Sunday, August 25, 2019

                  कारवाँ गुजर गया
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राधेमोहन जी हैं तो रईस खानदान से।बाप-दादा की अपार सम्पत्ति है उनके पास।इसी रईसी और बाप-दादा के दुलार में वे पढ़ नहीं पाये।हाईस्कूल ही बहुत मुश्किल से पास कर पाये।चूँकि कुछ न कुछ करना पड़ता है जीविका चलाने के लिए।हालाँकि जीविकोपार्जन के लिए भी उन्हें मेहनत करने की आवश्यकता नहीं थी किन्तु पत्नी को उनका घर में निठल्ला बैठना अच्छा नहीं लगता था।अतः उसके कहने-सुनने पर कचहरी में स्टाम्प पेपर बेचने लगे।सुबह दस बजे जाते तो शाम को छः बजे आते।कोई खास आय तो होती नहीं थी भगवान का दिया इतना अधिक था कि कोई कमी नहीं महसूस होती थी बस नाम था कि,"कुछ करतें हैं।"
घर कैसे चल रहा है उनको कोई मतलब नहीं था पत्नी ही सर्वे सर्वा है।खाने-पीने के शौकीन थे बढ़िया खाते हैं।बातूनी बहुत हैं सो महफिल जमाने के शौकीन हैं।रोज ही शाम को दोस्तों के साथ घर में ही महफिल जमाते हैं।पत्नी लाख मना करती पर राधेमोहन जी मानने वाले कहाँ हैं।पत्नी ने कुछ दिन तो देखा फिर इन पर पाबंदियां लगानी शुरू कर दी।जेब खर्च के अलावा एक पैसा नहीं देती थी।
चूँकि राधेमोहन जी ठहरे महफिल बाज आदमी अतः महफिल में शराब न चले कैसे हो सकता है।पत्नी ने जब से पाबंदी लगानी शुरू कर दी बेचारे परेशान रहने लगे।महफिल में वह मजा न रह गया ऊपर से दोस्तों की छींटाकशी सुननी पड़ती," जोरू का गुलाम,बीबी की पालतू बिल्ली,डरपोक" सुनते-सुनते ऊबने लगे,गुस्सा भी आने लगा।जब गुस्सा आता तो कोई न मिलता सारा गुस्सा पत्नी से झगड़ा करके उतारते।
कहते,"मेरा खाना-पीना दूभर हो गया है।सारे दोस्त हँसी उड़ातें हैं।क्या-क्या कहतें हैं तुम क्या जानो।मन में तो आता है डूब मरूं।"
पतनी कहती,"सब मतलब के दोस्त हैं दुष्ट।कभी अपने घर में ही महफिल जमाया है कमीनों ने?जब तक पैसा है दोस्त हैं नहीं तो पूछेंगे भी नहीं।"
रोज-रोज दोस्तों की बेइज्जती सुनते-सुनते राधेमोहन एक दिन आपे से बाहर हो गए।बोले,"चुप----------मेरे दोस्तों को कुछ कहा तो।सब मेरे ऊपर जान देते हैं।महफिल की मैं शान रहता हूॅ।जिसको देखो मेरे आगे-पीछे लगा रहता है।"
पत्नी कहती,"तुम्हारे नहीं पैसों के आगे-पीछे लगे रहतें हैं मक्कार।।"
बस राधेमोहन का गुस्सा आपे से बाहर हो गया और एक तमाचा पत्नी को जड़ दिया।पत्नी कुछ कहती या सुनती उससे पहले घर से बाहर निकल गये।सुबह आये बिना पत्नी से कुछ बोले कचहरी चले गये।शाम को भी गुस्सा शांत न हुआ था बल्कि शराब पी कर आये थे।दोस्तों को निमंत्रण दे आये थे।अतः दोस्त महफिल में भाग लेने आ गये थे।घर से महफिल के लिए पैसे चुराने चाहे लेकिन पैसे कहाँ रखे थे खोज न पाये।लगे पत्नी के हाथ-पैर जोड़ने,"इज्ज़त का सवाल है।दोस्त जुट चुके हैं।बहुत बेइज्जत हो जाऊँगा।"
पत्नी कुछ सुनने को राजी नहीं हो रही थी।बोली,"इन्हीं दोस्तों के लिए ही तो तुमनें मुझे मारा अब इन्हीं के लिए मैं पैसे दूं।चलो हटो पैसा नहीं है न ही दूंगी।"
राधेमोहन बोले,"जमीन बेंच दूंगा।"
पत्नी ने कहा,"हिम्मत है तो बेंच कर दिखाओ।"
यह चुनौती वे सह न पाये।बगल वाले कमरे में दोस्त जुटे थे।कुछ इसी कमरे के दरवाजे से झांक रहे थे।बेइज्जती घोर बेइज्जती।अपमान घोर अपमान।राधेमोहन गुस्से से काँपने लगे।बगल में पड़ा फावड़ा उठाया और पत्नी के सर पर दे मारा।पत्नी वही ढेर हो गई।दोस्त भागे किसीने पुलिस को खबर दे दी।वह राधेमोहन को गिरफ्तार कर ले गयी।कोई दोस्त नजर नहीं आया।सभी भाग चुके थे।
यही है गलत दोस्त और आदत का अंजाम।

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