजे रात में भी वे मेरी इंतजार में जाग रहे थे, मैं उनकी आदत जानता हूॅ बहुत जल्दी घबड़ातें हैं, यदि मैं कह देता कि,"स्टेशन पर फँसा हूॅ, "तो निश्चित छाता लेकर मेरा रेन सूट लेकर आ जाते।
क्योंकि वह ७० साल के हैं इसलिए उनको परेशान करना मैंने उचित नहीं समझा, अतः कह दिया, "एक रिक्शा मिल गया है आ रहा हूॅ, उल्टी हवा के कारण रिक्शा धीमा चल रहा है, पहुंचने में कुछ देर होगी।"
जबकि हकीकत में ऐसा कुछ नहीं था, मैं पैदल ही स्टेशन से भीगते हुए निकल पड़ा, काली आधी रात को तेज बारिश और उल्टी हवा भयावह बना रहीं थीं। मैं बुरी तरह भीग गया था, हवा के झोंके से ठंड लग रही थी। एक मकान में बत्ती जलती देखकर दरवाजा खटखटाया तो सुनाई पड़ा, "जो भी हो चले जाओ। मैं जानता हूॅ तुम लोग ऐसे मौसम का नाजायज फायदा उठाते हो।"
मैं आगे बढ़ा, कुछ दूर पर एक झोपड़ी दिखी। याद आया एक बूढ़ी औरत इसमें रहती है, मैं झोपड़ी तक पहुँचा। ठंड से चलना मुश्किल हो गया, मैंने आवाज लगाई तो बूढ़ी औरत की आवाज सुनाई पड़ी, "भइया, कौन हो यहाँ कुछ न मिलेगा"
कहकर उसने दरवाजा खोल दिया। देखते ही बोली, "अरे, तुम तो भीग गये हो शायद ठंड लगी है काँप रहे हो, जल्दी अन्दर आ जाओ, कपड़े उतारकर बदन पोंछ लो पहले और यह कम्बल ओढ़कर बैठ जाओ, तब तक मैं चाय बनाती हूँ।"
कहकर उसने मुझे एक अंगौछा दे दिया। मैंने अन्दर आकर बदन पोंछा और ब्रीफकेस से दूसरा कपड़ा निकाल कर पहन लिया तथा कम्बल ओढ़ लिया। तब तक वह महिला चाय भी ले आयी। गर्मा-गर्म चाय पीकर कुछ राहत मिली और कोई समय होता तो उस झोपड़ी को देखकर मुझे घिन्न आ जाती पर वह झोपड़ी इस समय मेरे लिए राजमहल से कम नहीं थी।
बारिश कम हो गई थी मैं चलने को तैयार हुआ वह औरत बोल पड़ी, "इतनी रात में कहाँ जाओगे? ठंड भी लगी है तुम्हें यहीं सो जाओ, सुबह चले जाना।"
लेकिन मैंने जानता था पिताजी और माँ घबड़ातें होंगे, मोबाइल भी भीग गया था, अतः चलना ही उचित समझा, चलते-चलते उस बूढ़ी औरत को सौ का नोट देने लगा।
तो वह बोली,"बाबू, तुम पैसे वालों की यही आदत खराब है, हर चीज को पैसे से तौलते हो, क्या मैं एक रात के लिए तुम्हारी माँ नहीं हो सकती?"
मेरे पास कोई उत्तर न रहा।

आज के लिए इतना ही...धन्यवाद
अगर आपको यह पोस्ट अच्छी लगी हो तो कृपया कमेंट और शेयर करें... सुधीर श्रीवास्तव

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