Monday, August 12, 2019

वकील साहब


वकील साहब 

Vakeel Saheb

मैं बात कर रहा हूॅ, पं.रमाकान्त त्रिपाठी जी की, उम्र होगी यही अस्सी साल की, मैं साठ साल का हूॅ। मेरी मुलाकात उनसे मेरे एक परिचित ने करवाई थी, लगभग चालीस साल पहले, किन्तु पता नहीं कैसे रमाकांत जी से मेरे सम्बन्ध प्रगाढ़ होते गये। यह प्रगाढ़ता इतनी बढ़ी कि वे मुझे अपना छोटा भाई मानने लगे, हम दोनों खुलकर बातें करते और आपस में किसी बात बुरा नहीं मानतें हैं।
किसी समय वे शहर के जाने-माने वकील थे, चाहे जितना पेचीदा मुकदमा हो हाथ में ले लेते थे और जीत जाते थे। लक्ष्मी तो जैसे उनकी दासी थीं और कानून गुलाम, बेचारे मेहनत भी खूब करते थे, दिन रात कानूनी किताबों में डूबे रहते थे। आमदनी दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती जा रही थी। किन्तु उन्हें अपनी दौलत पर बड़ा नाज था।एक ही लड़का था जो उन्हें बहुत दुलारा था तथा दिन प्रतिदिन बिगड़ता जा रहा था। एक दिन मैंने उनसे कहा, "भाईसाहब, केवल कमाई ही मत देखिए परिवार और लड़के को भी देखिए, वह युवक हो चुका है जब देखता हूॅ आवारागर्दी करता है। उसकी संगत भी अच्छी नहीं है। लड़कियों के साथ रहता है।शायद शराब भी पीने लगा है।संभालिए उसे।"
रमाकांत जी ठठाकर हँस पड़ते कहते, "अरे यार, उम्र है उसकी खाने-पीने और मौज-मस्ती की, बाप की कमाई पर जो ऐश कर सके कर ले फिर तो मेरी वकालत संभाल लेगा, गले में घण्टी बाँध दूंगा उसके तो, जब जिम्मेदारी पड़ेगी तो खुद ही सुधर जायेगा।" उसकी हर जिद पूरी करते, एक नयी कार भी खरीद दी, ऐशो-आराम की हर वस्तु लड़के के लिए खरीद  देते।
बात आई-गई हो जाती, समय बीतता गया, उम्र बढ़ती गई अपना असर शरीर पर दिखाती गई। उनका लड़का किसी तरह एल एल बी पास हो गया, सो उसे अपना सहायक बना लिया।
एक बार रमाकांत जी काफी बीमार पड़ गए। उस समय वे पैंसठ साल के रहे होंगे। काफी कमजोर हो गये। इसी बीच पत्नी भी गुजर गयी। अब उनकी देखभाल करने वाला कोई न था। लड़का था, आवारा उनकी वकालत भी नहीं संभाल पाया। रमाकांत जी के सारे मुवक्किल एक-एक करके दूसरे वकीलों के पास चले गए। लड़का बाप की कमाई पर ऐश करने लगा। बाप ने जो कमाया उसे भी डुबोने लगा।
इधर रमाकांत जी ने अपनी देखभाल के लिए एक नौकर रख लिया। जो उनकी सेवा करता था। कल की ही बात है, उन्होंने नौकर से मुझे बुलवाया।
मैं पहुंचा तो देखा बीमार हैं तथा बहुत कमजोर हो गये हैं। मुझे अपने पास बैठा कर बोले, "भाई, तुम सही कहते थे। मुझे कमाई करने के साथ-साथ लड़के पर भी ध्यान देना चाहिए था। मेरी वकालत डूबो दी उसने, अब कमाई डूबो रहा है। मुझसे यह सब नहीं देखा जाता। मेरा कोई निश्चित नहीं कब मर जाऊँ और अपनी कमाई इस तरह बर्बाद होते देख मैं बर्दाश्त नहीं कर पा रहा हूॅ। मैं अपनी कमाई किसी ट्रस्ट को दान करता चाहता हूॅ मेरी मदद करो।"
कहकर वे चुप हो गए लेकिन चेहरे की पीड़ा तथा ऑखों के ऑसू नहीं छुपा पाये।

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