Sunday, September 1, 2019

                          माधवी
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माधवी,
यों तो बदसूरत ही कही जाती थी।साँवली, नैन-नक्श अजीबो-गरीब,दुबली-पतली,गाल पिचके हुए,दाँत बाहर निकले हुए, मोटी आवाज कहने का मतलब वह शारीरिक रूप से कहीं से भी ऐसी नहीं थी जिसे सुन्दर कहा जाता।लोग उसे तिरस्कृत नजरों से देखा करते थे।हालाँकि पढ़ी-लिखी थी,स्वभाव से बहुत अच्छी थी,सबके सुख-दुःख में एक पाँव पर खड़ी रहती थी।किन्तु शारीरिक कुरूपता उसे तिरस्कृत बना देती थी। उसने जीवन यापन के लिए एक प्राइवेट स्कूल में बच्चों को पढ़ाने की नौकरी कर ली और बच्चों को ही अपनी औलाद समझने लगी।जब उसका अकेला पन दूर होने लगा तो उसके चेहरे पर निखार भी आने लगा।शरीर भी हरा-भरा हो गया।दुबली-पतली से वह तन्दरूस्त लगने लगी।
चूँकि स्वभाव से अच्छी थी अतः बच्चों में उसके प्रति लगाव पैदा हो गया।वह भी बच्चों को मन से पढ़ाती।हर बच्चे को वह समान रूप से देखती।वह प्रयास करती कि हर बच्चा एक समान रूप से उसकी बातों को समझे।जहाँ तेज बच्चों को कमजोर होने से बचाती वहीं कमजोर बच्चों को भी तेज करने की कोशिश करती थी।परिणामस्वरूप उसके विषय में हर बच्चा अच्छे नंबरों से उत्तीर्ण होता था।धीरे-धीरे प्रधानाचार्य भी माधवी से प्रभावित होने लगे।
एक दिन एक बच्चा खेलते हुए चोट लगने से विद्यालय में घायल हो गया।माधवी प्रधानाचार्य को सूचित करके उसे विद्यालय के पास वाले अस्पताल ले गयी।बिना किसी का इंतजार किये उसने उसका इलाज करवा दिया।तब तक बच्चे के घर वाले भी पहुंच गए।डॉक्टर से मिलने पर डाॅक्टर ने कहा,"अब यह बिल्कुल ठीक है।वह तो अच्छा हुआ कि(माधवी की इशारा करते हुए)इन मैडम ने समय से इलाज करवा दिया बहुत खून नहीं बह पाया नहीं परेशानी हो सकती थी।"
घर वालों ने डाॅक्टर से खर्च पूछा।डाॅक्टर ने बताया,"दो हजार लेकिन वह सब मैडम ने चुकता कर दिया है"
घर वालों ने कृतज्ञता भरी नजरों से माधवी को देखा और बोले,"मैडम,आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।ये दो हज़ार रुपए जो डाॅक्टर को आपने दिये हैं।"
माधवी बोली,"रहने दीजिए।क्या यह बच्चा मेरा नहीं?"
घर वालों ने बहुत कोशिश की लेकिन माधवी ने पैसे नहीं लिये।जिसके कारण बच्चे के घर वाले बहुत प्रभावित हुए।परिमाण यह हुआ कि दूसरे दिन विद्यालय का नाम अखबारों में आ गया और विद्यालय शहर भर में मशहूर होने लगा।प्रधानाचार्य तो माधवी पर निहाल हो गये।उसकी तरक्की करके विद्यालय का हेड मास्टर बना दिया तथा वेतन में भी वृद्धि कर दी।
कुछ दिनों के बाद माधवी के मोहल्ले की एक बूढ़ी औरत,जिसे वह काकी कहती थी,गुजर गयी।माधवी एक पैर पर उसके परिवार के साथ खड़ी रही।इससे वह उस घर तथा मोहल्ले वालों की चहेती बन गई।इस प्रकार माधवी की मन की सुन्दरता के आगे तन की सुन्दरता लोगों को दिखाई देना बन्द हो गया।

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