Tuesday, August 13, 2019

गीता

मैं उसे अरसों से देखता आ रहा हूॅ छोटी थी तब से।अब २५ वर्ष की लगती है।पहले उसकी माँ घर बर्तन माँजने आया करती थी साथ में कभी-कभी वह भी आती थी।कुछ गन्दे कपड़ों में।अनपढ़-गँवार सी।लेकिन पढ़ने की ललक के साथ।जब भी आती हाथ में किताब रहती थी।माँ बर्तन माँजती वह किताब में मशगूल रहती।कभी-कभी किताब नहीं रहती तो मेरे ही घर का कोई पन्ना उठाकर पढ़ने लगती।नाम था"गीता"
माँ डाँटती रहती,"मेरे काम में हाथ बँटाओ।"
गीता कहती,"आती हूॅ बस थोड़ा सा और पढ़ना है।"फिर पढ़ने में मशगूल।
एक दिन मैंने उसकी माँ से कहा,"इसका पढ़ने का इतना ही मन है तो किसी स्कूल में नाम क्यों नहीं लिखा देती?"
उसकी माँ ने बताया,"बाबूजी, म्युनिसिपल स्कूल में पढ़ती है।पढ़ने में बहुत तेज है।बस यही एक बुराई है इसमें जब देखो किताब से चिपकी रहती है।हालांकि घर का हर काम कर लेती है लेकिन पढ़ती ही रहती है।"
मैंने कहा,"यह तो अच्छी बात है।परेशानी किस बात की है?"
वह कहती,"बाबूजी, हम गरीब आदमी हैं इसे कितना पढ़ा पायेंगे यही सोचकर परेशानी होती है।"
मैंने उसकी मजबूरी समझी और चुप हो गया।समय अपनी गति से बढ़ता गया गीता अपनी गति से बड़ी होती गई।बहुत दिन बाद रास्ते में उसे बस्ता लेकर स्कूल जाते हुए देखा।उसने नमस्ते किया।
मैंने पूछा,"और बेटा,ठीक हो न?किस कक्षा में हो?"
वह बोली,"हाईस्कूल।"
मैंने कहा," बहुत अच्छा,पढ़ाई कैसी चल रही है?"
वह बोली,"फर्स्ट क्लास अंकल जी।"
उसकी स्पष्ट वादिता पर मैं अचम्भित रह गया।घर आया तो उसकी माँ बर्तन माँज रही थी।उसको मैंने गीता के बारे में बताया तो उसने कहा,"बाबूजी, क्या करें उसका पढ़ने का मन बहुत था सो हमने उसे पढ़ाना ही ठीक समझा।"
उसके कुछ दिनों बाद मेरी पत्नी ने उसका काम छुड़वा दिया।
फिर काफी दिन बाद एक दिन गीता की माँ मिठाई लेकर घर आई।बहुत खुश थी पत्नी से बोली,"बहू जी, आप लोग के आशिर्वाद से तथा बाबूजी की सीख से गीता कोई बड़ी अधिकारी बन गई है।आज मन्दिर हम लोग गये थे।यह प्रसाद है।
उस माँ की खुशी मैं देखता रह गया और मुझे गीता की मेहनत तथा लगन याद आने लगी।

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