Sunday, August 11, 2019

इन्सान कौन?

इन्सान कौन?

Thinking boy


शाम का समय था, मैं था मेरा दोस्त था। दोनों ही सड़क पर टहल रहें थे। बातें भी हो रही थी कभी राजनीतिक, कभी पारिवारिक तो कभी इधर-उधर की न जाने कौन-कौन सी। राह चलते कोई काम तो था नहीं बस टहल रहे थे सो बातें होना तो लाज़िमी होता है न। टहलते-टहलते हम बहुत दूर निकल गये। समय का ध्यान ही नहीं रहा। जब अंधेरे ने पाँव पसारना शुरू किया तो हमें ध्यान आया कि बहुत देर हो गयी है जाड़े में रात भी जल्दी ही होती है। हम वापस हो लिये। सड़क किनारे मूंगफली वाला मूंगफली बेच रहा था मेरे दोस्त ने मूंगफली खरीद लिया। उसे खाते-खाते हम बेफिक्र चलने लगे। एक तो सड़क के किनारे थे और मस्ती में चल रहे थे।
एक जगह देखा एक गाय कुछ पत्तों को चर रही थी। कुछ कुत्ते उन पत्तों के पास बैठे जीभ लपलपा रहे थे। सड़क पर ट्रैफिक भी बढ़ गयी थी। कार, बाइक, बस, ट्रक सभी दौड़ रहे थे। हम टहलते-टहलते गाय के पास कब पहुंच गए पता नहीं चला। मुझे पता तब चला जब कुत्तों ने गाय में न जाने क्या देखा कि अचानक भौंक पड़े। गाय बिदक कर भागी तो मेरा दोस्त घबड़ा कर सड़क पर आ गया तथा एक बाइक से टकरा कर गिर पड़ा और दर्द से कराहने लगा। इसके पहले कि कोई कुछ समझता बाइक वाला भाग गया।
लोग दौड़े मैं भी दौड़ा उसे सड़क के किनारे कर दिया। उसके सर से खून बह रहा था शायद हाथ में भी चोट आई थी क्योंकि वह हाथ भी पकड़े हुए था। उसे तुरंत डॉक्टर के पास ले जाना जरूरी हो गया। मैंने राह चलते कार, बाइक वालों को रोकना चाहा किन्तु सबको जल्दी थी। टेम्पो वाले सवारी भर-भर कर आ रहे थे। अतः साधन नहीं मिल रहा था।
अचानक एक रिक्शे वाला अपना रिक्शा लेकर आया बोला,"भइया, सोचो मत, रिक्शे पर बैठो।"
मैंने और उसने मिल कर दोस्त को रिक्शे पर बैठाया। मैं भी रिक्शे पर बैठ गया। रिक्शे वाला तेज गति से रिक्शा चलाता हुआ एक नर्सिंग होम के सामने पहुंच गया। उसने दोस्त को डाॅक्टर तक पहुंचाने में मेरी मदद भी की। डाॅक्टर ने सर पर पट्टी बांध कर कहा, "इनके हाथ की हड्डी टूट गई है प्लास्टर लगेगा।फिलहाल चार हजार की व्यवस्था कीजिये"
मैं घबड़ाया, पता नहीं दोस्त के पास है कि नहीं। वह बेहोश था। मैंने उसकी पाॅकेट टटोली कुल तीन हजार निकले एक हजार और चाहिए थे। उसे अपने पास से, यह सोचकर कि इसके घर वालों से या ठीक होने पर इसी से माँग लूँगा, मिलाकर डाॅक्टर को दे दिया। वह प्लास्टर चढ़ाने उसे ले गया।कुछ दवायें लिखीं जो रिक्शे वाला अपने पास से बाजार से ले आया था।
दोस्त के डाॅक्टर के साथ जाने के बाद मुझे होश आया कि रिक्शे वाले को भी दवा और रिक्शे के किराये का भी पैसा देना है।
अतः मैं गेट पर आया तो देखा रिक्शे वाला बिना पैसे लिये ही चला गया है। अब मैं सोचने लगा आखिर हम में से इंसान कौन है?  मैं, जिसने यह सोचकर पैसे मिलाये कि बाद में माँग लूंगा या यह डाॅक्टर, जिसने इलाज से पहले ही पैसे की माँग कर दी या वे कार-बाइक वाले जो धक्का मारकर भी भाग गया और रोकवाने पर भी किसी ने गाड़ी नहीं रोकी या यह रिक्शे वाला अनपढ़-गँवार, जिसने निःस्वार्थ भाव से मदद की और बिना पैसे लिये ही चला गया है? आखिर इन्सान कौन है?

आज के लिए इतना ही...धन्यवाद
अगर आपको यह पोस्ट अच्छी लगी हो तो कृपया कमेंट और शेयर करें... सुधीर श्रीवास्तव

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