Thursday, August 8, 2019

वह बाबा


वह बाबा

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मेरे ऑफिस के रास्ते में एक कुटिया पड़ती है, उसमें एक भिखारी जैसे एक बाबा रहतें हैं, देखने में भिखारी नहीं लगते हैं चेहरे पर तेज रहता है उनके, कपड़े साफ-सुथरे सफाई पसंद हैं। जाने क्यों मेरा दिमाग उन पर आकर्षित होता है, ऑफिस आते-जाते कुटिया पर एक नजर खुद ही चली जाती है। एक दिन ऑफिस जा रहा था तो कुटिया के पास ही बाइक पंचर हो गई।क्योंकि, मैं इसी रास्ते से रोज ही ऑफिस जाता हूॅ अतः रास्ते की भौगोलिक स्थिति से अच्छी तरह वाकिफ हूॅ जानता था पंचर वाला बहुत दूर है।मेरे पास समय नहीं था कि बाइक वहाँ तक घसीट कर ले जाता, एक ही उपाय था टेम्पो से जाऊँ लेकिन बाइक कहाँ रखूँ समस्या थी, कोई उपाय न पाकर मैं उस कुटिया पर पहुंचा आवाज लगाई, "बाबाजी"
वे बाहर आये, मुझे प्रश्न भरी नजरों से देखा, मैंने समस्या बताई तो वे बोले, "बेटा, यहीं खड़ी कर दो।हाँ, लाॅक कर देना मैं भोजन-पानी की व्यवस्था में जाऊँगा लेकिन गाड़ी का ध्यान रखूँगा।"
मैं आश्वस्त हुआ बाइक छोड़कर टेम्पो से चला गया, रास्ते में पंचर वाले को बता दिया और पंचर बनाने को भी कह दिया था।किन्तु दिन भर दिमाग बाबाजी पर लगा रहा, उनकी शालीनता, सभ्यता, बोल चाल का तरीका, बस यही सब दिमाग में आता रहा। मैंने सोचा किसी अच्छे परिवार के होंगे निश्चित ही किसी विशेष कारणों वश सन्यासी बनें हैं।
खैर शाम को जाते समय कुटिया पहुंचा देखा पंचर बनाने वाला पंचर बना गया है।बाबाजी बोले, "बेटा, पंचर बन गया है अब इसे ले जा सकते हो"
उनके बारे में जानने की इच्छा से मैंने कहा, "एक गिलास पानी मिलेगा क्या?"
उन्होंने कहा, "हाँ हाँ क्यों नहीं, अभी लाता हूॅ।"
कहकर वे कुटिया में चले गए, मैं भी उनके पीछे-पीछे चला गया। कुटिया की सफाई देखकर मैं दंग रह गया, जमीन पर बिस्तर लेकिन पुराना फटा साफ-सुथरा, बर्तन साफ-सुथरे, हर चीज करीने से सजी हुई। उन्होंने गुड़ के साथ पानी दिया। मैंने पानी एक ओर रखकर पूछा,"बाबा एक बात पूछूँ?"
"पूछो" उन्होंने कहा।
मैं बोला, "आप जिस तरह से रहतें हैं उससे तो लगता है आप अच्छे परिवार के हैं। फिर----------"
बात काटकर वे बोल पड़े, "क्या करोगे जानकर? बस जान लो मैं जो दिखता हूॅ वही हूॅ।" उनके चेहरे से एक दर्द झलक गया जिसे वे छुपा न पाये। ऑखों के कोरों के ऑसू को मैंनें देख लिया। अधिक कुरेदना मैंने उचित न समझा।पानी पी कर वहाॅ से चल पड़ा लेकिन दिमाग पर बाबाजी छाये रहे।
अब मैं रोज ही उनकी कुटिया पर जाता बातें करता, धीरे-धीरे वे मुझसे खुलते गये, पता चला वे बहुत दूर से आये हैं, पत्नी का देहांत हो गया और बेटों के झगड़ों से वे ऊब गये हैं।उनको अपने पास न रखने के लिए ही बेटे आपस में लड़ते रहतें थे।चूंकि स्वयं शान्ति प्रिय हैं, उन्हें लगा कि वे बेटों पर बोझ हो गये हैं इसलिए बिना किसी को बताये यहाँ आकर बस गए हैं।
मुझसे बोले, "बेटा, यहाँ भी तुमको छोड़ मैं किसी से बात नहीं करता न ही मतलब रखता हूॅ, मेरे पास कोई नहीं आता तुमको छोड़कर।"
जाड़ा आ गया, ठंड बढ़ती जा रही थी। लेकिन वे बेचारे पुराने घिसे लेकिन साफ ऊनी कपड़े में रहते, ठंड से मैंने उन्हें काँपते भी पाया दिली लगाव हो जाने के कारण मैंने उनको नये ऊनी कपड़े भी खरीद दिये बहुत आशिर्वाद दिया उन्होंने।एक दिन मैंने देखा उनका कम्बल भी घिसा है और उसमें कहीं कहीं छेद भी हो गये हैं।
अतः मैंने उसी दिन एक नया कम्बल खरीदा उनको देने के लिए, लेकिन ऑफिस में ही देर हो गई थी अतः देर रात उन्हें जगाना उचित न समझा। सुबह ऑफिस जाने लगा तो कम्बल साथ ले लिया, कुटिया पर पहुंचा तो देखा भीड़ लगी थी, मैं सशंकित कम्बल लेकर आगे बढ़ा तो देखा बाबाजी मृत पड़े थे, कम्बल मेरे हाथ से छूटकर उनके शरीर पर गिर पड़ा और मेरी ऑखों से ऑसू की कुछ बूंदें निकल पड़ीं।

आज के लिए इतना ही...धन्यवाद
अगर आपको यह पोस्ट अच्छी लगी हो तो कृपया कमेंट और शेयर करें... सुधीर श्रीवास्तव

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